भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) सभी धाराओं की लिस्ट | All BNS Sections in Hindi


समाज समय के साथ विकसित होता है और इस निरंतर बदलते समाज में इंसानों की आवश्यकताओं के अनुसार आवश्यक परिवर्तन होते हैं, भारतीय न्याय संहिता 2023 इसी का परिणाम है। यह भारतीय विधायिका का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय है, जिसने ब्रिटिश युग से चले आ रहे पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है और आज के समाज की वर्तमान जरूरतों के अनुसार भारतीय न्याय संहिता (BNS) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह लागू करने के लिए बनाया गया हैं।


भारतीय न्याय संहिता के उद्देश्य और लक्ष्य

आज के समाज और नागरिकों को ऐसे नए कानूनों की आवश्यकता है जो वर्तमान समस्याओं से बिना देरी के निपटने में सक्षम हों तथा निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित कर सकें; पुराने आपराधिक कानून ऐसा करने में अक्षम थे जिसके परिणामस्वरूप 2023 में संसद ने भारतीय न्याय संहिता को नए अपराधिक कानून प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया और इसके द्वारा भारतीय दंड संहिता 1860 की जगह ली गई।


भारतीय न्याय संहिता के तहत नए अपराध

1. शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाना: भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के तहत शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने पर अब दस साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

2. भीड़ द्वारा हत्या: जाति, पंथ, धर्म और समुदाय के आधार पर भीड़ द्वारा हत्या जैसे अपराध के लिए अब आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है।

3. संगठित अपराध: भारतीय न्याय संहिता की धारा 111 उपधारा (1) में अपहरण, डकैती, लूट, जबरन वसूली आदि जैसे संगठित अपराधों को परिभाषित किया गया है, जिनके लिए 5 वर्ष से आजीवन कारावास की सजा के साथ पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।

4. छोटे-मोटे संगठित अपराध: भारतीय न्याय संहिता की धारा 112 के तहत छोटे संगठित अपराधों को परिभाषित किया गया है, जैसे चोरी, छीनाझपटी, ब्लैक में टिकट बेचना, परीक्षा के प्रश्नपत्र बेचना, जुआ खेलना आदि।

5. आतंकवादी कृत्य: धारा 113 "आतंकवादी कृत्य" को परिभाषित करती है जिसके अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के इरादे से आतंक फैलाने के लिए किया गया कार्य है, जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय है, यदि इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और किसी अन्य मामले में 5 वर्ष से आजीवन कारावास की सजा के साथ जुर्माने का प्रावधान है।

6. आत्महत्या का प्रयास करना: धारा 226 के तहत किसी लोक सेवक को उसके क़ानूनी कर्तव्य का पालन करने से रोकने के लिए आत्महत्या का प्रयास करने पर एक वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों या सामुदायिक सेवा का प्रावधान है।


भारतीय न्याय संहिता द्वारा आईपीसी के रद्द किये गये अपराध

1. अप्राकृतिक यौन अपराध: भारतीय न्याय संहिता ने अप्राकृतिक यौन अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को किसी ऐसे प्रावधान के उपलब्ध कराए बिना ही हटा दिया है जो की पुरुषों के साथ होने वाले यौन अपराधों से निपटने में सक्षम हो।

2. व्यभिचार: आईपीसी की धारा 497 को लैंगिक असमानता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में रद्द कर दिया था और भारतीय न्याय संहिता द्वारा इसे हटा दिया गया है।

3. ठग: भारतीय न्याय संहिता से आईपीसी की धारा 310 को हटा दिया गया है, जिसमें ठग की परिभाषा दी गई है।


भारतीय न्याय संहिता द्वारा लाये गए कुछ अन्य प्रावधान

1. फर्जी खबर: भारतीय न्याय संहिता ने फर्जी खबरों के मामलों से निपटने के लिए भ्रामक और झूठी खबरों के प्रकाशन को अपराध घोषित करने वाला नया प्रावधान पेश किया है।

