आपसी समझौते का मतलब क्या है? दो पक्षों के बीच समझौते से केस का निपटारा कैसे होता है



साथियों आज के इस लेख में, हम बात करेंगे कोर्ट केसों को समझौते (Compromise) या आपसी समझौते (Mutual Agreement) से निपटान करने के विषय में। जब भी किसी व्यक्ति पर किसी अपराध के आरोप (Blame) लगते है और उस पर कोर्ट में मुकदमा चलता है तो उसके बाद जब उसे अपनी गलती का अहसास होता है। ऐसे में वो व्यक्ति यही सोचता है कि कैसे भी करके इस समस्या से वह निकल सके।

इस लेख के माध्यम से हम आपको एक ऐसी ही प्रक्रिया के बारे में बताएंगे जिसके द्वारा आप किसी कानूनी विवाद या केस में सुलह करके उससे निकल सकते है। इसलिए आज हम जानेंगे कि दो पक्षों के बीच केस में आपसी समझौता कब और कैसे होता है? समझौता किन अपराधों में किया जा सकता है (Compoundable vs Non Compoundable offence)? कोर्ट व थाने में समझौता करने की प्रक्रिया?


विषयसूची

  1. दो पक्षों में आपसी समझौते (Compromise) का क्या मतलब होता है?
  2. थाने में समझौता (राजीनामा) किन अपराधों में किया जा सकता है?
  3. शमनीय अपराध (Compoundable Offences) या समझौता करने योग्य अपराध
  4. गैर-शमनीय अपराध (Non Compoundable offence) या समझौता ना करने योग्य अपराध
  5. कोर्ट के अंदर आपसी समझौता करके केस वापस लेने की प्रक्रिया:-
  6. आपसी समझौते को नियंत्रित करने वाले कानूनी प्रावधान
  7. दो पक्षों में आपसी समझौते (Compromise) के लाभ
  8. पुलिस स्टेशन में आपसी समझौता करने की प्रक्रिया
  9. अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

आपका यह जानना बहुत जरुरी है कि कैसे आप आपसी समझौते (सुलहनामा) के द्वारा ना केवल किसी कानूनी विवाद (Legal Dispute) या केस से निकल सकते है बल्कि इसके द्वारा आपका समय व पैसा भी बच सकता है। इसलिए, आपसी समझौते के विषय में आप सभी को जानकारी होना महत्वपूर्ण है, ताकि आप जरूरत अनुसार इसे अपना सकें और आपके जीवन में आने वाले किसी भी कानूनी विवाद के दौरान सफलतापूर्वक समाधान कर सकें। इसलिए आज के इस उपयोगी लेख को पूरा व अंत तक जरुर पढ़े।



दो पक्षों में आपसी समझौते (Compromise) का क्या मतलब होता है?

जब दो पक्षों के बीच किसी बात को लेकर कानूनी रुप से विवाद चल रहा होता है तो उस विवाद या केस को समझौता (Compromise) करके यानी पीड़ित पक्ष व आरोपी पक्ष के द्वारा आपस में सुलह करके आपसी समझौते से खत्म किया जा सकता है। भारत में इस प्रक्रिया को “अदालत के बाहर समझौता (out-of-court settlement)" करना कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में दोनों पक्ष अपने-अपने वकीलों (Lawyers) के माध्यम से एक दूसरे से बातचीत करते है और यह फैसला लेते है कि आगे की कोर्ट कार्यवाही ना कि जाए। इसके लिए दोनों पक्ष कुछ शर्तों के साथ आपसी सहमति (Mutual Consent) से केस को आपसी समझौता करके खत्म कर लेते है। सुलहनामा करने के लिए कुछ मामलों में अदालत की अनुमति (Permission) की आवश्यकता पड़ती है और कुछ मामलों में बिना अदालत की अनुमति के बिना भी समझौता किया जा सकता है।

इस कानूनी प्रक्रिया को समझौता, राजीनामा या आम भाषा में कहे तो केस वापिस लेने की प्रक्रिया भी कहा जा सकता है।



