IPC 308 in Hindi - गैर-इरादतन हत्या की धारा 308 में सजा और जमानत

अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

दोस्तों आपने बहुत बार अखबारों व समाचार चैनलों के माध्यम से सुना और देखा होगा कि किसी व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति की पुरानी रंजिश (enmity) के चलते हत्या कर दी। आमतौर पर हत्या जैसे अपराध पहले से ही सोची समझी साजिश का परिणाम होते है। लेकिन कुछ मामलों में देखा जाता है कि किसी व्यक्ति के द्वारा बिना किसी योजना व बिना किसी इरादे के हत्या जैसा अपराध कर दिया जाता है। तो कुछ लोगों के इसी बात को लेकर सवाल रहते है कि यदि कोई इस तरह का अपराध करता है तो उसकी सजा किस धारा के अंतर्गत आती है। तो आज के लेख में हम इसी विषय पर विस्तार रुप से बात करेंगे, भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आने वाली IPC की एक ऐसी ही धारा के बारे में कि धारा 308 क्या है (IPC Section 308 in Hindi)? ये धारा कब और किस अपराध में लगती है? IPC 308 के अपराध मामले सजा कितनी और जमानत कैसे मिलती है?

किसी व्यक्ति की हत्या करना एक बहुत ही गंभीर अपराध माना जाता है। लेकिन कई बार यह अपराध अचानक आए गुस्से की वजह से भी एक बड़ी मुश्किल का रुप ले लेता है जिसका जिक्र कानून की इस धारा मे देखने को मिलता है। तो अगर आप धारा 308 से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी चाहते है तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े।

धारा 308 क्या है – IPC Section 308 in Hindi

आई.पी.सी. की धारा 308 के अनुसार जो कोई भी ऐसे इरादे या ज्ञान के साथ कोई कार्य करता है और ऐसी परिस्थितियों मे करता है, कि उसके द्वारा किया गया कार्य किसी की मृत्यु का कारण बनता है, तो वह गैर-इरादतन मानव वध का दोषी होगा, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है. चलिए नीचे इस धारा के बारे में सरल भाषा में खुलकर जानने का प्रयास करते है।

कोई ऐसा व्यक्ति जिसका किसी के साथ झगड़ा हो जाता है। जिसके कारण वह सामने वाले व्यक्ति को कुछ इस तरह से चोटिल कर देता है जिसकी वजह से सामने वाले व्यक्ति की मौत हो जाती है। तो ऐसे अपराध को गैर-इरादतन ( जिस अपराध को करने का कोई इरादा नहीं होता) मानव वध करना कहा जाता है जो की हत्या के अन्य मामलों से अलग होता है। इस तरह के अपराध करने वाले पर IPC 308 लगती है। चलिए इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते है।


गैर इरादतन हत्या की धारा 308 का उदाहरण

रवि रात को अपनी बाईक पर घर जा रहा होता है अचानक कपिल नाम का एक व्यक्ति उसकी बाईक को टक्कर मार देता है। इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो जाता है। कुछ देर में झगड़ा बढ़ जाता है, जिसमें रवि के द्वारा कपिल को गंभीर चोट लग जाती है।

इसके कुछ समय बाद वहाँ पुलिस आ जाती है और कपिल को हस्पताल ले जाती है। लेकिन हस्पताल में कपिल की मृत्यु हो जाती है। इसलिए जब पुलिस रवि को गिरफ्तार कर लेती है तो पूछताछ करने पर रवि बताता है कि उसका कपिल को मारने का कोई इरादा नहीं था। उनकी बाईक की टक्कर होने के कारण दोनों तरफ से झगड़ा हो गया। झगड़े के कारण कपिल को चोट लग गई और उसकी मृत्यु हो गई। पुलिस द्बारा सारी जाँच करने के बाद रवि के खिलाफ कपिल की गैर-इरादतन मानव वध अपराध (Culpable homicide crime) में आईपीसी की धारा 308 के तहत कार्यवाही करती है।