2. राजद्रोह: सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए, जो राजद्रोह के अपराध से संबंधित है, को असंवैधानिक बताया है, इसे हटाने के बजाय भारतीय न्याय ने इसे पुनः लागू कर दिया है।

3. अनिवार्य न्यूनतम सजा: भारतीय न्याय संहिता ने अनिवार्य न्यूनतम दण्ड के सिद्धांत प्रस्तुत किया है, जिसने दोषी को दंडित करने के लिए न्यायाधीशों की विवेकाधीन शक्तियों को छीन लिया है।

4. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना: भारतीय न्याय संहिता के तहत अब सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर नुकसान के बराबर ही जुर्माना लगाया जाएगा।


भारतीय न्याय संहिता की मुख्य विशेषताएं

1. सरल और स्पष्ट: पहले भारतीय दंड संहिता में एक धारा अपराध को परिभाषित करती थी और दूसरी उसकी सजा का प्रावधान करती थी, लेकिन अब भारतीय न्याय संहिता में जो धारा अपराध को परिभाषित करती है और वही उसकी सजा का प्रावधान भी करती है।

2. आधुनिक अपराधों के लिए दंड का प्रावधान: भारतीय न्याय संहिता वर्तमान समय की समस्या से संबंधित अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान उपलब्ध कराती है।

3. पीड़ितों की सुरक्षा के लिए बेहतर अधिकार: भारतीय न्याय संहिता में पीड़ितों की सुरक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए पहले से अधिक मुआवजा प्रदान करने वाले प्रावधान जोड़े गये हैं।

4. महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराधों के लिए विशेष प्रावधान: भारतीय न्याय संहिता महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराधों जैसे यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, नाबालिग बच्चे का अपहरण, वेश्यावृत्ति और बंधुआ मजदूरी आदि के लिए सख्त से सख्त सजा का प्रावधान करती है।

5. जुर्माना लगाकर छोटे-मोटे अपराधों मे रिहा करना: अदालतों से लंबित मामलों के बोझ को कम करने के उद्देश्य से भारतीय न्याय संहिता में छोटे और मामूली अपराधों के संबंध में जुर्माना अदा करके रिहाई का प्रावधान कर दिया है।

6. सुव्यवस्थित कानूनी प्रावधान: भारतीय न्याय संहिता बिना किसी देरी के न्याय सुनिश्चित कर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता जैसे प्रक्रियात्मक कानून की सहायता के लिए सुव्यवस्थित प्रावधान प्रदान करती है।


भारतीय न्याय संहिता का कानूनी व्यवस्था पर प्रभाव

1. लंबित मामलों में कमी लाना: भारतीय न्याय संहिता से छोटे और मामूली अपराधों को हटाने से अदालतों पर लंबित मामलों का बोझ कम हो जाएगा और उनकी संख्या में भी कमी आएगी।

2. सरल कानूनी भाषा: भारतीय दंड संहिता में कानूनी प्रावधान बहुत जटिल और भ्रामक थे, जिससे कई लोग उन्हें आसानी से समझ नहीं पाते थे, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में कानूनी प्रावधानों को बहुत सरल और स्पष्ट भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिससे की सामान्य व्यक्ति भी उन्हें आसानी से समझ सकता है।

3. अंतरराष्ट्रीय कानूनी मापदंडों पर खरा उतारने प्रयास: भारतीय न्याय संहिता भारत की कानूनी व्यवस्था को वैश्विक मानकों पर खरा उतारने का ईमानदार प्रयास है जो आधुनिक समय की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है।


भारतीय न्याय संहिता के लिए चुनौतियाँ

1. नए कानून उचित प्रशिक्षण सुनिश्चित करना: नए आपराधिक कानून को जमीनी स्तर पर प्रभावी और कुशल बनाने के लिए न्यायिक अधिकारियों और कानून लागू कराने वाली एजेंसियों को उचित प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

