IPC 299 in Hindi - Culpable Homicide की धारा में सज़ा और जमानत

अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

प्यारे पाठकों, आपने अपने जीवन में कभी ना कभी ऐसे मामलों के बारे में सुना व देखा होगा, जिनमें किसी व्यक्ति के साथ लड़ाई झगड़े में या किसी के द्वारा हमला (Attack) करने पर सामने वाले व्यक्ति की मौत (Death) हो गई। जबकि उसका इरादा (Intention) दूसरे व्यक्ति को जान से मारने का नहीं था, लेकिन लड़ाई झगड़े में उस व्यक्ति को अचानक गलती से ऐसी चोट (Injury) लग गई। जिसकी वजह से वो व्यक्ति ना चाहते हुए भी उस दूसरे व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन गया। आईपीसी की धारा 299 आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) इसी प्रकार के जटिल और संवेदनशील मुद्दे से संबंधित है। इसलिए इस लेख में हम आपको इस महत्वपूर्ण धारा के बारे में सभी जानकारी बहुत ही स्पष्ट रुप से देंगे कि आईपीसी की धारा 299 क्या होती है (What is IPC Section 299 in Hindi), धारा 299 में कितनी सजा होती है और इस मामले में जमानत कैसे मिलती है?

भारतीय दंड संहिता की ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण धारा है, इसलिए चाहे आप एक कानूनी विशेषज्ञ (Legal Expert) हों, एक छात्र (Student) हों या इस प्रकार के अपराध के बारे में जानने वाले पाठक हो, आप सभी को हम इस धारा के व भारतीय कानून (Indian Law) के सभी मुश्किल शब्दों को बहुत ही सरल भाषा में आपको समझाएंगे। इसलिए पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख के हर पहलू को ध्यान से पढ़े।


आईपीसी की धारा 299 क्या है - IPC 299 in Hindi

भारतीय दंड संहिता की धारा 299 आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) को परिभाषित करती है। भारतीय दंड संहिता के Section 299 के अनुसार जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु के कारण बनने के आशय (Intention) से, या उस व्यक्ति को शारीरिक (Physically) रुप से नुकसान पहुँचाने के आशय से कोई कार्य करता है यह जानते हुए भी की ऐसा कार्य करने से उस व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है तो वह आपराधिक मानव वध का अपराधी बन जाता है।

इस धारा का मुख्य उद्देश्य मानव वध (Homicide) जैसे अपराधों को केवल परिभाषित करना है, जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार के आपराधिक कार्य (Criminal Act) को आपराधिक मानव वध माना जाएगा। इस आईपीसी सेक्शन में परिभाषित अपराधों की सजा आईपीसी की अन्य धाराओं में बताई गई है जिसके बारे में जानने के लिए आगे पढ़े।


Culpable Homicide (आपराधिक मानव वध) क्या है

आपराधिक मानव वध को अंग्रेजी भाषा में Culpable Homicide कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है किसी मानव का वध कर देना यानी किसी व्यक्ति को जान से मार देना या किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनना।


धारा 299 के अपराध को साबित करने के लिए मुख्य तत्व

  • अपराध मौत का कारण बनने के इरादे से किया जाता है, या
  • सामने वाले व्यक्ति को ऐसी शारीरिक चोट (Physical injury) पहुँचाने के इरादे से किया गया है कि चोट से मृत्यु होने की संभावना है, या
  • इस ज्ञान के साथ किया जाता है कि ऐसा कार्य करने से सामने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने की पूरी संभावना है।

IPC Section 299 के अपराध का उदाहरण

मानव वध जिसे हत्या के बराबर माना जाता है - Culpable homicide amounting to murder

राहुल नाम का एक व्यक्ति जो अपने पड़ोसी अमित को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। एक दिन राहुल किसी बात को लेकर बहुत गुस्सा हो जाता है और अमित को मारने का फैसला कर लेता है। उसके बाद राहुल अमित की हत्या (Murder) की योजना बनाता है और उसको ऐसी जगह ले जाता है जहां कोई और मौजूद नहीं है। वहां राहुल ने जानबूझकर अमित को गोली मार दी जिससे उसकी मौत हो गई। इस स्थिति में राहुल के द्वारा किए गए कार्य को हत्या के बराबर ही दोषी (Guilty) माने जाने वाले मानव वध का दोषी माना जाएगा। क्योंकि राहुल योजना बनाकर अमित की मौत का कारण बनना चाहता था।

आपराधिक मानव वध जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता - Not amounting to Murder

