IPC 306 in Hindi - आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा में सजा जमानत और बचाव
अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा
विषयसूची
- धारा 306 क्या है कब लगती है ? IPC 306 in Hindi
- IPC Section 394 में जमानत का प्रावधान
- आत्महत्या के लिए उकसाना शब्द का मतलब क्या है?
- आत्महत्या के लिए उकसाने के कुछ मुख्य तत्व
- IPC Section 306 Crime Example
- क्या एक पुलिस अधिकारी भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकता है?
- धारा 306 में सजा ? IPC 306 Punishment in Hindi
- आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोपित होने पर जमानत कैसे प्राप्त करें?
- नियमित-जमानत
- अग्रिम जमानत
- धारा 306 में बचाव के लिए सावधानियाँ रखने योग्य बातेँ
- धारा 306 पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आजकल हमारे देश में आत्महत्या (Suicide) जैसे मामलें बहुत ज्यादा बढ़ते जा रहे है। कभी- कभी लोग अपनी जिंदगी से इतना परेशान हो जाते है कि किसी के उकसावे में आकर या किसी अन्य मजबूरी के चलते आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेते है जोकि एक अपराध की श्रेणी में आता है तो आज के लेख में हम बात करेंगे भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आने वाली ऐसे कानून बारे में कि धारा 306 क्या है (IPC Section 306 in Hindi), ये धारा कब लगती है? आत्महत्या के मामले में सजा और जमानत (Bail) कैसे मिलती है?
इस लेख के द्वारा आईपीसी की धारा 306 से जुड़ी सभी जरुरी बातों की संपूर्ण जानकारी हम आपको विस्तार से देंगे। इसके अलावा हम आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़े दंडों के बारे में समझेंगे। यदि कोई व्यक्ति किसी को Suicide करने के लिए उकसाता है तो इस अपराध के दोषी व्यक्तियों को किन कानूनी परिणामों (legal consequences) का सामना करना पड़ सकता है।
धारा 306 क्या है कब लगती है – IPC 306 in Hindi
भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है (abetment of suicide ) या फिर उसके सामने ऐसी मजबूरी पैदा कर देता है कि उस व्यक्ति के पास आत्महत्या के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचे, तब आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण (abetment to suicide) (उकसाने या मजबूर) करने वाले व्यक्ति पर IPC Section 306 के तहत मुकदमा (Court Case) दर्ज किया जाता है। आइए इसे आसान भाषा में विस्तार से जानते है
आत्महत्या के मामलों में दो धाराओं का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। जिसमें धारा 306 के प्रावधान (provision) अनुसार वह व्यकित दोषी (Guilty) होता है जो किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार से आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है
लेकिन आत्महत्या करना भी एक अपराध कहलाता है जैसे कुछ मामलों में देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति किसी को परेशान करने व फंसवाने के लिए आत्महत्या जैसा कार्य करते है और ऐसा करने के दौरान अगर उसकी मृत्यु (Death) नहीं होती अथार्त वो बच जाते है तो आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति पर धारा 306 के तहत आत्महत्या करने के प्रयत्न (Attempt to commit suicide) के लिए कार्यवाही की जाती है। आइये धारा 306 को एक उदाहरण द्वारा आसान भाषा में समझने का प्रयास करते है।
आत्महत्या के लिए उकसाना शब्द का मतलब क्या है?
आत्महत्या (Suicide) के लिए उकसाने का मतलब होता है किसी व्यक्ति को अपनी जान लेने के लिए प्रोत्साहित करने व उकसाने या सहायता करने के कार्य से है। यह एक गंभीर अपराध है और व्यक्तियों और समाज को नुकसान पहुंचाने के कारण इसे एक आपराधिक कृत्य माना जाता है।
इस प्रकार के अपराधों के तहत किसी व्यक्ति पर आरोप लगाने के लिए लिए कुछ मुख्य तत्वों (Key Elements) का शामिल होना बहुत जरुरी है। जो कि इस प्रकार है।
आत्महत्या के लिए उकसाने के कुछ मुख्य तत्व
- प्रोत्साहन या उकसाना: उकसाने में किसी को Suicide करने के लिए प्रोत्साहित करना या राजी करना शामिल होता है। यह प्रत्यक्ष संचार के माध्यम से हो सकता है, जैसे कि व्यक्ति को अपनी जान लेने के लिए आग्रह करना या दबाव डालना, या अप्रत्यक्ष माध्यम जैसे खुदखुशी के तरीकों के बारे में बताते हुए निर्देश देना, मार्गदर्शन करना या जानकारी प्रदान करना।
- सहायता या सुविधा: उकसाने में सहायता प्रदान करना या आत्महत्या के कार्य को सुविधाजनक बनाना भी इस Crime में शामिल हो सकता है। इसमें Suicide के साधन या उपकरण प्राप्त करने, वातावरण तैयार करने, या कार्य को करने में व्यक्ति की सीधे सहायता करने जैसे कार्य शामिल हो सकते हैं।