शमनीय अपराध (Compoundable Offences) या समझौता करने योग्य अपराध

शमनीय अपराध (Compoundable Offense) उन अपराधों को कहा जाता है जिन अपराधों में दोनों पक्षों यानी पीड़ित पक्ष और आरोपी पक्ष आपस में समझौता कर सकते है। भारतीय दंड संहिता के अदंर अलग-अलग अपराधों के तहत बहुत सारी धाराँए (IPC Sections) बनाई गई है, जो अलग-अलग अपराधों के बारें में बताती है। इनमें से कुछ अपराध ऐसे होते है जिनमें दोनों पक्ष समझौता कर सकते है। ऐसे मामले जो ज्यादा गंभीर नहीं होता या छोटे अपराध होते है उन्हीं में Compromise किया जा सकता है।

आइये जानते है समझौता करने योग्य अपराधों के कुछ उदाहरण:-

  • मारपीट करने की छोटी-मोटी हरकतें।
  • चोरी (Theft) के साधारण मामले।
  • संपत्ति (Property) को नुकसान पहुँचाने वाले मामूली अपराध।
  • मानहानि (Defamation) के कुछ मामलों में।
  • धोखाधड़ी (Fraud) या छोटी रकम से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों में।


गैर-शमनीय अपराध (Non Compoundable offence) या समझौता ना करने योग्य अपराध

गैर-शमनीय अपराध वो होते है जिनमें पीड़ित (Victim) और आरोपी (Accused) के बीच समझौता नहीं किया जा सकता या Compromise की अनुमति नहीं होती। ऐसे मामलों में आरोपी पर न्यायालय द्वारा आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceedings) की जाती है और दोषी (Guilty) पाये जाने पर सजा (Punishment) भी दी जाती है।

गैर-शमनयोग्य या गैर-समझौते वाले अपराध ऐसे अपराध होते है जो बहुत ही गंभीर (Serious) होते है और उनमें Compromise नहीं हो सकता आइये जानते है समझौता ना किए जाने वाले कुछ अपराधों के उदाहरणों को:-

गैर-शमनीय या समझौता ना करने योग्य केस

  • हत्या (धारा 302)
  • बलात्कार (धारा 376)
  • फिरौती के लिए अपहरण (धारा 364ए)
  • दहेज हत्या (धारा 304बी,)
  • एसिड अटैक (धारा 326ए,)
  • मानव तस्करी (भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न धाराएं)
  • आतंकवाद से संबंधित अपराध (आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत विभिन्न धाराएं)
  • स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के तहत अपराध
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराध
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत अपराध

ये आपसी समझौता ना किए जाने वाले अपराधों के कुछ ही उदाहरण है इसके अलावा भी बहुत से ऐसे गंभीर अपराध हो सकते है जो राजीनामे के लायक नहीं होते।



कोर्ट के अंदर आपसी समझौता करके केस वापस लेने की प्रक्रिया:-

भारतीय न्यायालयों में आपसी समझौते की प्रक्रिया इस प्रकार है:-

  • समझौता करने से पहले यह देखना बहुत जरुरी है कि वह मामला जिसमें सुलह होनी है वो समझौते के लायक है भी या नहीं।
  • सबसे पहले Compromise के लिए दोनों पक्षों के वकील आपसी सहमति के लिए बातचीत करते है यदि दोनों पक्ष सुलह या समझौते के लिए सहमत है तो आपसी समझौते के इरादे को दर्ज किया जाता है। जिसमें समझौते का उद्देश्य, और कुछ शर्तें शामिल होती है।
  • इसके बाद दोनों पक्षों के वकील Compromise के नियमों व शर्तों के अनुच्छेदों (Paragraphs) को तैयार करते है और आगे न्यायिक अधिकारियों (Judicial Officers) के सामने पेश करते है।
  • इसके बाद न्यायिक अधिकारी समझौते के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करते है।
  • यदि न्यायिक अधिकारी समझौते से संतुष्ट होते है तो Compromise के अनुच्छेदों को स्वीकार कर समझौते के लिए फैसला सुनाया जाता है।
  • इसके बाद न्यायालय द्वारा आदेश (Order) दिया जाता है और विवादित मामले को खत्म कर दिया जाता है।