2. नागरिकों में कानूनी जागरूकता फैलाना: कानून चाहे कितने भी प्रभावी और कुशल क्यों न हों, उनका कोई लाभ नहीं है जब तक कि वह जनता, जिसके भले के लिए वे बनाए गए हैं, उनके बारे में जागरूक न हो। इसलिए न्यायहित में यह आवश्यक है कि नागरिकों को उन कानूनों के बारे में जागरूक किया जाए जो उनके हितों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं।

3. आधुनिक संसाधन और बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना: आधुनिक बुनियादी ढांचे और तकनीकी संसाधनों के अभाव में उन लक्ष्यों को प्राप्त करना लगभग असंभव है जिनके कारण भारतीय न्याय संहिता का गठन किया गया है, इन बुनियादी सुविधाओं को प्रदान करने में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा ये सभी प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे।


भारतीय न्याय संहिता पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. भारतीय न्याय संहिता क्या है?
भारतीय न्याय संहिता एक सुव्यवस्थित आपराधिक कानून है जो विभिन्न प्रकार के अपराधों को परिभाषित करता है और उनके लिए दंड का प्रावधान करता है। इसे भारतीय दंड संहिता को समाप्त कर उस की जगह उपयोग करने के लिए गया है जो मूल रूप से ब्रिटिश राज मे भारतीय नागरिकों के उत्पीड़न के लिए बनाई गई थी।

2. आईपीसी को भारतीय न्याय संहिता से बदलने की क्या जरूरत थी?
भारतीय दंड संहिता सदियों पुरानी कानून था, जो समय-समय पर अनेक परिवर्तनों के बावजूद वर्तमान युग की समस्याओं से निपटने में असमर्थ सिद्ध हुआ, और नए आपराधिक कानूनों की निरंतर मांग के कारण इसे भारतीय न्याय संहिता से बदलना आवश्यक हो गया था।

3. भारतीय दंड संहिता की तुलना में भारतीय न्याय संहिता के क्या लाभ हैं?
भारतीय दंड संहिता की तुलना में भारतीय न्याय संहिता के कई फायदे हैं, इसकी भाषा सरल और स्पष्ट है, यह आधुनिक और तकनीकी अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान प्रदान करती है जो पहले मौजूद नहीं थे, इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाकर पीड़ितों को राहत प्रदान करना और न्यायालयों पर लंबित मामलों के बोझ से मुक्ति दिलाना है।

4. भारतीय न्याय संहिता द्वारा मामूली अपराधों के संबंध में क्या परिवर्तन किए गए हैं?
भारतीय न्याय संहिता ने छोटे अपराधों से संबंधित मामलों में जुर्माने के रूप में दंड की व्यवस्था की है, ताकि न्यायालय में अनावश्यक मुकदमों के बोझ को कम किया जा सके, जिसकी मांग विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और मानवाधिकार एजेंसियों द्वारा लंबे समय से की जा रही थी, ताकि उन विचाराधीन कैदियों के हितों की रक्षा की जा सके, जिन्होंने उस अपराध की वास्तविक सजा से अधिक समय जेल में बिताया है, जिसके लिए वे न्यायिक विचारण से गुजर रहे हैं।

5. भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता कैसे लागू होगी?
भारतीय न्याय संहिता को प्रभावी रूप से लागू कराने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे, कानून लागू कराने वाली एजेंसियों, न्यायिक अधिकारियों और अधिवक्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे तथा इसके लिए अदालतों को आधुनिक बुनियादी ढांचा और संसाधन भी उपलब्ध कराए जाएंगे।

6. मैं स्वयं को और अन्य लोगों को भारतीय न्याय संहिता से संबंधित प्रावधानों के बारे में कैसे जागरूक कर सकता हूँ?
आप खुद को और अन्य लोगों को भारतीय न्याय संहिता कै प्रती जागरूक करने के लिए पर लॉराटो के आर्टिकल पढ़ सकते हैं और अपने दोस्तों के साथ साझा भी कर सकते है।