हत्या और मानव वध के बीच क्या अंतर है।

धारा 308 के बारे में जानने के साथ-साथ हमें मानव वध (culpable homicide) और हत्या (murder) के बीच के अंतर को जानना होगा। यदि कोई व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति को मारने के लिए पहले से ही योजना बनाता है या उसको मारने के लिए किसी प्रकार की साजिश रचता है, तो इस तरह के कार्य को हत्या (Murder) का अपराध कहा जाता है।

वही दूसरी तरफ अगर किसी व्यक्ति द्वारा पीड़ित को बिना कोई योजना बनाए या अचानक किसी बात को लेकर हुई लड़ाई में गुस्से के कारण चोटिल कर दिया जाता है जिससे उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो ऐसा करना गैर-इरादतन मानव वध (culpable homicide) कहलाता है।


IPC Section 308 में सजा (Punishment) कितनी होती है

भारतीय दंड संहिता की धारा 308 में सजा का प्रावधान दो तरीके से देखने को मिलता है।

  • IPC Section 308 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना किसी इरादे के अचानक हुए झगड़े या गुस्से के कारण किसी को मारता है या मारने की कोशिश करता है (Attempt to commit culpable homicide) तो न्यायालय (Court) द्वारा दोषी पाये जाने पर धारा 308 के तहत 3 वर्ष तक की कारावास व जुर्माना लगाया जाता है। जिसे किसी एक अवधी के लिए बढ़ाया भी जा सकता है।
  • यदि कोई व्यक्ति गैर- इरादतन मानववध जैसा अपराध करने की कोशिश करता है। लेकिन उसमें सामने वाले व्यक्ति को केवल चोट लग जाती है तो भी दोषी पाये जाने पर अपराधी को सात वर्ष तक की कारावास व जुर्माने से दंडित किया जाता है।

जाने - हत्या की धारा 302 कब लगती है


IPC 308 में जमानत (Bail) कब और कैसे मिलती है

भारतीय दंड संहिता की धारा 308 का यह अपराध एक संज्ञेय श्रेणी का अपराध (Cognizable Crime ) होता है। जिसके कारण इसे एक गैर-जमानती अपराध (Non Bailable offence) माना जाता है यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ धारा 308 के तहत मुकदमा (Court case) दर्ज कर लिया जाता है। और आरोपी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है तो उस व्यक्ति को जमानत मिलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इस अपराध में जमानत का फैसला सत्र न्यायालय के द्वारा विचारणीय होता है। यह अपराध किसी भी तरह से समझौते के योग्य नहीं होता।

इसलिए इस केस में आरोपी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आपकी मदद केवल एक वकील ही कर सकता है। जो ना सिर्फ अपनी योग्यता के आधार पर आपको बेल दिलाने की कोशिश करेगा बल्कि आपको निर्दोष साबित करने में भी आपकी बहुत मदद करेगा।


आईपीसी धारा 308 में बचाव के लिए क्या करे

कभी-कभी गुस्सा हमारे लिए इतनी बड़ी परेशानी का कारण बन जाता है जिसका हमें पूरे जीवन अफसोस रहता है। इसलिए अगर हमें धारा 308 जैसे केसों से बचना है तो कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरुरी हो जाता है तो चलिए IPC Section 308 से बचाव की कुछ जरुरी बातों को जानते है।

  • यदि कोई व्यक्ति आपको झगड़ा करने के लिए उकसाता है या किसी तरह से परेशान करके गुस्सा दिलाने का प्रयास करता है तो ऐसा करने से बचे।
  • किसी भी व्यक्ति को तंग करने के इरादे से कोई भी ऐसा कार्य करने से बचे जिसका परिणाम आपके लिए कोई मुसीबत खड़ी कर दे।
  • अगर कोई आपको परेशान करता है या आपके साथ मारपीट करने की कोशिश करता है तो तुरन्त वहाँ से चले जाए और इसकी शिकायत पुलिस को दे।
  • क्योंकि यदि ऐसे किसी व्यक्ति से आप झगड़ा करोगे तो दोनों तरीकों से ही आपको नुकसान होगा। यदि वो आपको मारता है तब भी और आप उसको मारते हो तब भी। क्योंकि लड़ाई-झगड़े का परिणाम कुछ भी हो सकती है इसलिए हमेशा अपना बचाव करें।