इसके अलावा सुलह की इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव भी देखा जा सकता है इसलिए ज्यादा व स्टीक जानकारी के लिए आपको किसी काबिल वकील से कानूनी परामर्श (Legal Advice) लेने की सलाह दी जाती है।



आपसी समझौते को नियंत्रित करने वाले कानूनी प्रावधान

भारतीय कानून के अंदर समझौते का कानून मुख्य रुप से नागरिक प्रक्रिया संहिता (CPC) और मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अंतर्गत शासित होता है। यह विवादों को सुलझाने और न्यायिक प्रणाली पर बोझ को कम करने के लिए आपसी समझौते को बढ़ावा देता है।



दो पक्षों में आपसी समझौते (Compromise) के लाभ

  • आपसी समझौते की प्रक्रिया से किसी केस का समाधान होने में तेजी आती है।
  • इस प्रक्रिया के द्वारा पीड़ित पक्ष व आरोपी पक्ष दोनों के समय व पैसे की बचत होती है।
  • आपसी सहमति से किए गए समझौते के द्वारा दोबारा से रिश्तों को जोड़ने में मदद मिल सकती है।
  • इस प्रक्रिया के द्वारा आरोपी पक्ष आर्थिक रुप से मदद करके या अपनी गलती मानकर अगर पीड़ित पक्ष से माफी मांग कर Compromise कर लेता है तो वह कोर्ट द्वारा दी जाने वाली सजा से बच सकता है।
  • आपस में सुलह करके केस को जल्द से जल्द खत्म करके दोनों पक्ष तनाव व चिंता से बच सकते है। क्योंकि अगर कोई केस लंबा चलता है तो दोनों ही पक्षों को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते है और दोनों ही पक्षों के बीच काफी लंबे समय तक तनाव व चिंता का माहौल बना रहता है।
  • आपस में सुलह करके केस को खत्म करने या केस को वापस लेने से कोर्ट पर बढ़ते केसों के दबाव में भी कमी आती है।

अगर किसी विवाद का आपसी बातचीत से समाधान निकल सकता है तो वह सबसे अच्छा तरीका होता है जो दोनों ही पक्षों के लिए लाभकारी होता है। परन्तु कुछ ऐसे अपराध जो बहुत ही गंभीर होते है जैसे हत्या, बलात्कार, ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार से सुलह नहीं किया जाता ऐसे अपराध करने वाले व्यक्तियों को न्यायालय से सजा जरुर मिलनी चाहिए।



थाने में समझौता (राजीनामा) किन अपराधों में किया जा सकता है?

थाने (Police station) में समझौता किए जाने वाले अपराधों के उदाहरण इस प्रकार है:-

  • छोटे मूल्य की वस्तुओं की चोरी, जैसे मोबाइल, सामान, या पैसे आदि।
  • ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन करना जैसे बिना हेल्मेट, या सीटबेल्ट के बाइक या कार चलाना, ट्रैफिक लाइट का उल्लंघन करना, तेज गति से गाड़ी चलाना आदि।
  • साधारण शारीरिक हमला, या कोई छोटी-मोटी मारपीट।
  • आपसी झगड़ो के मामले।
  • धोखाधड़ी, चैक बाउंस जैसे मामले।


