IPC Section 326 in Hindi | धारा 326 कब लगती है जमानत और सजा

अपडेट किया गया: 01 Apr, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


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जिस तरह से दिन-प्रतिदिन अपराध बढ़ते जा रहे उसी तरह अपराध को करने के भी अलग-अलग तरीके देखने को मिल रहे है। आजकल अपराधियों द्वारा किसी व्यक्ति को मारने या चोट पहुँचाने के लिए बहुत ही खतरनाक हथियारों (Dangerous Weapon) का इस्तेमाल किया जाता है तो आज के आर्टिकल में हम ऐसे ही अपराध की धारा के बारे में बहुत ही सरल भाषा में जानेंगे। आईपीसी की धारा 326 क्या है (What is IPC Section 326 in Hindi), ये धारा कब और किस क्राइम में लगती है? IPC 326 के मामले में सजा और जमानत कैसे मिलती है।

कुछ ऐसे अपराध होते है। जिनके बारें मे जानकारी होना बहुत ही जरुरी होता है। ताकि समय पर ऐसे अपराधों के परिणामों के बारे मे जानकारी प्राप्त करके इस प्रकार के मामलों से बचा जा सकें। इसलिए आज के लेख द्वारा हमने आईपीसी सेक्शन 326 से जुड़ी हर जानकारी को आप तक बहुत ही बारीकी से पहुँचाने का प्रयास किया है। इसलिए इस लेख को पूरा पढ़े।

धारा 326 क्या है – IPC Section 326 in Hindi

भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के तहत जो कोई भी, धारा 335 द्वारा प्रदान किए गए मामले को छोड़कर, खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छापूर्वक घोर उपहति कारित करेगा (Voluntarily Causing Grievous hurt by dangerous weapons or means) वह IPC 326 के अपराध का दोषी होगा। आइए इसे बहुत ही आसान भाषा में समझने का प्रयास करते है।

ऐसा कोई व्यक्ति जो अपनी खुद की इच्छा से किसी व्यक्ति को घातक हथियार से गंभीर रुप से जख्मी कर देता है। जिससे सामने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाने की भी संभावना हो तो ऐसा करने वाले व्यक्ति पर धारा 326 के तहत मुकदमा दर्ज (Court case) कर कार्यवाही की जाती है।

किन हालातो में हमला करने पर धारा 326 लग सकती है वो नीचे दिए गए है :-

  • स्वंय की इच्छा से किसी व्यक्ति को गोली मारना।
  • चाकू द्वारा या किसी काटने के किसी भी उपकरण द्वारा।
  • किसी मशीन द्वारा जिसका इस्तेमाल किसी हथियार के रुप में करके किसी को गंभीर चोट पहुँचाई जा सकें।
  • आग या किसी जलाने वाले गर्म पदार्थ से हमला करने पर।
  • किसी विस्फोटक वस्तु के द्वारा।
  • किसी सूंघने वाली या खाने वाली जहरीली वस्तु द्वारा।
  • हमला करने के लिए किसी खतरनाक जानवर का उपयोग करने पर।
  • यदि लड़ाई झगड़े के समय कोई शख्स किसी व्यक्ति की हड्डी या दाँत तोड़ देता है तो भी इस धारा के तहत उस पर कार्यवाही की जा सकती है।

आईपीसी धारा 326 कब लगती है - मुख्य बिंदु

धारा 326 का अपराध करने के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने के लिए कुछ जरुरी बातों का होना बहुत जरुरी है। जोकि इस प्रकार है:-

  • अभियुक्त (Accused) द्वारा इस इरादे से कोई कार्य किया जाना, जिससे किसी व्यक्ति को गंभीर चोट (Serious injury) लगने की पूरी संभावना हो।
  • यह अपराध खुद उसने अपनी इच्छा से किया हो ना कि किसी मजबूरी या दबाव में आकर।
  • हमला करते वक्त किसी ऐसे हथियार या वस्तु का उपयोग करना जिसके इस्तेमाल से सामने वाले व्यक्ति को बहुत ही गंभीर चोट लग जाए और जान जाने का खतरा भी हो जाए।

जाने - हत्या के प्रयास की धारा 307 कब लगती है?


