चार्जशीट क्या होती है? Police ChargeSheet की पूरी जानकारी



प्रिय पाठकों बहुत बार आपने चार्जशीट नाम के शब्द के बारे में सुना होगा, लेकिन इस शब्द का मतलब हम में से बहुत लोगों को नहीं पता होता। इसका इस्तेमाल आपराधिक मामलों की कानूनी कार्यवाही के दौरान किया जाता है। इसलिए हम आज के इस लेख द्वारा जानेंगे पुलिस चार्जशीट का मतलब क्या है (Police Charge sheet in Hindi)? चार्जशीट कब दाखिल होती है? व आरोप पत्र दाखिल होने के बाद जमानत? यदि आप भी चार्जशीट के बारे में विस्तार से जानना व समझना चाहते है तो इस आर्टिकल को पूरा अंत तक जरुर पढ़े।


चार्जशीट का मतलब क्या है – Police Charge sheet in Hindi

Chargesheet को हिंदी भाषा में आरोप-पत्र कहते है। चार्जशीट पुलिस के द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट होती है, जिसके द्वारा अभियुक्त (जिस पर मुकदमा चलाया गया हो) को कोर्ट के सामने विचारण (Trial) के लिए पेश किया जाता है। चार्जशीट में अपराध की सारी जानकारी जैसे अभियुक्तों का नाम, घर का पता, उनके खिलाफ की गई कार्यवाही, साक्ष्यों इत्यादि का विवरण देखने को मिलता है।

पुलिस द्वारा दाखिल की जाने वाली चार्जशीट दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 170 के अनुसार कोर्ट में पेश की जाती है। ChargeSheet Court में पेश होने के बाद ही कोर्ट द्वारा केस का ट्रायल शुरु किया जाता है। चार्जशीट को कानूनी भाषा में चालान भी कहा जाता है।  



चार्जशीट कब दाखिल होती है?

जब भी कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन में किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाता है। उसके बाद पुलिस के द्वारा उस मामले की जांच के लिए जांच अधिकारी Investigation officer (IO) नियुक्त किया जाता है। जिसके द्वारा जांच के दौरान उस मामले से जुड़े सभी सबूत इक्टठे किए जाते है, जिसके बाद फैसला लिया जाता है कि केस आगे चलने लायक है या नहीं। यदि केस आगे चलने योग्य होता है तो पुलिस कोर्ट के समक्ष अभियुक्त की चार्जशीट प्रस्तुत की जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस द्वारा कोर्ट के सामने चालान पेश किया जाता है।



Police Charge Sheet और FIR में अंतर

FIR (एफआईआर)

प्रथम सूचना रिपोर्ट जी हाँ दोस्तों FIR को हिन्दी में इसी शब्द एफआईआर से ही परिभाषित किया जाता है। जब भी कोई व्यक्ति किसी के खिलाफ किसी अपराध की शिकायत दर्ज करवाता है तो उसे एफ आई आर कहा जाता है।

Charge Sheet (चार्जशीट)

ChargeSheet जिसे हिन्दी में आरोप पत्र कहा जाता है, FIR दर्ज होने के बाद पुलिस के जांच अधिकारी द्वारा उस मामले से जुड़ी सभी जांच पूरी करने के बाद अभियुक्त की चार्जशीट न्यायालय के सामने ट्रायल के लिए प्रस्तुत की जाती है।



चार्जशीट कितने दिनों में दाखिल होती है?

पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 या 60 दिनों का एक निर्धारित समय दिया जाता है। कुछ मामलों में यह देखा जाता है कि पुलिस जानबुझकर किसी आरोपी की Charge Sheet समय पर दाखिल नहीं करती, क्योंकि चार्जशीट दाखिल होने के बाद ही न्यायालय आरोपी की जमानत पर विचार करती है। इसलिए पुलिस कभी कभी आरोपी की जमानत को रोकने के लिए भी ऐसा करती थी।



90 दिनों में चार्जशीट दाखिल ना होना पर क्या होता है

यदि पुलिस 90 दिनों के अंदर चार्जशीट को कोर्ट में दाखिल नहीं कर पाती तो आरोपी को कोर्ट से जमानत मिल सकती है। यदि पुलिस निर्धारित समय पर आरोप पत्र दायर नहीं करती तो आरोपी व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 167(20) के तहत डिफाल्ट जमानत मिल जाती है।



Charge Sheet पेश होने के बाद क्या होता है?

