IPC 378 & 379 in Hindi - चोरी की धारा में सजा, जमानत और बचाव

अपडेट किया गया: 01 Apr, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

दोस्तो आज के समय में हमारे देश में जहाँ दिन-प्रतिदिन अपराध बढ़ते जा रहे है। उसी प्रकार उनको रोकने के लिये हमारे देश में भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत बहुत सारे कानून (Law) बनाए गए है। जिनकी मदद से पीड़ीत व्यक्ति को न्याय व दोषी व्यक्ति को कठोर से कठोर सजा देने का प्रावधान (Provision) है।अलग-अलग अपराधों के लिये IPC के अंतर्गत अलग-अलग धाराएं बनाई गई है। आज के लेख में हम 2 ऐसी ही धाराओं के बारे में आप सभी को बताने जा रहे है। आज हम जानेंगे आईपीसी धारा 378 और 379 क्या है (IPC 378 & 379 in Hindi)? इन दोनों धाराओं में सजा और जमानत का क्या प्रावधान है?

इसके साथ ही हम जानेंगे, इन दोनों IPC Section में अंतर और आपस में संबंध में क्या है? IPC 378 और 379 जैसी Sections का प्रयोग किस अपराध के लिये किया जाता है? इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं सब सवालों के भी जवाब विस्तार से देंगे। अगर आप इन दोनों धाराओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी चाहते है तो इस लेख को पूरा पढें।


आईपीसी धारा 379 और 378 में अंतर

IPC 378 और 379 को जानने के लिये सबसे पहले इन दोनो के अंतर को समझना होगा। 378 के साथ में 379 को समझना आपके इसलिए जरुरी है क्योंकि दोनो धाराओ का इस्तेमाल चोरी जैसे संज्ञेय (गंभीर) अपराध के लिये किया जाता है। चलिए नीचे इन दोनों धाराओं के बारे में जानते है।


धारा 378 क्या है - IPC 378 in Hindi

भारतीय दंड संहिता के अनुसार IPC Section 378 में केवल चोरी के अपराध को परिभाषित किया गया है कि चोरी क्या होती है? जब कोई व्यक्ति किसी भी मूल्यवान वस्तु या कोई भी अन्य वस्तु को उसके मालिक की सहमति के बिना उठाकर या बेइमानी (Dishonesty) से अपने पास रखने के लिए ले जाता है तो माना जाएगा की उसने चोरी (Theft) की है।

जो संपत्ति चोरी हुई है उस पर किसी व्यक्ति का अधिकार होना चाहिए तभी माना जाएगा की वो संपत्ति चोरी हुई है हमारे कानून में संपत्ति को दो भागो में बाँटा गया है चल संपत्ति (Moveable Property) और अचल संपत्ति। चल संपत्ति वो संपत्ति होती है जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सके। जैसे कि कुर्सी मोबाईल कार, इत्यादि।

अचल संपत्ति वो होती है जिसको उसके स्थान से नहीं हटाया जा सकता हो । जैसे मकान, पेड़ इत्यादि इसलिये अगर कोई व्यक्ति किसी की चल संपत्ति को बिना उसके मालिक को बताए कही भी ले जाता है तो यह चोरी का अपराध माना जाता है।


आईपीसी धारा 379 क्या है - 379 IPC in Hindi

आईपीसी की धारा 379 का इस्तेमाल चोरी करने वाले व्यक्ति को सजा देने के लिए किया जाता है जैसा कि आपको हमने बताया कि धारा 378 में केवल इस अपराध को परिभाषित किया गया है। परन्तु चोरी करने के अपराधी व्यक्ति को सजा धारा 379 के तहत दी जाती है।


IPC 379 लागू होने से संबंधित कुछ मुख्य बातें?

भारतीय दंड संहिता की धारा 379 चोरी के अपराध को साबित करने के लिए इन सभी मुख्य बातों का होना जरुरी है। यदि किसी भी कार्य में ये सभी बातें शामिल पाई जाती है तो उसे Theft का अपराध माना जा सकता है। धारा 379 की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:-

