धारा 124क आईपीसी - IPC 124क in Hindi - सजा और जमानत - राजद्रोह

अपडेट किया गया: 01 Mar, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

धारा 124क का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 124क के अनुसार

जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा 3।।। 4[भारत] 5।।। में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घॄणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का, प्रयत्न करेगा या अप्रीति प्रदीप्त करेगा, या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह 6[आजीवन कारावास] से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा ।
स्पष्टीकरण 1--अप्रीति पद के अंतर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनाएं आती हैं ।
स्पष्टीकरण 2--घॄणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अननुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं ।
स्पष्टीकरण 3--घॄणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार की प्रशासनिक या अन्य व्रिEया के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करती ।


धारा 124क- राजद्रोह का संक्षिप्त इतिहास

धारा 124क को कई बार अनेक प्रारूपों में कई अदालतों में भिन्न भिन्न मामलों में चुनौती मिलती आई है। केदारनाथ सिंह vs बिहार राज्य,1962 मामले में संवैधानिक बेंच द्वारा धारा 124क के प्रावधान की वैधता को भी कटघरे मे खड़ा कर दिया गया एवं इसकी वैधता पर कई प्रश्नचिन्ह भी लगें। तत्पश्चात बेंच द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया जिसके अंतर्गत पूर्व शर्तों को भी शामिल किया गया एवं दिशनिर्देशों के साथ इसे पारित किया गया। जिसके अंतर्गत यह कहा गया कि वह व्यक्ति जो किसी शब्द, संकेतों या अभ्यावेदनों के द्वारा सरकार के प्रति घृणा, अवमानना या सरकार के प्रति अरुचि या शत्रुता पैदा करने का प्रयास करता है या हिंसा या अव्यवस्था पैदा करे या सार्वजनिक अव्यवस्थाकी आशंका के अंतर्गत कोई कार्य करता है तब वह धारा 124क के प्रावधानानुसार दोषी होगा। धारा 124क को मनमाने ढंग से किसी पर भी लागू ना किया जाए यह सुनिश्चित करने के लिए इस सर्कुलर के अंतर्गत यह भी निर्देश दिया गया कि ऐसे मुद्दों` में पब्लिक प्रासिक्यूटर को डिस्ट्रिक्ट लॉ ऑफिसर से सलाह लेना चाहिए।


भारत में किन गतिविधियों को देशद्रोह माना जाता है?

भारतीय अदालतों द्वारा राजद्रोह की व्याख्या के अनुसार, निम्नलिखित गतिविधियों को देशद्रोह के अंतर्गत माना गया है;
• भारत सरकार के खिलाफ नारे लगाने वाले लोगों का एक समूह।
• किसी व्यक्ति द्वारा किया गया भाषण जो स्पष्ट रूप से हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था को उकसाता है।
• लिखित कार्य, जैसे समाचार पत्र का लेख, जो हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था को उकसाता हो।


धारा 124क : संवैधानिक या असंवैधानिक

1950 के दशक में राजद्रोह कानूनों के संबंध में तीन महत्वपूर्ण मामलों के निर्णय हुए जो तारा सिंह गोपी चंद बनाम राज्य (बाद में "तारा सिंह निर्णय" के रूप में संदर्भित), साबिर रज़ा बनाम राज्य (बाद में "सबीर रज़ा निर्णय" के रूप में संदर्भित) और राम नंदन बनाम राज्य (बाद में "राम नंदन निर्णय" के रूप में संदर्भित) थे।

साल 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में आईपीसी की धारा 124A की संवैधानिकता को बरकरार रखा और सरकार के प्रति अव्यवस्था और हिंसा के कृत्यों के माध्यम से सार्वजनिक अव्यवस्था को उकसाए बिना सरकार के उपायों पर टिप्पणी करने के बीच अंतर को स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कानून द्वारा स्थापित सरकार को राज्य का दृश्य प्रतीक माना जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि स्पष्ट किया कि धारा 124क को सावधानीपूर्वक एवं स्पष्ट रूप से इंगित करने के लिए कहा गया है सरकार के कार्यों या योजनाओ में सुधार या कानूनी तरीकों से परिवर्तन की दृष्टि से उसके उपायों की अस्वीकृति व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द धारा 124क के सेक्शन के भीतर नहीं आएंगे। इसी तरह, कठोर शब्दों में टिप्पणियां या सरकार के कार्यों में अस्वीकृति व्यक्त करना, या फिर भावनाओं को उत्तेजित किए बिना जो हिंसा के कृत्यों द्वारा सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के लिए झुकाव उत्पन्न करें, इस प्रकार के कार्य धारा 124क के अंतर्गत दंडनीय नहीं होंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो, कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति निष्ठा एक ही बात नहीं है सरकार, या उसकी एजेंसियों के उपायों या कृत्यों पर कड़े शब्दों में टिप्पणी करने के रूप में की गई टिप्पणी ताकि लोगों की स्थिति में सुधार किया जा सके या वैध तरीकों से उन कृत्यों या उपायों को रद्द करने या बदलने को सुरक्षित किया जा सके, जो जो सार्वजनिक अव्यवस्था या हिंसा का प्रारूप नहीं लेती हैं, इस धारा 124क के अंतर्गत सुरक्षित हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अरुण जेटली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में यह जांचने का मौका मिला था कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की आलोचना करने वाला एक लेख राजद्रोह होगा या नहीं। यह माना गया कि आईपीसी की धारा 124क के तहत गठित होने वाले अपराध के लिए, लिखित या बोले गए शब्दों को "सार्वजनिक अव्यवस्था या कानून एवं व्यवस्था की गड़बड़ी पैदा करने की हानिकारक प्रवृत्ति" के रूप में योग्य होना चाहिए।