- इरादा: आत्महत्या के लिए उकसाने को एक आपराधिक अपराध के रूप में साबित करने के लिए, आम तौर पर यह साबित करने की आवश्यकता होती है कि जिस व्यक्ति पर आरोप (Blame) लगाया गया है, उसका इरादा खुदखुशी में मदद करने या प्रोत्साहित करने का था। किसी के आत्मघाती विचारों या कार्यों का मात्र ज्ञान ही उकसाने को स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है जब तक कि सक्रिय भागीदारी या प्रोत्साहन का सबूत न हो।
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IPC Section 306 Crime Example
अवनी नाम की लड़की एक कालेज में पढ़ती है वो कालेज के हॉस्टल में अपनी कुछ सहेलियों के साथ वहाँ रहती है अवनी पढ़ाई में बहुत ही होनहार होती है इसलिए उसकी एक दोस्त पायल उससे नफरत करती है एक दिन पायल अवनी की कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें (objectionable Photographs) अपने फोन में खींच लेती है और उन तस्वीरों को सभी को दिखाने की बात कहकर परेशान करती है।
अवनी ये सब देखकर बहुत परेशान हो जाती है और मजबूर होकर आत्महत्या कर लेती है, पुलिस की जांच (Police investigation) में पता चलता है कि पायल ने ही उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया था। तो पुलिस पायल को Section 306 के तहत अवनी को आत्महत्या के लिए मजबूर (forced to commit suicide) करने के आरोप में गिरफ्तार (Arrest) कर लेती है और उसे न्यायालय (court) में पेश करती है।
क्या एक पुलिस अधिकारी भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकता है?
हां, एक पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध करने के संदेह में अदालत से वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है (वारंट एक अदालत का आदेश है जो एक पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी करने के लिए अधिकृत करता है)।
धारा 306 में सजा – IPC 306 Punishment in Hindi
IPC Section 306 आत्महत्या के लिए उकसाने (abetment of suicide) की सजा से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो कोई भी व्यक्ति जो ऐसा करने के लिए उसे विवश कर देता है, या ऐसा करने के लिए सहायता करता है, तो खुदखुशी करने के लिए मजबूर करने के आरोप में पुलिस उस व्यक्ति को गिरफ्तार करकें न्यायालय में पेश करती है अगर आरोपी न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाता है तो उसे IPC 306 के प्रावधान अनुसार 10 वर्ष तक की कारावास और जुर्माने से दंडित (Punished) किया जा सकता है।
IPC Section 394 में जमानत का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 306 का यह अपराध एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Crime) माना जाता है यह अपराध गैर-जमानतीय (Non-bailable) होता है इसका मतलब है कि जिस भी व्यक्ति पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है उस व्यक्ति को जमानत मिलना कठिन हो जाता है जो कि सत्र न्यायालय (Sessions Court या Court of Sessions) के द्वारा विचारणीय होता है और इस अपराध में किसी भी प्रकार के समझौते (Compromise) की गुंजाईश नहीं रहती।
आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोपित होने पर जमानत कैसे प्राप्त करें?
आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे गंभीर मामले में ज़मानत पाना स्पष्ट कारणों से आसान काम नहीं है। अपराध की गंभीरता इतनी अधिक है कि अपराध को गैर-जमानती अपराध के रूप में वर्णित किया गया है।
ऐसे मामलों में जमानत पाने के लिए एक अभियुक्त को बहुत मजबूत कारणों की आवश्यकता होती है।
मामले के चरण के आधार पर, अभियुक्त गिरफ्तार होने के बाद या तो नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है या आदर्श रूप से गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। अदालत विभिन्न आवश्यक बातों पर विचार करेगी जैसे आरोपी का पूर्ववृत्त, समाज में उसकी स्थिति, अपराध का मकसद, पुलिस चार्जशीट, आदि।
ऐसे मामलों में एक अनुभवी आपराधिक वकील की सहायता लेना महत्वपूर्ण है।
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नियमित-जमानत
1. धारा 306 आईपीसी के तहत गलत तरीके से आरोपित होने पर नियमित जमानत के लिए आवेदन करने के लिए कथित आरोपी को क्षेत्रीय मजिस्ट्रेट की अदालत में जमानत के लिए आवेदन देना होगा।
2. अदालत तब दूसरे पक्ष को समन भेज देगी और सुनवाई की तारीख तय कर देगी।
