विषयसूची
- बीएनएस की धारा 298 क्या है - BNS Section 298 in Hindi
- बीएनएस सेक्शन 298 के महत्वपूर्ण बिंदु:-
- धारा 298 के तहत किन कार्यों को अपराध माना जा सकता है?
- बीएनएस सेक्शन 298 के अपराध का उदाहरण
- BNS Section 298 के तहत अपराध की सजा
- बीएनएस की धारा 298 में जमानत का प्रावधान
- बीएनएस धारा 298 पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आजकल धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करने वाले मामले रोजाना सुनने व देखने को मिल ही जाते है। सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के जरिए धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले बयान और पोस्ट आम हो गए हैं। धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले अपराध न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाज के स्तर पर भी गंभीर परिणाम पैदा कर सकते हैं। इन अपराधों से धार्मिक समुदायों के बीच तनाव बढ़ता है और हिंसा भी भड़क सकती है। इसलिए, इस मुद्दे के बारे में जागरूक होना और इसे गंभीरता से लेना बेहद जरूरी है। इसी विषय के संबंध में भारतीय न्याय संहिता की धारा 298 के द्वारा हम जानेंगे कि, बीएनएस की धारा 298 क्या है (BNS Section 298 in Hindi)? यह धारा कब लगती है और इस धारा में जमानत और सजा का क्या प्रावधान है?
भारत में धर्म व धार्मिक चीजें हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले अपराधों से निपटने के लिए आईपीसी (Indian Penal Code) में पहले धारा 295 का प्रावधान (Provision) था। लेकिन समय के साथ-साथ कानूनी व्यवस्था में बदलाव हुए और अब ऐसे मामलों पर बीएनएस (Bhartiya Nyaya Sanhita) की धारा 298 के तहत कार्रवाई की जाती है। धारा 298 धार्मिक भावनाओं को आहत करने के अपराध को और अधिक गंभीरता से लेती है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान करती है।
बीएनएस की धारा 298 क्या है - BNS Section 298 in Hindi
भारतीय न्याय संहिता की धारा 298 धार्मिक भावनाओं (Religious Sentiments) को आहत करने के अपराध से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी धर्म या धार्मिक विश्वासों (Religious Beliefs) को अपमानित करने के उद्देश्य से किसी धर्मस्थल, पूजा स्थल, या किसी धर्म के प्रतीक या उससे संबंधित वस्तु को नष्ट करता है, क्षति पहुंचाता है, या अपवित्र करता है। तो ऐसे व्यक्ति पर BNS की धारा 298 लागू कर दंड के लिए कानूनी कार्यवाही की जाती है।
बीएनएस सेक्शन 298 के महत्वपूर्ण बिंदु:-
- आरोपी का उद्देश्य किसी धर्म या धार्मिक विश्वास का अपमान (Insult) करना होना चाहिए।
- किसी धार्मिक स्थल, पूजा स्थान, या धार्मिक प्रतीक (Religious Symbols) को जानबूझकर नुकसान पहुंचाना या अपवित्र (Impure) करना।
- यह साबित होना चाहिए कि यह कार्य जानबूझकर किया गया है, गलती से नहीं।
- यह कृत्य धार्मिक भावनाओं को आहत करके समाज में अशांति या विवाद पैदा कर सकता है।
- इस धारा के तहत दोष पाए जाने पर कारावास और जुर्माना (Imprisonment Or fine) हो सकता है।
धारा 298 के तहत किन कार्यों को अपराध माना जा सकता है?