धारा 124क के समर्थन में दिए गए तर्क:

• देशद्रोही, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों का मुकाबला करने में आईपीसी की धारा 124क की उपयोगिता है।

• यह चुनी हुई सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाता है। कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्व राज्य की स्थिरता के लिए एक अनिवार्य शर्त है।

• अगर अदालत की अवमानना ​​दंडात्मक कार्रवाई को आमंत्रित करती है, तो सरकार की अवमानना ​​पर भी सजा होनी चाहिए।

• विभिन्न राज्यों के कई जिले माओवादी विद्रोह का सामना करते हैं और विद्रोही समूह समानांतर प्रशासन चलाते हैं। ये समूह खुले तौर पर क्रांति द्वारा राज्य सरकार को उखाड़ फेंकने की वकालत करते हैं। इस परिस्थितियों से छुटकारा पाने मे धारा 124क का अहम योगदान है।

• इस अवस्था में, धारा 124क को कुछ अत्यधिक प्रचारित मामलों में गलत तरीके से लागू किया गया है केवल इस कारण से इसे समाप्त करने की सलाह गलत होगी।


धारा 124क के विरोध मे दिए गए तर्क:

• धारा 124क अंग्रेज़ी विरासत का एक अवशेष है और भारतीय लोकतंत्र में अनुपयुक्त है। यह अभिव्यक्ति की संवैधानिक रूप से स्वतंत्रता के तर्क मे उठे कारणों के समक्ष एक बाधा है।

• सरकार की असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मजबूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्व हैं, इसे देशद्रोह के रूप में नहीं बनाया जाना चाहिए।

• सवाल करने, आलोचना करने और शासकों को बदलने का अधिकार लोकतंत्र के विचार के लिए मौलिक विचार होना चाहिए।

• भारतीयों पर अत्याचार करने के लिए देशद्रोह का परिचय देने वाले अंग्रेजों ने अपने देश में स्वयं कानून को समाप्त कर दिया है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि भारत इस धारा को समाप्त न करे।

• आईपीसी और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 2019 (यूएपीए) में ऐसे प्रावधान हैं जो "सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने" या "हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने" को दंडित करते हैं। ये राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए पर्याप्त हैं। इसके होते हुए धारा 124क की कोई आवश्यकता नहीं है।

• साल 1979 में, भारत ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (आईसीसीपीआर) की पुष्टि की, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों को निर्धारित करता है। हालांकि, देशद्रोह का दुरुपयोग और मनमाने ढंग से आरोप लगाना भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप नहीं है।


धारा 124क देशद्रोह की व्याख्या एवं निष्कर्ष

अदालतों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार की आलोचना लोकतंत्र के कामकाज के लिए अभिन्न अंग है और सरकार की हर आलोचना को देशद्रोह नहीं माना जाएगा। राजद्रोह का उद्देश्य असंतोष और विद्रोह को प्रेरित करना और जनता को विद्रोह के लिए उकसाकर सरकार के विरोध को भड़काना समझा जाता है। जब से इंग्लैंड में राजद्रोह के कानून की उत्पत्ति हुई है, तब से इसके आवेदन में हमेशा विसंगतियां रही हैं क्योंकि आवेदन सभी मामलों में अनिश्चित और गैर-समान है। प्रारंभ में, इसके आवेदन को इस तथ्य में अस्पष्ट और अनिश्चित रखा गया था कि इसका उपयोग जनता के उत्पीड़न के लिए किया जाता था जब यह उनके हितों के अनुकूल होता था और उनके अधिकार को कम करता था एवं राज्य के अधिकार को खतरा पैदा करने वाले भाषणों पर अंकुश लगाकर इसे राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया जाता था। परंतु आज के समय मे धारा 124क के अंतर्गत लगने वाले आरोपों मे कई विसंगतियाँ आ गईं हैं जिनका निवारण करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।


धारा 124क के अंतर्गत लगे आरोपों में अभियुक्त को उसका वकील किस प्रकार सहायता प्रदान कर सकता है?

अनुच्छेद 22(1) प्रत्येक व्यक्ति को उसकी इच्छा से चुने गए वकील द्वारा बचाव के अधिकार से वंचित न होने का मौलिक अधिकार देता है। अनुच्छेद 14 भारत में कानूनी तौर पर समानता और समान संरक्षण का प्रावधान करता है। अनुच्छेद 39ए, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा है, जिसमें कहा गया है कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के समान अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करता है। इन सभी अधिकारों को मद्देनजर रखते हुए एक अभियुक्त अपने वकील से धारा 124क के अंतर्गत लगे आरोपों के खिलाफ सहायता प्राप्त कर सकता है।



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