जैसा की हर तरह के मुकदमों में देखा जाता है कि कुछ लोगों को निर्दोष होते हुए भी लोग झूठे केस में फंसाने की कोशिश करते है तो ऐसे में सबसे पहले हमारे पेशेवर वकील से सलाह जरुर ले जो किसी भी कठिन समय में ऐसे मामलों से निकलने में मदद करेगा।

जाने - हत्या के प्रयास की धारा 307 में सज़ा और जमानत


प्रशंसापत्र - धारा 308 से जुड़े वास्तविक मामले

  1. मेरे बेटे को सजातीय हत्या के मामले में एक प्रमुख संदिग्ध था। उसे सही ढंग से चार्ज नहीं किया गया था क्योंकि मेरा बेटा एक झगड़े के दौरान लड़ाई में मौजूद था लेकिन लड़ाई में शामिल नहीं था या दूसरों को मारने में भी शामिल नहीं था। उसे गलत तरीके से आरोपों के साथ फंसाया गया और वास्तविक अपराधियों को अपराध स्थल से गायब कर दिया गया। चूंकि मेरे बेटे को अपराध स्थल पर गिरफ्तार किया गया था, इसलिए उसके खिलाफ मामला बेहद मजबूत था। अपराध के लिए उसकी गिरफ्तारी पर, मैंने सीधे अपने आपराधिक वकील से सलाह ली जिसने मुझे जमानत की अर्जी दाखिल करने के लिए कहा। कोर्ट में इस केस से जूझने के 15 महीने बाद फैसला हमारे पक्ष में हुआ, और मेरे बेटे को जमानत मिल गई। हालाँकि मामला अभी भी अदालत में चल रहा है, हमारे आपराधिक वकील के लिए सभी धन्यवाद, हम सफलतापूर्वक सबूतों को सेट करने में सक्षम हैं जो मेरे बेटे की बेगुनाही को साबित करने में मदद कर सकते हैं। ”

-श्री धीरज अग्रवाल

  1. मेरी माँ को उनके कनिष्ठ द्वारा काम पर लगभग मार दिया गया था, जिन्होंने गुस्से में अचानक लड़ाई के कारण उनकी पिटाई कर दी क्योंकि उन्हें मेरी माँ द्वारा अपनी नौकरी में पदोन्नत नहीं किया गया था। किसी तरह, आरोपी अपने पक्ष में झूठे सबूत पाने के लिए प्रबंधन द्वारा जमानत प्राप्त करने में सक्षम था। यहां तक ​​कि पुलिस को भी आरोपियों की तरफ लग रहा था। हालांकि, मजिस्ट्रेट मामले के मूल में जाने में सक्षम था और सबूतों की मदद से जिसमें सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी शामिल थे, हम मामले के अपने पक्ष को साबित करने में सक्षम थे और मेरी मां के काम को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते थे जूनियर जेल सही है। ”

-मिस अंजलि कुमार

  1. "मेरा रिश्तेदार, अपने संबंधित कारों की पार्किंग के मुद्दे पर अपने पड़ोसी के साथ लड़ाई में शामिल होने के बाद, सजातीय हत्या के मामले में प्रयास के लिए आरोपित किया गया था। रिश्तेदार ने उसे बहुत बुरी तरह से पीटा और अब उसका पड़ोसी अस्पताल में उसकी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहा है। मैंने तुरंत एक वकील से सलाह ली जिसने मुझे जमानत के लिए आवेदन करने की सलाह दी। उनकी सलाह पर, मैंने अपने रिश्तेदार की जमानत अर्जी दाखिल की। मामले के उचित विचार के बाद, ऐसा लगता है कि न्यायालय पड़ोसी की ओर झुक रहा है। मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है, हालांकि, ऐसा लगता है कि दोनों पक्ष पहले की तरह गलती पर थे, यह पड़ोसी था जिसने मेरे रिश्तेदार पर आरोप लगाया था। हालांकि यह न्यायालय है जो सबसे अच्छा न्यायाधीश है और हमें सम्मानित न्यायाधीशों में विश्वास है और विश्वास है कि उनके द्वारा पारित निर्णय अच्छा होगा। ”