पुलिस द्वारा पूरी तरह से जांच करने के बाद अगर पुलिस को आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलते तो CRPC की धारा 169 के तहत पुलिस कोर्ट में False Report दाखिल कर सकती है। जिसका अर्थ होता है कि आरोपी पर लगाये गए सभी आरोप झूठे है।

लेकिन अगर पुलिस को अपनी जांच के दौरान आरोपी के खिलाफ उपयुक्त सबूत मिल जाते है तो पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 173 के तहत न्यायालय के सामने आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाता है। जिसके बाद कोर्ट द्वारा आरोपी व्यक्ति के पास सम्मन भेजा जाता है।

सम्मन एक ऐसा कानूनी पत्र होता है जिसमें कोर्ट की मोहर लगी होती है व साथ में लिखा होता है कि आरोपी को कब कोर्ट में हाजिर होना है। कोर्ट से सम्मन मिलने के बाद आरोपी न्यायालय में जाता है, जहाँ वो अपने केस के लिए वकील करता है। अगर आरोपी पर किसी गैर जमानती अपराध की धारा लगी हुई है तो उसे कोर्ट के आर्डर पर उसी समय जेल में भेज दिया जाता है। यदि आरोपी पर जमानती धारा लगी हुई है तो उसे कोर्ट से जमानत मिल जाती है। जिसके बाद केस की आगे की कार्यवाही की जाती है।



Charge Sheet को चुनौती कैसे दे सकते है व चार्जशीट को रद्द कैसे करें

यदि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों का सबूत जांच अधिकारी को नहीं मिलता या शिकायत के अनुसार बताए गए अपराध का कोई भी खुलासा नहीं हो पाता, तो एफआईआर व आरोप पत्र को कोर्ट द्वारा रद्द किया जा सकता है।

सुप्रिम कोर्ट द्वारा एक बहुत ही जरुरी फैसले में कहा गया है कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी आरोपी द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर खारिज करने की याचिका उच्च न्यायालय में दी जा सकती है।

पुलिस चार्जशीट नहीं कर रही तो क्या करें?

यदि पुलिस आरोप पत्र दाखिल नहीं करती और आपके पास सभी सबूत है तो आप पुलिस की किसी वरिष्ठ अधिकारी से इसकी शिकायत कर सकते है।



चार्जशीट दाखिल होने के बाद जमानत

आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल होने के बाद अगर आरोपी के खिलाफ अपराध के जरुरी साक्ष्य नहीं मिलते तो कोर्ट द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट को खारिज कर दिया जाता है। जिसके बाद आरोपी उस केस से बच सकता है। यदि चार्जशीट में आरोपी के खिलाफ अपराध से जुड़ी शिकायत के साक्ष्य मिल जाते है और उस केस में जमानती धारा लगी हुई है तो आरोपी को जमानत मिल जाती है। यदि गैर-जमानती धारा लगी हुई है तो उसका फैसला कोर्ट द्वारा विचारणीय होता है। जिसमें जमानत का मिलना आसान नहीं होता।

एक मामले में हाई कोर्ट द्वारा कहा गया है कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी आरोपी की अग्रिम जमानत को बरकरार रखा जा सकता है।

Note:- यदि आप अग्रिम जमानत के बारे में विस्तार से जानना चाहते है तो आप हमारे अग्रिम जमानत वाले लेख को भी पढ़ सकते है।



फाइनल रिपोर्ट क्या होती है?

पुलिस के जांच अधिकारी द्वारा जांच पूरी करने के बाद सीआरपीसी की धारा 173 के अनुसार आरोप पत्र को चालान के रुप में न्यायालय में भेजने को ही फाइनल रिपोर्ट कहा जाता है।

हम आप सभी पाठकों से यही आशा करते है कि आपको हमारा यह आर्टिकल बहुत ही पसंद आया होगा और आपको चार्जशीट से से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। इस विषय में कानूनी सलाह या मदद लेने के लिए हमारे अनुभवी वकील से संपर्क करे। 


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