मान लीजिए कि मनीषा और प्रति के बीच गरमागरम बहस हुई। इसी तरह बातों-बातों में मनीषा बहुत गुस्सा हो जाती है और प्रीति को जोर से धक्का मार देती है। जिस वजह से अचानक प्रीति गिर जाती है, और उसका सिर दीवार में लग जाता है। जिसके परिणामस्वरूप गंभीर चोटें (Serious injury) आती हैं जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है। हालांकि मनीषा का इरादा प्रीति को मारने का नहीं था, लेकिन गुस्से के कारण धक्का मारना यह जानते हुए कि इससे नुकसान हो सकता है, जो Culpable Homicide के अंतर्गत आता है, जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता है।


IPC Section 299 के तहत सजा (Punishment)

भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में केवल मानव वध (Homicide) को परिभाषित किया गया है। Culpable Homicide की सजा परिस्थितियों पर निर्भर करती है। आईपीसी की धारा 304 आपराधिक मानव वध की सजा के बारे में बताती है और उचित दंड (Punishment) देती है।

  • आईपीसी की धारा 304 (ए): यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से हमला किया जाता है और उस शारीरिक चोट के कारण सामने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो अपराधी को दस साल से लेकर आजीवन कारावास (Life imprisonment) तक की कैद की सजा दी जा सकती है।
  • आईपीसी की धारा 304 (बी): यदि किसी व्यक्ति के द्वारा यह जानते हुए वो कार्य किया जाता है जिसके किए जाने से सामने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने की पूरी संभावना है लेकिन मृत्यु के कारण बनने के इरादे के बिना (यानी उसका इरादा सामने वाले को मारने का नहीं है लेकिन गलती से उसने कोई ऐसा कार्य कर दिया जिससे सामने वाले की मृत्यु होने की पुरी संभावना है।) तो ऐसे अपराध के दोषी को दस साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।

Murder और Culpable Homicide में अंतर

IPC की धारा 299 हत्या (Murder) और आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) के अपराधों के बीच अंतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिसके द्वारा हत्या के अपराध व आपराधिक मानव वध के बीच के अंतर को समझना बहुत आवश्यक है। क्योंकि इन दोनों के बीच में बहुत ही छोटा सा अंतर होता है जिसे समझना बहुत बार मुश्किल हो जाता है।

इरादा: हत्या के लिए व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनने या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनने के लिए एक विशिष्ट इरादे (Specific Intentions) (यानी एक ऐसे पक्का इरादा होता है जिसमें पीड़ित (Victim) व्यक्ति के मरने की संभावना ज्यादा होती है।) की आवश्यकता होती है जिससे मृत्यु होने की संभावना हो।

दूसरी और Culpable Homicide में मौत का कारण बनने या मौत का कारण बनने वाली शारीरिक चोट का इरादा तो शामिल होता है, लेकिन मौत का कारण बनने के विशिष्ट इरादे के बिना (यानी बिना किसी पक्के इरादे के और जिसमें पीड़ित व्यक्ति की मौत होने की संभावना कम होती है।)

ज्ञान: आपराधिक मानववध में मृत्यु का कारण बनने वाला कार्य इस ज्ञान के साथ किया जाता है कि इससे मृत्यु होने की संभावना तो है, लेकिन मृत्यु या गंभीर शारीरिक नुकसान पहुंचाने के इरादे के बिना।

इसका अर्थ है कि जब कोई अपराधी किसी व्यक्ति पर अचानक हमला (Sudden Attack) कर देता है तो उसके बाद जो चोट पीड़ित व्यक्ति को लगती है उसको देखकर उसे पता चल जाता है कि इस चोट से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु (Death) होने की भी संभावना है। लेकिन उसको जान से मारने के लिए हमला करने का पहले से कोई इरादा नहीं था।

हत्या में अपराधीl को इस बात का पूरा ज्ञान होता है कि उसके द्वारा किया गया कार्य मृत्यु का कारण बनेगा और फिर भी वो जानबूझकर कार्य को अंजाम देता है।

विशिष्ट परिस्थितियाँ: हत्या में कुछ विशिष्ट परिस्थितियाँ शामिल होती हैं जो Crime को बढ़ाती हैं। इन परिस्थितियों में मौत का कारण बनने के इरादे से किया गया कार्य शामिल है, ऐसा कार्य जो जीवन के लिए आसन्न रूप से खतरनाक (Imminent Danger) है, और कार्य इस ज्ञान के साथ किया जा रहा है कि यह इतना खतरनाक है।