IPC Section 326 Crime Example

एक बार प्रीति को एक लड़का बहुत दिन से परेशान कर रहा होता है। वो हर रोज प्रीति को उससे शादी करने की बात कहकर तंग करता है। लेकिन प्रीति एक दिन उसको थप्पड़ मार देती है। इस बात से वो लड़का बहुत गुस्सा हो जाता है। और प्रीति से बदला लेने की सोचता है।

एक दिन जब प्रीति अपने कार्यालय से घर जा रही होती है। तब वो उस पर चाकू से हमला कर देता है। जिससे प्रीति को गंभीर चोट लग जाती है। जिस कारण उसे हस्पताल ले जाया जाता है। वहाँ जाने के बाद पुलिस प्रीति का बयान लेकर उस लड़के को गिरफ्तार कर लेती है। और उस लड़के पर खतरनाक हथियार द्वारा हमला करने की धारा 326 के तहत FIR दर्ज कर आगे की कार्यवाही शुरू कर देती है।


गंभीर चोट और साधारण चोट के बीच क्या अंतर होता है?

साधारण चोट का तात्पर्य मामूली चोटों से है जो किसी व्यक्ति के शरीर या स्वास्थ्य को कोई महत्वपूर्ण नुकसान नहीं पहुँचाती हैं। इन चोटों में खरोंच या मामूली चोट शामिल हो सकती है। साधारण चोट को आम तौर पर एक कम गंभीर अपराध माना जाता है और इसके लिए जुर्माना या थोड़े समय के कारावास की सजा हो सकती है।

गंभीर चोट अधिक गंभीर चोटों को संदर्भित करती है जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति के शरीर या स्वास्थ्य को स्थायी नुकसान हो सकता है। इन चोटों में टूटी हुई हड्डियाँ, गंभीर जलन या महत्वपूर्ण अंगों में चोटें शामिल हो सकती हैं। गंभीर चोट को अधिक गंभीर अपराध (Serious Crime) माना जाता है और कारावास की लंबी अवधि (Duration) के लिए दंडनीय है।

धारा 326 में सजा – IPC 326 Punishment in Hindi

आईपीसी की धारा 326 में सजा के प्रावधान अनुसार यदि कोई व्यक्ति स्वंय की इच्छा से यह जानते हुए भी की ऐसा कार्य करने से सामने वाले व्यक्ति को गंभीर चोट लग सकती है। या उसकी जान भी जा सकती है फिर भी उस पर किसी खतरनाक हथियार से हमला करता है। तो ऐसा अपराध करने वाला व्यक्ति को न्यायालय (Court) द्वारा दोषी(Guilty) पाये जाने पर अपराध की गंभीरता (Seriousness of crime) को देखते हुए 10 वर्ष की कारावास (jail) से लेकर आजीवन कारावास (life imprisonment) तक की सजा से दंडित किया जा सकता है।

धारा 326 में जमानत का प्रावधान – IPC 326 is Bailable or Not?

आई पी सी की धारा 326 का यह अपराध एक बेहद गंभीर श्रेणी का अपराध माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ इस धारा के तहत शिकायत दर्ज हो जाती है। तो संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) होने के कारण पुलिस उस व्यक्ति को बिना किसी वारंट के तुरन्त गिरफ्तार कर सकती है। जिसके साथ ही यह एक गैर-जमानती (non-bailable) अपराध होता है। जिसमें आरोपी को गिरफ्तारी के बाद जमानत के लिए बहुत ही परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

न्यायालय में पेश करने के बाद आरोपी को जमानत मिल सकती है या नहीं इसका फैसला प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होता है। इस तरह के केसों में आपको एक होनहार वकील की आवश्यकता पड़ती है। जो आपके सामाजिक व्यवहार व अन्य सबूतों को न्यायालय में पेश कर आपको जमानत दिलाने के लिए आपकी पूरी मदद करेगा।


IPC की धारा 326A क्या है और यह कब लगती है?

IPC की धारा 326A जिसे 2013 में एसिड अटैक (Acid Attack) के बढ़ते हमलों के कारण जोड़ा गया था। यह Section एसिड हमले को परिभाषित करती है और इस तरह के अपराध के लिए सजा का प्रावधान (Provision) करती है।

इस धारा के अनुसार जो कोई भी व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति के शरीर के किसी हिस्से पर एसिड या कोई अन्य संक्षारक पदार्थ (Corrosive Substance) फेंककर स्थायी या आंशिक क्षति (Partial Damage) या विकृति (Deformity) का कारण बनता है, उसे कारावास से Punished किया जाएगा जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे आजीवन कारावास की सजा भी दी जा सकती है।


भारतीय दंड संहिता की धारा 326b क्या है और कब लागू होती है?