3. सुनवाई की तारीख को अदालत दोनों पक्षों की दलीलें सुनेगी और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर फैसला देगी।
अग्रिम जमानत
1. अगर आरोपी को आईपीसी की धारा 306 के तहत गिरफ्तारी की आशंका है, तो वह एक आपराधिक वकील की मदद से अग्रिम जमानत के लिए आवेदन भी दाखिल कर सकता है।
2. वकील अपेक्षित अदालत में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल करेगा, जिसके पास वकालतनामा के साथ विशेष आपराधिक मामले का फैसला करने का अधिकार होगा।
3. इसके बाद अदालत लोक अभियोजक को अग्रिम जमानत अर्जी के बारे में सूचित करेगी और यदि कोई आपत्ति हो तो उसे दर्ज करने के लिए कहेगी।
4. तत्पश्चात् न्यायालय सुनवाई की तिथि नियत करेगा और दोनों पक्षों की अंतिम दलीलें सुनने के बाद मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर निर्णय देगा।
धारा 306 में बचाव के लिए सावधानियाँ रखने योग्य बातेँ
भारतीय दंड संहिता की धारा 306 का मकसद खुदखुशी के लिए उकसाने जैसा गैर-कानूनी अपराध करने वालों को सजा दिलवाना है क्योंकि किसी को इतना परेशान कर देना की वो व्यक्ति मरने के लिए मजबूर हो जाए एक बहुत ही गंभीर अपराध है हम सब को ऐसे अपराध को करने से बचना चाहिए और ऐसा तब ही किया जा सकता है जब इंसान इस अपराध की सजा व सावधानियों के बारें में जान सके तो आइए कुछ ऐसी ही जरुरी बाते के बारें में जानते है।
- कभी-भी किसी व्यक्ति को गुस्से में भी ऐसे शब्द नहीं बोलने चाहिए की वो उन बातों को गंभीरता से ले ले जैसे:- कभी कभी गुस्से में किसी को ये बोल देना की मर जा कही जा के क्योंकि जिस व्यक्ति को आप यह बात बोल रहे हो वो किसी तनाव पूर्ण स्थिति से गुजर रहा हो और खुदखुशी जैसा गलत कदम उठा ले ऐसे में आप भी गंभीर सम्स्या में फंस सकते है।
- किसी भी व्यक्ति को कोई कार्य जबर्दस्ती करने के लिए कभी-भी मजबूर ना करें।
- मजाक में भी किसी शख्स की बेइज्जती ना करें व किसी को मानसिक तनाव देने की कोशिश ना करें।
- किसी भी लड़की से अपनी कोई भी बात मनवाने के लिए मजबूर ना करें ना ही उसे किसी बात का ड़र दिखा कर परेशान करें।
- बहुत बार देखा जाता है कि कुछ लोग झूठे केस में फंसाने के लिए भी आत्महत्या जैसे कामों का सहारा लेते है। ऐसे में IPC Section 306 में अभियुक्त (Accused) को केवल तभी दोषी ठहराया जा सकता है जब पीड़ित द्वारा आत्महत्या की जाती है क्योंकि आत्महत्या करने का अधूरा प्रयास इस धारा के तहत दंडनीय नहीं है।
अपराध | सजा | संज्ञेय | जमानत | विचारणीय |
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आत्महत्या के आयोग को उकसाना | 10 साल + जुर्माना | संज्ञेय | गैर जमानतीय | सत्र न्यायालय |
Offence : आत्महत्या के आयोग को उकसाना
Punishment : 10 साल + जुर्माना
Cognizance : संज्ञेय
Bail : गैर जमानतीय
Triable : सत्र न्यायालय
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
आईपीसी की धारा 306 क्या है?
आईपीसी की धारा 306 भारतीय दंड संहिता में एक प्रावधान है जो आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आत्महत्या (Suicide) के लिए उकसाता है और खुदखुशी की जाती है, तो उकसाने वाले व्यक्ति को आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
क्या रिश्तेदारों या परिवार के सदस्यों पर IPC 306 के तहत आरोप लगाया जा सकता है?
हाँ, रिश्तेदारों या परिवार के सदस्यों पर धारा 306 के तहत आरोप लगाया जा सकता है अगर यह साबित करने के लिए सबूत है कि उन्होंने खुदखुशी के लिए उकसाया है कानून अभियुक्त और मृतक के बीच संबंधों के आधार पर कोई विशिष्ट छूट प्रदान नहीं करता है।
आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध के लिए सज़ा क्या हैं?
धारा 306 के तहत खुदखुशी करने के लिए उकसाने की सजा एक अवधि के लिए कारावास है जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और इसमें जुर्माना भी शामिल हो सकता है।
क्या IPC 306 के तहत आने वाला अपराध जमानती है?
IPC की धारा 306 एक गैर-जमानती अपराध है। इसका मतलब यह है कि इस धारा के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अधिकार के तौर पर जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है और जमानत केवल कुछ परिस्थितियों में अदालत के विवेक पर दी जा सकती है।
क्या आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध कंपाउंडेबल है?
आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध कंपाउंडेबल नहीं है यानी कानून पीड़ित और अपराधी के बीच समझौता करने की अनुमति नहीं देता है। यह एक गंभीर अपराध है और कानून की आवश्यकता है कि अपराधी को मुकदमा चलाया जाए और दंडित किया जाए।