-मिस श्वेता आहूजा

  1. "एक रात एक चोर हमारे घर में घुस आया और सामान लूटने लगा और मुझे और मेरी पत्नी को उकसाने पर मारने का प्रयास भी किया जब हमने उसे चोरी करते पकड़ा। शुक्र है कि हमने पुलिस को समय पर बुला लिया और जैसे ही वे पहुंचे, चोर को दोषी पर आत्महत्या और लूट के प्रयास का आरोप लगाया गया। लगभग 3 साल तक, मामले में आरोपी हिरासत में था, इससे पहले कि उसे अंत में अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था कि वह हत्या के प्रयास और डकैती के लिए दोषी था। यह केवल एक वकील से सलाह लेने के बाद है कि हम जटिल विवरण और अन्य कई तकनीकीताओं को समझ सकते हैं जो इस मामले में शामिल थे और इस तरह अदालत में खुद के लिए एक फर्म बना सकते हैं। ”

-श्री अमितेश भारद्वाज

  1. मेरे चचेरे भाई ने हमारे दादा को मारने की लगभग कोशिश की जब उन्हें अचानक गुस्से में संपत्ति में हिस्सा देने से मना कर दिया गया। इस पर, मैंने अपने चचेरे भाई के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराने के प्रयास के लिए शिकायत दर्ज की और दुख का कारण बना। मैंने जिस वकील से सलाह ली थी, उसने इस मामले में बहुत अच्छी तरह से मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे उपर्युक्त अपराध करने के लिए उचित सजा दिलाने में मदद की। मैंने LawRato.com के इस वकील से सलाह ली। यह मामला करीब तीन साल तक चला और उस अवधि में मेरे चचेरे भाई जेल में रहे। ”

-श्री कृपाल गुप्ता


मानव वध के प्रयास से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय

  1. राज्य बनाम विमल सिंह

28 अगस्त 2017 को दिल्ली जिला न्यायालय (सत्र न्यायालय, दिल्ली)
सेशन केस नंबर 55865/2016
इस मामले में आरोपी पर आईपीसी की धारा 308 के तहत आरोप लगाए गए थे। यह दोहराया गया कि आईपीसी की धारा 308 के तहत अपराध साबित करने के लिए, आवश्यक सामग्री को साबित करने की आवश्यकता है:

1) अभियुक्त ने एक कृत्य किया,
2) कृत्य हत्या के इरादे से दोषी होम्यसाइड न करने के इरादे या ज्ञान के साथ किया गया था
3) अधिनियम ऐसी परिस्थितियों में प्रतिबद्ध था कि यदि उस अधिनियम के द्वारा आरोपी ने पीड़ित की मृत्यु का कारण बना दिया था, तो वह दोषी हत्या का दोषी होगा।

यहाँ अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य को सही साबित करके या अभियुक्त के अपराध की ओर किसी भी धारणा को खारिज करने की दिशा में इंगित करके अपने संस्करण को साबित करने या स्थापित करने में असमर्थ था, जिससे तथ्यों को एक साथ मिलाकर एक समान मिश्रण बनाने में मुश्किल होती है। परिणामस्वरूप, अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का हकदार बन गया और इस प्रकार आईपीसी के 308 के आरोपों से बरी हो गया।

  1. ओम प्रकाश बनाम पंजाब राज्य (सुप्रीम कोर्ट)

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आईपीसी की धारा 308 को लागू करने के लिए, दोषी को आत्महत्या नहीं करने के लिए दोषी ठहराने की मंशा स्थापित की जानी चाहिए, अर्थात, यह स्थापित किया जाना चाहिए कि यदि अधिनियम प्रतिबद्ध था, तो इसका नतीजा अपराधी के आत्महत्या के रूप में होगा और नहीं हत्या। यह उस विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से साबित किया जा सकता है।

  1. अली ज़मान बनाम राज्य

उच्चतम न्यायालय
AIR 1963 SC 152
1962 में आपराधिक अपील संख्या 121, 18/02/1963 का फैसला किया।

