धारा 98 आईपीसी - IPC 98 in Hindi - सजा और जमानत - ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकॄतचित्त आदि हो

अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


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विषयसूची

  1. धारा 98 का विवरण

धारा 98 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 98 के अनुसार जब कि कोई कार्य जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकॄति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वही अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता ।
दृष्टांत
(क) य, पागलपन के असर में, क को जान से मारने का प्रयत्न करता है । य किसी अपराध का दोषी नहीं है । किन्तु क को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह य के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता । भारतीय दंड संहिता, 1860 16
(ख) क रात्रि में एक ऐसे गॄह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार है । य, सद््भावपूर्वक क को गॄह-भेदक समझकर, क पर आक्रमण करता है । यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता किंतु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता ।
आईपीसी धारा 98 को बीएनएस धारा 36 में बदल दिया गया है।



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