धारा 228क आईपीसी - IPC 228क in Hindi - सजा और जमानत - कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण
अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा
विषयसूची
धारा 228क का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 228क के अनुसार (1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की (जिसे इस धारा में इसके पश्चात्् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है) पहचान हो सकती है, जिसके विरुद्ध धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग या धारा 376घ के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के ऐसे मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब लागू नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन--
1 1957 के अधिनियम सं0 36 की धारा 3 और अनुसूची 2 द्वारा या.... के लिए शब्दों का लोप किया गया ।
2 1955 के अधिनियम सं0 26 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1-1-1956 से) निर्वासन शब्द का लोप किया गया ।
3 1949 के अधिनियम सं0 17 की धारा 2 द्वारा (6-4-1949 से) कठोरश्रम कारावास शब्दों का लोप किया गया ।
4 1886 के अधिनियम सं0 10 की धारा 24(1) द्वारा धारा 225क तथा 225ख को धारा 225क, जो 1870 के अधिनियम सं0 27 की धारा 9 द्वारा अंतःस्थापित की गई थी, के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
5 1983 के अधिनियम सं0 43 की धारा 2 द्वारा (25-12-1983 से) अंतःस्थापित । भारतीय दंड संहिता, 1860 46
(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन अथवा ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी द्वारा, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए सद््भावपूर्वक कार्य करता है, या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है ; या
(ख) पीडित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है ; या
(ग) जहां पीड़ित व्यक्ति की मॄत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकॄतचित्त है वहां, पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से, किया जाता है :
परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई भी ऐसा प्राधिकार किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा ।
स्पष्टीकरण--इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए किसी मान्यताप्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है ।
(3) जो कोई व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना कोई बात मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
स्पष्टीकरण--किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में कोई अपराध नहीं है ।]
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