BNS Section 303 in Hindi - चोरी की बीएनएस धारा 303 में सजा जमानत


BNS Section 303 in Hindi

चोरी एक ऐसा अपराध है, जो देश के हर राज्य व हर क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ता जा रहा है। कभी न्यूज चैनलों व कभी इंटरनेट पर जहाँ देखो वहाँ चोरी के मामले दिखाई दे जाते है। ऐसे अपराधों को रोकने के लिए हमारे देश में सख्त से सख्त कानून बनाए गए है, जो अपराधियों को उनके किए गए अपराध के लिए सजा (Punishment) देते है। लेकिन ऐसे अपराधों से बचने के लिए हम सभी का कानूनी जानकारियों से अवगत होना भी बहुत जरुरी है। इसलिए आज हम चोरी (Theft) के अपराध से संबंधित भारतीय न्याय संहिता की धारा 303 के बारे में जानेंगे कि, बीएनएस की धारा 303 क्या है? चोरी करने पर कौन सी धारा लगती है? BNS Section 303 में जमानती है या गैर जमानती?

चोरी जैसा अपराध कभी भी किसी के साथ भी हो सकता है। इसीलिए ऐसे जुर्म (Crime) के खिलाफ हम तभी कोई कार्यवाही कर सकते है जब हमें भारतीय कानून की सही जानकारी प्राप्त हो। चोरी जैसे जुर्म में सजा देने के लिए पहले आईपीसी की धारा 379 (पुराने कानून) के तहत कार्यवाही की जाती थी। जिसे अब नए कानून यानि भारतीय न्याय संहिता की धारा 303 से बदल दिया गया है। इसीलिए विस्तार से पूरी व स्टीक जानकारी प्राप्त करने के लिए की धारा बीएनएस सेक्शन 303 के हमारे इस लेख को पूरा पढ़े।


बीएनएस की धारा 303 क्या है - BNS Section 303 in Hindi

भारतीय न्याय संहिता की धारा (BNS Section) 303 चोरी के अपराध से संबंधित है। इसमें बताया गया है कि जो कोई भी व्यक्ति बेईमानी (Dishonesty) से किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे (Possession) से उसकी सहमति के बिना किसी संपत्ति को अपने कब्ज़े मैं करने का इरादा रखता है। या उस संपत्ति को अपने साथ छिपा कर ले जाता है, वह चोरी कहलाती है।

सरल भाषा द्वारा समझे तो इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति को बेईमानी से अपने पास रखने के लिए साथ ले जाता है। साथ ही ऐसा कार्य वो उस संपत्ति के मालिक की अनुमति के बिना करता है, यानी चोरी करने के इरादे से उस वस्तु को अपने साथ ले जाता है। उस व्यक्ति पर बीएनएस की धारा 303 लागू होती है, जिसमें आरोपी व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही कर उसे दंड दिया जाता है।


बीएनएस की धारा 303 के मुख्य बिंदु क्या है?

  • बेईमानी का इरादा: आरोपी का इरादा किसी संपत्ति को बेईमानी से लेने का होना चाहिए। इसका मतलब है कि वह व्यक्ति उस संपत्ति को अपने साथ रखने के लिए उसके असल मालिक (Real owner) से उस संपत्ति को दूर कर देता है।
  • चल संपत्ति: चोरी की गई वस्तु चल संपत्ति (Moveable property) होनी चाहिए। ज़मीन, इमारतें और ज़मीन से जुड़ी हुई वस्तुओं को तब तक चल संपत्ति नहीं माना जाता जब तक कि उन्हें अलग न कर दिया जाए।
  • कब्जे से लेना: संपत्ति लेने के समय किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे में होनी चाहिए। यानी जो संपत्ति हम प्राप्त कर रहे है उस संपत्ति का कोई मालिक होना चाहिए।
  • बिना सहमति के लेना:- किसी संपत्ति को बिना उसके मालिक की सहमति के ले जाना। बल, जबरदस्ती या धोखे से प्राप्त हुई सहमति को वैध (Valid) नहीं माना जाएगा।
  • संपत्ति की आवाजाही: आरोपी ने संपत्ति को ले जाने के लिए किसी तरह से उसे हिलाया होगा। ऐसा उसके रास्ते में आने वाली बाधा को हटाना या उसे किसी और चीज़ से अलग करना हो सकता है।