- जानबूझकर किसी धर्म के देवताओं की मूर्ति को तोड़ना या नुकसान पहुंचाना।
- मस्जिद की दीवारें या अन्य चीजों को जानबूझकर (Intentionally) नुकसान पहुंचाना।
- पुजा स्थल के अंदर कचरा या अन्य अपवित्र वस्तुएं फेंकना।
- धार्मिक पुस्तकों जैसे गीता, कुरान, बाइबिल आदि को जलाना।
- किसी मंदिर, मस्जिद, चर्च, या गुरुद्वारे में गोबर, खून, या अन्य अपवित्र पदार्थ फेंकना।
- धार्मिक स्थलों की दीवारों पर अश्लील या आपत्तिजनक चित्र बनाना।
- किसी धर्म के प्रतीक झंडे को जलाना या अपमानित करना।
- किसी धर्म के धार्मिक समारोह को जबरन रोकना या उसमें बाधा डालना।
- जानबूझकर धार्मिक स्थल पर शोर-शराबा या विवाद पैदा करना।
- किसी धार्मिक आयोजन को जानबूझकर रोकने की कोशिश करना।
बीएनएस सेक्शन 298 के अपराध का उदाहरण
अजय का परिवार एक धार्मिक उत्सव के लिए पार्क में विशेष पूजा आयोजन कर रहा था। पार्क में उन्होंने पूजा के लिए धार्मिक प्रतीकों और झंडों को सजाया था। पूजा समाप्त होने के बाद अजय और उसके परिवार ने झंडों और अन्य पूजा सामग्री को साफ-सुथरा रखने का ध्यान रखा। राकेश जो धार्मिक प्रतीकों की कद्र नहीं करता था, पार्क से गुज़रते समय उसने गलत ढंग से उन धार्मिक झंडों को फाड़ दिया और पूजा सामग्री को कुचल दिया। यह सब देखकर अजय बहुत दुखी और नाराज हो गया।
अजय ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और राकेश के खिलाफ धारा 298 के तहत शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने राकेश को पूछताछ के लिए बुलाया और उसे धार्मिक प्रतीकों को नुकसान पहुंचाने के लिए सजा दी।
BNS Section 298 के तहत अपराध की सजा
बीएनएस की धारा 298 उन अपराधों को दंडित (Punished) करती है, जो धार्मिक स्थलों, पूजा स्थलों, या धार्मिक प्रतीकों के अपमान या नुकसान से संबंधित होते हैं। इसलिए धारा 298 के तहत दोषी (Guilty) पाए गए व्यक्तियों को 2 वर्ष की कारावास व जुर्माने (Imprisonment Or Fine) से दंडित किया जाता है।
बीएनएस की धारा 298 में जमानत का प्रावधान
भारतीय न्याय संहिता की धारा 298 के तहत दर्ज किए गए मामलों को गैर-जमानती व संज्ञेय अपराध (Non-Bailable Or Cognizable Offence) माना जाता है। संज्ञेय अपराध की स्थिति में पुलिस को तत्काल कार्यवाही का अधिकार होता है और आरोपी की गिरफ्तारी तुरंत की जा सकती है। गैर-जमानती होने के कारण इस अपराध के आरोपी (Accused) को जमानत (Bail) पर छोड़े जाने की संभावना नहीं होती है। यह अपराध किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (Triable) होता है।
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बीएनएस धारा 298 पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
बीएनएस की धारा 298 क्या है और यह किस जुर्म को करने पर लागू होती है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 298 के तहत कोई भी व्यक्ति जो किसी धर्म या धर्म के किसी वर्ग के धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर अपमान करने की कोशिश करता है, वह इस अपराध का दोषी पाया जा सकता है। यह अपराध किसी भी रूप में हो सकता है, जैसे कि:
- किसी धार्मिक व्यक्ति या समूह के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करना।
- किसी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक का अपमानजनक चित्रण करना।
- किसी धार्मिक स्थल या अनुष्ठान का अपमान करना।
क्या बीएनएस की धारा 298 जमानती है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 298 एक गैर-जमानती धारा है जिसमें आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तारी के बाद जमानत पर रिहा नहीं किया जाता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 298 के तहत धार्मिक भावनाओं व स्थलों को आहत करने की सजा क्या है?
BNS की धारा 298 के अंतर्गत धार्मिक स्थलों व भावनाओं को आहत करने के दोषी पाये जाने वाले व्यक्तियों पर 2 साल की जेल व जुर्माने का दंड लगाया जा सकता है।
क्या सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर धारा 298 लागू होती है?
हाँ, बिल्कुल। सोशल मीडिया पर भी धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर धारा 298 लागू हो सकती है। सोशल मीडिया पर की गई कोई भी पोस्ट या टिप्पणी जो किसी धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है, इस धारा के दायरे में आ सकती है।
क्या धारा 298 केवल धार्मिक ग्रंथों के अपमान पर लागू होती है?
नहीं, यह सिर्फ धार्मिक ग्रंथों तक ही सीमित नहीं है। धारा 298 किसी भी धार्मिक प्रतीक, देवता, अनुष्ठान, या रीति-रिवाज के अपमान पर भी लागू होती है।