इसका अर्थ है कि हत्या के अपराध में किसी व्यक्ति पर इतने खतरनाक (Danger) तरीके से हमला करना शामिल होता है जिससे सामने वाले की मृत्यु होना तय है यानी उस हमले से मृत्यु होगी ही। ऐसी ही कुछ परिस्थितियाँ है जो हत्या और आपराधिक मानव वध को अलग-अलग करती है।

निष्कर्ष:- कुल मिलाकर आसान शब्दों में कहे तो आपराधिक मानव वध में हत्या के मुकाबले किसी व्यक्ति के मरने की संभावना व किसी व्यक्ति को मारने के इरादे में कमी होती है।


आपराधिक मानव वध के अपराध में जांच और परीक्षण प्रक्रिया

इस अपराध से संबंधित जांच (Investigation) और सुनवाई प्रक्रिया (Hearing process) के कुछ प्रमुख पहलू यहां दिए गए है, जिनको जानना आपके लिए बहुत ही जरुरी है।

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दाखिल करना: इस Crime में जांच प्रक्रिया पुलिस के पास प्राथमिकी दर्ज करने के साथ शुरू होती है। शिकायतकर्ता (Complainant) घटना और अपराध (Incident & Crime) में शामिल पक्षों की जानकारी Police को देता है।
  • बूत इकट्ठे करना:- इसके बाद जांच अधिकारी (Investigation Officer) अपराध से जुड़ सबूत (Evidence) इकट्ठे करते हैं, जिसमें गवाह के बयान (Witness statement) , फोरेंसिक रिपोर्ट, मेडिकल रिकॉर्ड, पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट और अन्य बातें शामिल हो सकती है।
  • गिरफ्तारी और पूछताछ: यदि जांच के दौरान पुलिस को पर्याप्त सबूत मिल जाते है, तो आरोपी (Accused) को गिरफ्तार (Arrest) करके हिरासत (Custody) में लिया जा सकता है। आगे की जानकारी, बयान, और अपराध से संबंधित अन्य बातों के लिए आरोपी से पूछताछ की जाती है।
  • चार्जशीट (Chargesheet): जांच पूरी हो जाने के बाद पुलिस अदालत (Court) में चार्जशी जमा करती है। Chargesheet में इकट्ठे किए गए सबूतों का पूरा विवरण होता है और अभियुक्तों की पहचान होती है। इसके साथ ही उनके खिलाफ दायर किए गए आरोप (Blame) भी होते हैं।
  • परीक्षण कार्यवाही: परीक्षण (Trial) अदालत में शुरू होता है जहां दोनों पक्ष अपने-अपने मामले को पेश करते हैं। इस दौरान गवाहों की जांच और जिरह (Cross Examination) की जा सकती है, और आरोपी व्यक्ति के अपराधी या निर्दोष (Innocent) होने के सबूत भी पेश किए जा सकते है। जिसके बाद अदालत सभी सबूतों का मूल्यांकन (Evaluation) करती है, दोनों पक्षों की दलीलें (Arguments) सुनती है और अपना फ़ैसला (Decision) सुनाती है।
  • सजा: यदि आरोपी व्यक्ति दोषी (Guilty) पाया जाता है, तो Court उचित सजा निर्धारित करने के लिए आगे बढ़ती है। सजा मामले की परिस्थितियों के आधार पर कम ज्यादा हो सकती है।

आईपीसी धारा 299 को बीएनएस धारा 100 में बदल दिया गया है।



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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


IPC की धारा 299 क्या है?

धारा 299 भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत एक प्रावधान (Provision) है जो आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) के अपराध से संबंधित है जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता है। यह उन परिस्थितियों को परिभाषित करता है जिनमें किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण आपराधिक मानव वध को माना जा सकता है।


आईपीसी की धारा 299 के तहत क्या सजा है?

आपराधिक मानव वध के लिए दंड IPC की धारा 304 के तहत निर्धारित है। सजा की गंभीरता अपराध की प्रकृति पर निर्भर करती है और दस साल तक के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकती है।


भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में जमानत कैसे मिलती है।

धारा 299 केवल अपराध को परिभाषित करती है, उस अपराध की सजा व जमानत की जानकारी आईपीसी 304 में देख सकते है। 


Culpable Homicide और हत्या (Murder) में क्या अंतर है?

आपराधिक मानव वध और हत्या के बीच अंतर मौत का कारण बनने के इरादे की उपस्थिति या अनुपस्थिति में निहित है। हत्या में किसी व्यक्ति की मृत्यु का जानबूझकर किया गया कृत्य शामिल है, जबकि इसमें मृत्यु का कारण बनने के लिए इरादे की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन इसमें मृत्यु का कारण बनने वाली शारीरिक चोट का इरादा शामिल होता है।