
धारा 463 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 463 के अनुसार,
जो कोई किसी मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलैक्ट्रानिक अभिलेख अथवा दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के किसी भाग कोट इस आशय से रचता है कि लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित की जाए, या किसी दावे या हक का समर्थन किया जाए, या यह कारित किया जाए कि कोई व्यक्ति संपत्ति अलग करे या कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे या इस आशय से रचता है कि कपट करे, या कपट किया जा सके, वह कूटरचना करता है ।
1 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1-1-1956 से) आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
2 1958 के अधिनियम सं0 43 की धारा 135 और अनुसूची द्वारा (25-11-1959 से) व्यापार या शब्दों का लोप किया गया ।
3 2000 के अधिनियम सं0 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची द्वारा (17-10-200 से)कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । भारतीय दंड संहिता, 1860 86
क्या होती है भारतीय दंड संहिता की धारा 463?
भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 18, में धारा 463 से 489 तक दस्तावेजों और चिन्हों संबधी जालसाई या कूटरचना के अपराधों एवं उसके दण्डों के विषय में बताया गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 463 में जालसाजी के अपराध की परिभाषा को व्यक्त किया गया है, जालसाजी का अर्थ यह है, कि किसी व्यक्ति के द्वारा झूठे दस्तावेज बनाना या तैयार करना। वह व्यक्ति उन दस्तावेजों का प्रयोग अपने वास्तविक रूप में करता है, या किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देने के उद्देश्य से, कोई व्यक्ति झूठे दस्तावेज बनाता है, वह जालसाजी कहलाती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 463 के आवश्यक तत्व
भारतीय दंड संहिता की धारा 463 के प्रावधानों के अनुसार इसके निम्न आवश्यक तत्व है, जो कोई व्यक्ति किसी झूठे दस्तावेज, फर्जी हस्ताक्षर, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को या उसके किसी भी भाग को इस आशय से बदलता है, जिससे किसी जनता (लोक) को या कोई व्यक्ति को नुकसान या क्षति की जाए या किसी दावे या हक का समर्थन किया जा सके, या इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति किसी संविदा या अनुबंध में कपट करे या सम्पति को अलग करे। तो वह जालसाजी के आवश्यक तत्वों में आता है। किन्तु ऐसा कोई भी हस्ताक्षर जिससे किसी व्यक्ति या सरकार को कोई जन धन या कोई कोई क्षति नहीं पहुचती वह जालसाजी का अपराध नहीं माना जाता है, इसके अतिरिक्त यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपना कानूनी प्रतिनिधि नियुक्त करता है, और वह क़ानूनी प्रतिनिधि उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करता है, जिसने उसे नियुक्त किया गया है, तो ऐसा अपराध जालसाजी का अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 463 के लिए सजा का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 463 के प्रावधानों में जालसाजी करने के अपराध को परिभाषित किया गया है, जिस अपराध के लिए एक अपराधी भारतीय दंड संहिता की धारा 465 में उचित दंड देने की व्यवस्था की गयी है। उस व्यक्ति को जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 463 के तहत अपराध किया है, उसे इस संहिता के अंतर्गत कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है, जिसकी समय सीमा को 2 बर्षों तक बढ़ाया जा सकता है, और इस अपराध में आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है, जो कि न्यायालय आरोप की गंभीरता और आरोपी के इतिहास के अनुसार निर्धारित करता है।
धारा 463 में वकील की जरुरत क्यों होती है?
एक कुशल और योग्य वकील की जरुरत तो सभी प्रकार के क़ानूनी मामले में होती है, क्योंकि एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो न्यायालय में जज के समक्ष आपका प्रतिनिधित्व कर सकता है। और वैसे भी भारतीय दंड संहिता में धारा 463 का अपराध बहुत ही गंभीर और बड़ा माना जाता है, क्योंकि इस धारा के अंतर्गत जालसाजी करने के अपराध को परिभाषित किया गया है, जिसमें इस अपराध के दोषी को धारा 465 के अनुसार उस अपराध की सजा दी जाती है, जो अपराधी जालसाजी करने का अपराध करता है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और जालसाजी करने के अपराध जैसे मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 465 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।