आईपीसी की धारा 326बी तेजाब से हमला करने के प्रयास (Acid Attack Attempts) के लिए सजा का प्रावधान करती है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी अन्य व्यक्ति पर स्थायी या आंशिक क्षति या विकृति पैदा करने के इरादे से तेजाब या कोई अन्य संक्षारक पदार्थ फेंकने का प्रयास करता है। उसे कारावास की सजा से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम नहीं होगी।

इन दोनों Sections को भारत में Acid Attacks की बढ़ती घटनाओं के जवाब में IPC में जोड़ा गया था और इस जघन्य अपराध (Heinous Crime) के लिए कड़ी Punishment देने का लक्ष्य रखा गया था।


IPC Section 326 में वकील की क्या भूमिका होती है?

एक वकील (Lawyer) इस तरह के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिनका जानना आपके लिए बहुत आवश्यक है, क्योंकि वकील ही वो इंसान होता है जो आपकी इस संकट के समय में भी मदद कर सकता है।

  • कानूनी सलाह (Legal advice):- वकील पीड़ित (Victim) या उनके परिवार के सदस्यों को उनके कानूनी अधिकारों (Legal Rights) और विकल्पों पर कानूनी सलाह (Legal Advice) प्रदान कर सकता है, जिसमें आईपीसी की धारा 326 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की संभावना भी शामिल है।
  • मामले की तैयारी: वकील सबूत इकट्ठा करके गवाहों का साक्षात्कार करके और कानूनी तर्कों (Legal Arguments) और बचावों की पहचान करके मामले को तैयार करने में मदद कर सकता है।
  • जमानत अर्जी: यदि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो वकील हिरासत से उनकी रिहाई के लिए जमानत (Bail) अर्जी दाखिल कर सकता है। आरोपी को जमानत पर रिहा करने के लिए वकील कोर्ट में दलील भी दे सकता है।
  • अदालत में प्रतिनिधित्व: वकील पीड़ित या उनके परिवार के सदस्यों का अदालत में प्रतिनिधित्व कर सकता है और मामले को न्यायाधीश के सामने पेश कर सकता है। वकील गवाहों से जिरह कर सकता है, सबूत पेश कर सकता है और अपने मुवक्किल (Client) की ओर से बहस कर सकता है।
  • बातचीत और समझौता: कुछ मामलों में वकील पीड़ित और अभियुक्त (Accused) के बीच समझौता कराने में मदद कर सकता है। वकील अपने मुवक्किल को समाधान प्रस्ताव के गुणों के बारे में सलाह दे सकता है और उन्हें एक सूचित निर्णय लेने में मदद कर सकता है।
  • अपील: यदि अभियुक्त को दोषी पाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, तो वकील (Lawyer) अपने मुवक्किल की ओर से High court में अपील (Appeal) दायर कर सकता है।


धारा 326 में मुकदमे दर्ज कराने की प्रक्रिया क्या है?

आईपीसी की धारा 326 के तहत स्थापित एक मामले के लिए परीक्षण प्रक्रिया किसी भी अन्य आपराधिक मामले के समान है। प्रक्रिया निम्नलिखित है:

1. प्रथम सूचना रिपोर्ट: दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत, एक प्राथमिकी या प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाती है। एफआईआर मामले को गति देती है। एक एफआईआर किसी को (व्यथित) पुलिस द्वारा अपराध करने से संबंधित जानकारी दी जाती है।

2. जांच: एफआईआर दर्ज करने के बाद अगला कदम जांच अधिकारी द्वारा जांच है। जांच अधिकारी द्वारा तथ्यों और परिस्थितियों की जांच, साक्ष्य एकत्र करना, विभिन्न व्यक्तियों की जांच, और लिखित में उनके बयान लेने और जांच को पूरा करने के लिए आवश्यक अन्य सभी कदमों के द्वारा निष्कर्ष निकाला जाता है, और फिर उस निष्कर्ष को पुलिस या मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाता है।

3. चार्ज: यदि पुलिस रिपोर्ट और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर विचार करने के बाद आरोपी को छुट्टी नहीं दी जाती है, तो अदालत आरोपों के तहत आरोपित करती है, जिसके तहत उस पर मुकदमा चलाया जाना है। एक वारंट मामले में, लिखित रूप से आरोप तय किए जाने चाहिए।

4. जुर्म कबूलने का अवसर : सीआरपीसी की धारा 241, 1973 दोषी की याचिका के बारे में बात करती है, आरोपों के निर्धारण के बाद अभियुक्त को जुर्म कबूलने का अवसर दिया जाता है, और यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीश के साथ जिम्मेदारी निहित है कि अपराध की याचिका थी स्वेच्छा से बनाया गया। न्यायाधीश अपने विवेक से आरोपी को दोषी करार दे सकता है।