पुलिस स्टेशन में आपसी समझौता करने की प्रक्रिया

  • जब भी किसी अपराध की शिकायत (Complaint) पुलिस को मिलती है तो पुलिस आरोपी व्यक्ति को पुलिस स्टेशन लेकर आती है या उसे थाने में बुलाया जाता है।
  • अगर कोई व्यक्ति थाने में बुलाने पर नहीं आता तो पुलिस उसे गिरफ्तार (Arrest) करके लाती है और उसके गिरफ्तारी को रिकार्ड किया जाता है और उसके खिलाफ दी गई शिकायत या अपराध की पूरी जानकारी उसे दी जाती है।
  • इसके बाद पुलिस के द्वारा शिकायतकर्ता पक्ष को भी बुलाया जाता है यदि आरोपी व्यक्ति अपनी गलती को स्वीकारता है और शिकायतकर्ता से माफी मांगता है और शिकायतकर्ता उसे माफ कर देता है तो उस मामले को थाने में ही आपसी Compromise के तहत खत्म किया जा सकता है।

नीचे हमने कुछ पोपुलर शमनीय और गैर-शमनीय अपराध की धाराओं के नाम दिए है:
 

जिन धाराओं में समझौता नहीं हो सकता समझौता करने योग्य धाराएँ
धारा 302 - हत्या के लिए सज़ा   धारा 506 - आपराधिक धमकी देना
धारा 304 - गैर इरादतन हत्या करना धारा 504 - शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना
धारा 307 - हत्या का प्रयास धारा 341 - ग़लत तरीके से रोकने के लिए सज़ा
धारा 376 - बलात्कार के लिए सज़ा  धारा 323 - स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने के लिए सज़ा
धारा 376D - सामूहिक बलात्कार के लिए सज़ा   धारा 342 - ग़लत तरीके से कैद करने के लिए सज़ा
धारा 395 - डकैती के लिए सज़ा   धारा 358 - किसी महिला की लज्जा भंग करने के लिए उस पर बल प्रयोग करना
धारा 396 - हत्या के साथ डकैती के लिए सजा    
धारा 448 - गृह-अतिचार  
धारा 398 - घातक हथियार से लैस होकर लूट या डकैती करने का प्रयास    

इनके अलावा भी बहुत से अपराध ऐसे है जो समझौते योग्य भी है और बहुत से समझौते योग्य नहीं भी है। ये सूची केवल आप सभी को जानकारी देने के लिए दी गई है जिससे आपको मदद मिल सकें। यदि आपको किसी भी IPC Section के बारे में विस्तार से जानकारी चाहते है तो आप हमारे सभी Indian Penal Code पर बनाए गए लेख पढ़ सकते है


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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


न्यायालय में आपसी समझौता क्या है?

अदालत में समझौते का मतलब है किसी कानूनी विवाद में शामिल दोनों पक्षों द्वारा किसी विवाद या केस को आपसी सहमति से समझौता करके खत्म कर देना।  



यदि एक पक्ष आपसी समझौते का उल्लंघन करता है तो क्या होगा?

यदि कोई व्यक्ति इस प्रक्रिया का उल्लंघन करता है तो दूसरा पक्ष उसके खिलाफ दोबारा अदालत में जा सकता है और आगे की कानूनी कार्यवाही कर सकता है।



क्या मुझे आपसी समझौते के लिए वकील की आवश्यकता है?

ऐसे मामलों में वकील का होना इतना जरुरी नहीं है परन्तु एक वकील का होना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि वकील को सारी कानूनी जानकारी होती है इसलिए वह आपका सही मार्गदर्शन करेगा और आपकी पूरी मदद करेगा।



न्यायालय की अनुमति से होने वाले समझौते क्या होते है?

ऐसे मामले जो गंभीर प्रकृति के होते है जिनमें बिना कोर्ट की अनुमति के सुलह नहीं की जा सकती। ऐसे मामलों में यदि कोई व्यक्ति सुलह करना चाहता है तो उसे सबसे पहले कोर्ट से अनुमति लेनी होगी। जिसके बाद कोर्ट उस पर विचार करने के बाद ही अपना फैसला सुनाती है।



क्या मैं अदालती कार्यवाही के किसी भी चरण में आपसी समझौते का विकल्प चुन सकता हूँ?

ज्यादातर मामलों में, अदालती कार्यवाही के किसी भी चरण में, यहां तक कि मुकदमे के दौरान भी आपसी समझौते का प्रयास किया जा सकता है।