आरोपी ने एक रिवाल्वर का इस्तेमाल किया लेकिन इससे किसी की मौत नहीं हुई। यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या रिवाल्वर की गोली से मारे गए व्यक्तियों में से किसी की मृत्यु हो जाती, तो अपराध हत्या होती। माननीय न्यायालय द्वारा ऐसा माना जाता था कि ऐसा हुआ था कि गोली चलाने वाले व्यक्तियों में से एक की मौत हो गई थी, अपराध अपराध का दोषी था जो हत्या के लिए जिम्मेदार नहीं था। यह माना गया कि अभियुक्त दोषपूर्ण हत्या करने के प्रयास के लिए उत्तरदायी था, लेकिन, यदि गोली किसी भी व्यक्ति को मार दी जाती, तो अपराध एक दोषी गृहिणी होता, जो आईपीसी की धारा 304 के तहत दंडनीय होता है।

अभियुक्त की सजा को धारा 308, पीपीसी में बदल दिया गया और सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उसकी सजा को दो साल के कठोर कारावास में घटा दिया गया।

  1. अजय सिंह बनाम राज्य सरकार (दिल्ली के एनसीटी सरकार)

30 जनवरी 2002 को दिल्ली उच्च न्यायालय
96 (2002) डीएलटी 780

एक बस कंडक्टर को धारा 308 के तहत दोषी ठहराया गया क्योंकि उसने घायलों को चलती बस से बाहर धकेल दिया। अभियुक्त 22 फरवरी 2001 के फैसले के खिलाफ अपील में गया और 24 फरवरी 2001 को एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश पर उसे धारा 308 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया और 4 साल के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई।

अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत सबमिशन को दिल्ली की माननीय उच्च न्यायालय द्वारा बिना किसी योग्यता के निरस्त किया गया। पीडब्लू के बयानों पर भरोसा करते हुए, यह माना गया कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 308 के तहत सही रूप से दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। यह देखा गया कि चोटों की गंभीर प्रकृति और गिरने की जगह से पता चलता है कि यह एक दुर्घटना नहीं थी बल्कि एक जानबूझकर किया गया कार्य था। परिणामस्वरूप अभियुक्त की अपील को खारिज कर दिया गया। अपीलकर्ता को उस दिन ट्रायल कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए बनाया गया था ताकि उस अदालत द्वारा उसे दी गई कारावास की सजा को समाप्त किया जा सके।

Offence : सदोष हत्या करने का प्रयास


Punishment : 3 साल या जुर्माना या दोनों


Cognizance : संज्ञेय


Bail : गैर जमानती


Triable : सत्र की अदालत



Offence : यदि इस तरह के कृत्य से किसी भी व्यक्ति को चोट लगती है


Punishment : 7 साल या जुर्माना या दोनों


Cognizance : संज्ञेय


Bail : गैर जमानती


Triable : सत्र की अदालत



आईपीसी धारा 308 को बीएनएस धारा 110 में बदल दिया गया है।



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IPC धारा 308 पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


आई. पी. सी. की धारा 308 के तहत क्या अपराध है?

आई. पी. सी. धारा 308 अपराध : सदोष हत्या करने का प्रयास



आई. पी. सी. की धारा 308 के मामले की सजा क्या है?

आई. पी. सी. की धारा 308 के मामले में 3 साल या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।



आई. पी. सी. की धारा 308 संज्ञेय अपराध है या गैर - संज्ञेय अपराध?

आई. पी. सी. की धारा 308 संज्ञेय है।



आई. पी. सी. की धारा 308 के अपराध के लिए अपने मामले को कैसे दर्ज करें?

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आई. पी. सी. की धारा 308 जमानती अपराध है या गैर - जमानती अपराध?

आई. पी. सी. की धारा 308 गैर जमानती है।



आई. पी. सी. की धारा 308 के मामले को किस न्यायालय में पेश किया जा सकता है?

आई. पी. सी. की धारा 308 के मामले को कोर्ट सत्र की अदालत में पेश किया जा सकता है।