5. अभियोजन साक्ष्य: आरोप तय किए जाने के बाद, और अभियुक्त दोषी नहीं होने की दलील देता है, तो अदालत को अभियोजन पक्ष को अभियुक्त के अपराध को साबित करने के लिए सबूत पेश करने की आवश्यकता होती है। अभियोजन पक्ष को अपने गवाहों के बयानों के साथ उसके साक्ष्य का समर्थन करना आवश्यक है। इस प्रक्रिया को "मुख्य रूप से परीक्षा" कहा जाता है। मजिस्ट्रेट के पास किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में समन जारी करने या किसी भी दस्तावेज का उत्पादन करने का आदेश देने की शक्ति है।

6. अभियुक्त का बयान: आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 313 से अभियुक्त को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को सुनने और समझाने का अवसर मिलता है। शपथ के तहत अभियुक्तों के बयान दर्ज नहीं किए जाते हैं और मुकदमे में उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है।

7. प्रतिवादी साक्ष्य: अभियुक्त को ऐसे मामले में अवसर दिया जाता है, जहां उसे उसके मामले का बचाव करने के लिए बरी नहीं किया जाता है। रक्षा मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य दोनों का उत्पादन कर सकती है। भारत में, चूंकि सबूत का बोझ अभियोजन पक्ष पर है, सामान्य तौर पर, बचाव पक्ष को कोई सबूत देने की आवश्यकता नहीं है।

8. निर्णय: अभियुक्त को दोषमुक्त या दोषी ठहराए जाने के समर्थन में दिए गए कारणों के साथ अदालत द्वारा निर्णय दिया जाता है। यदि अभियुक्त को बरी कर दिया जाता है, तो अभियोजन पक्ष को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करने का समय दिया जाता है।

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प्रशंसापत्र

मेने आपसी झगड़े में एक व्यक्ति पर लोहे की सरिया से उसे चोटिल करने के आशय से वार किया, जिससे वे घायल हो गया और 2 महीने बाद मर गया मुझपर धारा 307 के तहत मुकदमा चला जिसमे मेरे वकील साहब ने ये सिद्ध करते हुए जमानत दिलायी की मामला धारा 307 का नही धारा 326 आईपीसी का था।

-दीपक शर्मा

मेरे और मेरे भाई के बीच संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है जिसके चलते उसने मेरे संग मारपीट कि और मुझे फ़र्ज़ी मुकदमे मे फसा दिया लॉराटो के माध्यम से वकील साहब की क़ानूनी सेवा ली उन्होंने जमानत भी दिलवाई और मुकदमा फ़र्ज़ी साबित करके खत्म करवा दिया।

-प्रदीप सक्सेना

मेरे मोहल्ले का एक लड़का बुरी नियत के चलते मुझे छेड़ा करता था एक दिन बाजार मे उसने मेरा हाथ पकड़ लिया मेरे पति ने गुस्से में उससे मारा और उसने पुलिस में धारा 326, 506 और 307 के तहत शिकायत करदी हमारे वकील साहब ने पुलिस के सामने उसका गलत चाल चरित्र प्रमाणित करके उसके ऊपर ही धारा 354 का मुकदमा दर्ज करा दिया और हमें एक झुठे मुकदमे से बचा लिया।

-काव्या पांडे

Offence : स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट के कारण


Punishment : आजीवन कारावास या 10 साल + जुर्माना


Cognizance : संज्ञेय


Bail : गैर जमानतीय


Triable : प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट





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IPC धारा 326 पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


आई. पी. सी. की धारा 326 के तहत क्या अपराध है?

आई. पी. सी. धारा 326 अपराध : स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट के कारण



आई. पी. सी. की धारा 326 के मामले की सजा क्या है?

आई. पी. सी. की धारा 326 के मामले में आजीवन कारावास या 10 साल + जुर्माना का प्रावधान है।



आई. पी. सी. की धारा 326 संज्ञेय अपराध है या गैर - संज्ञेय अपराध?

आई. पी. सी. की धारा 326 संज्ञेय है।



आई. पी. सी. की धारा 326 के अपराध के लिए अपने मामले को कैसे दर्ज करें?

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आई. पी. सी. की धारा 326 जमानती अपराध है या गैर - जमानती अपराध?

आई. पी. सी. की धारा 326 गैर जमानतीय है।



आई. पी. सी. की धारा 326 के मामले को किस न्यायालय में पेश किया जा सकता है?

आई. पी. सी. की धारा 326 के मामले को कोर्ट प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट में पेश किया जा सकता है।