चोरी के अपराध की धारा 303 का उदाहरण

माया एक दिन अपने कुछ दोस्तों के साथ पार्क में पिकनिक मनाने के लिए गई हुई थी। वही पार्क में माया ने अपने पर्स व फोन को रख दिया था। जिसके बाद माया अपने दोस्तों के साथ पार्क में ही थोड़ी दूरी पर खेलने लग जाती है। उसी समय राहुल नाम के एक लड़के की नजर माया के पर्स व फोन पर पड़ जाती है।

माया का ध्यान पुरी तरह से खेलने में लगा हुआ था, इसी बात का फायदा उठाकर राहुल माया के पर्स व फोन को बिना उसकी अनुमति के अपने साथ ले जाने के इरादे से उठा ले जाता है। जब माया वहाँ आकर देखती है तो उसे अपना पर्स व फोन दोनों उस जगह से गायब दिखाई देते है।

उसी समय जब राहुल माया को पर्स व फोन ले जा रहा होता है, तो एक व्यक्ति उसे पकड़ लेता है। जिसके बाद वो व्यक्ति वहाँ पर पुलिस बुला लेता है, और माया को उसका पर्स व फोन लौटा देता है। वही पुलिस राहुल पर बीएनएस के तहत आने वाली चोरी करने की धारा BNS Section 303 के तहत शिकायत दर्ज (Complaint Register) कर उस पर कार्यवाही करती है।


भारतीय न्याय संहिता में चोरी की धारा 303 में सजा - Punishment in Hindi

Bhartiya Nyaya Sanhita की धारा 303 में चोरी के लिए सजा (Punishment For Theft) के बारे में बताया गया है, कि जो कोई भी व्यक्ति चोरी करने के अपराध का दोषी (Guilty) पाया जाता है। उसे सजा के तौर पर तीन साल तक की कैद व जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। वही बार-बार इस तरह के अपराध करने वालों के लिए सज़ा ज़्यादा सख्त हो सकती है। जिसमें कम से कम एक साल की सज़ा से लेकर 5 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों शामिल है।


BNS Section 303 में जमानत कब और कैसे मिलती है

भारतीय न्याय संहिता की धारा 303 के प्रावधान (Provision) अनुसार चोरी करना कानून एक गंभीर अपराध माना जाता है, जिसे संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) की श्रेणी में रखा गया है। जिसके कारण यह एक गैर-जमानती (Non-bailable) सेक्शन है, जिसका सीधा मतलब यह है कि चोरी करने वाले व्यक्ति को जमानत मिलने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

लेकिन कुछ मामले ऐसे भी होते है, जिनमें किसी संपत्ति की चोरी उसकी कीमत पर निर्भर करती है। सरल भाषा में समझे तो यदि चोरी की गई वस्तु ज्यादा महंगी नहीं है तो उस केस में आपको एक वकील की सहायता से जमानत (Bail) मिलने में आसानी हो जाती है।

चोरी के अपराध से संबधित अन्य धाराएं:


कुछ ऐसे कार्य जो बीएनएस सेक्शन 303 के तहत चोरी की श्रेणी में आते है

  • किसी की जमीन, घर, या वाहन को बिना अनुमति के ले लेना।
  • नकद, क्रेडिट कार्ड, या बैंक खाते से पैसे चुराना।
  • किसी कंपनी से उपकरण, सामान, या सेवाएं बिना अनुमति के ले लेना।
  • इंटरनेट पर हैकिंग करके जानकारी, डेटा, या फाइलें चुराना।
  • दुकान या स्टोर से किसी वस्तु को बेईमानी के इरादे से अपने साथ ले जाना।
  • किसी की सेवाओं (services) का उपयोग करना और उसके बदले में उचित भुगतान (Payment) न करना।
  • किसी के खेत से फसल चुराना या किसी के पेड़ से फल बिना अनुमति के लेना।
  • ऐतिहासिक या सांस्कृतिक वस्तुओं को अवैध (Illegal) रूप से लेना या बेचना।
  • निजता की चोरी: किसी की व्यक्तिगत जानकारी, जैसे कि पहचान पत्र, पासवर्ड, या अन्य व्यक्तिगत दस्तावेज़ (Personal Documents) चुराना।




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