  • बेईमान इरादा: आरोपी व्यक्ति का किसी वस्तु को प्राप्त करने का बेईमान इरादा होना चाहिए, इसका मतलब है कि उस व्यक्ति का इरादा किसी और की वस्तु को उसके मालिक की सहमति (Consent) के बिना अपने साथ ले जाने का होना चाहिए।
  • संपत्ति: चोरी के अपराध में "संपत्ति" लेना शामिल है। Theft का अपराध तभी माना जाता है जब कोई व्यक्ति किसी संपत्ति, मूल्यवान वस्तु, पैसों को या किसी अन्य वस्तु की चोरी कर लेता है।
  • चल संपत्ति: ऐसी संपत्ति जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके उसे चल संपत्ति कहा जाता है। जैसे कार, पैसे, ज्वैलरी, या कोई भी ऐसी वस्तु जिसे आरोपी व्यक्ति अपने साथ ले जा सकेगा तो यह IPC Section उस पर लागू होगी।
  • सहमति के बिना: किसी भी वस्तु की चोरी तब ही मानी जाएगी जब वह उसके मालिक की अनुमति के बिना ले ली जाएगी। यदि उस वस्तु का मालिक खुद किसी व्यक्ति को उस वस्तु को ले जाने की अनुमति देता है तो वह Theft नहीं मानी जाएगी।

धारा 379 में सजा क्या मिलती है - IPC 379 Punishment

दोस्तो जैसा कि हमने आपको बताया कि जो कोई भी करता है वह धारा 379 के अंतर्गत अपराधी माना जाता है। लेकिन चोरी की सजा धारा 379 के तहत दी जाती है। आइये जानते है कि इसमे क्या सजा मिलती है ।

अगर कोई भी व्यकित जिस पर चोरी का आरोप हो और व न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाता है तो उस व्यक्ति पर IPC Dhara 379 के तहत 3 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास तक सजा दी जा सकती है या जुर्माना भी लगाया जाता है या फिर दोनो भी लगाया जा सकता है।


आईपीसी की धारा 379 में जमानत कैसे मिलती है।

किसी भी वस्तु को चोरी करना एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) माना जाता है ये एक ऐसा Crime होता है जिसमें पुलिस को पीड़ित व्यक्ति (Victim Person) की शिकायत पर जल्द से जल्द शिकायत दर्ज करके आरोपी को गिरफ्तार (Arrest) करना होता है। इसलिए यह अपराध गैर-जमानतीय (Non- Bailable) श्रेणी में आता है। जिसका अर्थ होता है कि आरोपी व्यक्ति को अधिकार के तौर पर जमानत नहीं मिल सकती।

इस प्रकार के मामलों में जमानत (Bail) देने का फैसला अदालत के द्वारा कुछ परिस्थितियों के आधार पर लिया जा सकता है। जैसे अपराध की गंभीरता, आरोपी के खिलाफ सबूतों की कमी, आरोपी व्यक्ति के द्वारा अपने बचाव (Defence) में पेश किए गए सबूतों (Evidences) के द्वारा आदि। यह किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (Triable) होता है।

ऐसे मामलों में एक अच्छे वकील (lawyer) की आवश्यकता जरुर पड़ती है। जो आपको जमानत दिलाने में मदद कर सकता है या पीड़ित पक्ष से बात करके आपसी सहमति से समझौता (Compromise) कराने में आपकी सहायता कर सकता है।



चोरी और लूटपाट से संबधित भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराएं

दोस्तों आपने अभी तक चोरी की धारा 379 के बारे में तो सभी जानकारी प्राप्त कर ली लेकिन क्या आपको पता है ऐसे ही कुछ और भी अपराध है जो Theft के अपराध के साथ लगाई जा सकती है। इसलिए इनके बारे में भी जानकारी प्राप्त करना आप सभी के लिए बहुत ही जरुरी है, आइये जानते है उन सभी IPC Sections के बारे में।

  • IPC Section 392: यह धारा लूट-पाट (Robbery) के अपराध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ लूट-पाट करता है तो, उसे 10 वर्ष की कैद व जुर्माने से दंडित किया जाएगा। लूट-पाट के दौरान किसी वस्तु की चोरी करने के लिए बल का प्रयोग करना या धमकी देना भी शामिल होते है।
  • IPC Section 411: धारा 411 किसी भी चोरी की संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करने के अपराध के बारे में बताती है। इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी चोरी की गई वस्तु या संपत्ति को खरीदता है या अपने पास रखता है तो उसे जेल की सजा व जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
  • IPC Section 395: धारा 395 के अनुसार डकैती के बारे में बताया गया है। जिसका मतलब होता है कि पांच या पांच से अधिक व्यक्तियों का समूह (Group) जब किसी व्यक्ति से लूट-पाट करने, चोट पहुंचाने के इरादे से Crime करता है तो उसे इस Section के तहत सजा दी जाती है।
  • IPC Section 384: इसमें बताया गया है कि जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ जबरन वसूली (Extortion) करेगा, उसे तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

IPC 378 & 379 से जुडी सावधानी

दोस्तों अगर आपने इस आर्टिकल को बिल्कुल ध्यान से पूरा पढ़ा है तो आपको पता लग गया होगा कि चोरी एक गंभीर अपराध कि श्रेणी में आता है। बहुत बार ऐसा होता है कि कुछ लोग ना चाहते हुए भी बिना कोई Crime करें Theft जैसे गंभीर अपराध में फंस जाते है और उन पर भी आईपीसी की Dhara 379 लग सकती है। आइये जानते है कुछ ऐसी ही सावधानियों के बारे में जिनकी मदद से ऐसी किसी भी मुश्किल से बचा जा सकता है।

  • जब भी आप अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर जाते हैं तो उनकी सहमति के बिना या उनकी आज्ञा के बिना कोई भी वस्तु अपने साथ लेकर नहीं जाते तो ऐसा करना चोरी (Theft) माना जाता है।
  • अगर आपको कोई भी मूल्यवान वस्तु कही भी लावारिस पड़ी मिलती है तो उसे या तो ना उठाएं और अगर उठाते भी है तो तुरन्त अपने पास के पुलिस स्टेशन में दे आए
  • अगर कोई भी अंजान व्यक्ति आपके पास आता है और कोई वस्तु आपके पास रखने को बोलता है तो ऐसा करने से बचे क्या पता वह वस्तु चोरी की हो तो उसकी वजह से आपको कोई परेशानी को सामना करना पड़ जाएं।
  • चोरी जैसे अपराधों से खुद को और दूसरों को बचाने के लिए हमेशा जागरुक करें। व कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति के साथ ना रहे जो जो ऐसे आपराधिक गतिविधियों (Criminal Activities) में शामिल रहता हो।

Offence : चोरी


Punishment : 3 साल या जुर्माना या दोनों


Cognizance : संज्ञेय


Bail : गैर जमानतीय


Triable : कोई भी मजिस्ट्रेट





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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


आईपीसी धारा 379 क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 379 चोरी के अपराध की सजा के बारे में बताती है।



चोरी और लूट-पाट में क्या अंतर है?

चोरी और लूट-पाट दोनों में ही किसी संपत्ति को गैरकानूनी तरीके से लेना शामिल होता है। परन्तु इन दोनों में ये अंतर होता है कि लूट-पाट में अपराधी बल या हिंसा का प्रयोग करके कोई वस्तु प्राप्त करता है, लेकिन धारा 379 में बेईमानी से किसी वस्तु को प्राप्त करता है।



IPC 379 के तहत चोरी के लिए क्या सज़ा है?

IPC Section 379 के तहत यदि कोई व्यक्ति चोरी करने का दोषी पाया जाता है तो उसे अदालत द्वारा 3 वर्ष तक की कैद व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।



क्या चोरी का समझौता या इसमें शामिल पक्षों के बीच समझौता किया जा सकता है?

हां, इस प्रकार के मामलों में दोनों पक्षों के द्वारा समझौता किया जा सकता है। जिसके लिए अदालत भी अपनी कुछ शर्तें लगा सकती है, यदि दोनों पक्ष इन सभी शर्तों का पालन करते है और आपस में सहमत होते है तो समझौता किया जा सकता है।



क्या IPC 379 के तहत चोरी के लिए सिविल मुकदमा दायर किया जा सकता है?

हां, चोरी का शिकार व्यक्ति चोरी के कारण हुए नुकसान के मुआवजे (Compensation) का दावा करने के लिए एक नागरिक मुकदमा भी शुरू कर सकता है। Civil Case आपराधिक मामले से अलग होगा और इसका फैसला Civil Court में किया जाएगा।



क्या आईपीसी की धारा 379 के तहत किसी किशोर पर चोरी का आरोप लगाया जा सकता है?

हां, 18 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों पर भी इस आईपीसी सेक्शन के तहत आरोप लगाया जा सकता है। परन्तु इसका निपटान बच्चों के देखभाल के लिए बनाए गए संरक्षण अधिनियम के तहत किया जाता है। जिसमें सजा भी उनकी आयु को देखते हुए ही दी जाती है या बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है।