धारा 188 आईपीसी - IPC 188 in Hindi - सजा और जमानत - लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा।

अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

विषयसूची

  1. धारा 188 का विवरण
  2. भारतीय दंड संहिता की धारा 188
  3. धारा 188 की आवश्यकता कब होती​ है?
  4. कर्फ्यू क्या होता है?
  5. लॉकडाउन क्या है?
  6. धारा 188 का क्या असर पड़ता है?
  7. धारा 188 पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

धारा 188 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अनुसार

जो भी कोई यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जिसे प्रख्यापित करने के लिए लोक सेवक विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने से बचे रहने के लिए या अपने कब्जे या प्रबन्धाधीन, किसी संपत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निदेश की अवज्ञा करेगा;

यदि ऐसी अवज्ञा - विधिपूर्वक नियुक्त व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति का जोखिम कारित करे, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिए सादा कारावास की सजा जिसे एक मास तक बढ़ाया जा सकता है, या दौ सौ रुपए तक के आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा;

और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, या उपद्रव या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे छह मास तक बढ़ाया जा सकता है, या एक हजार रुपए तक के आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण--यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय क्षति उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से क्षति होना संभाव्य है । यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है, उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से क्षति उत्पन्न होती या होनी संभाव्य है।

लागू अपराध
लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा।
1. यदि ऐसी अवज्ञा - विधिपूर्वक नियुक्त व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, कारित करे।
सजा - एक मास सादा कारावास या दौ सौ रुपए आर्थिक दण्ड या दोनों।
यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मेजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

2. यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट कारित करे -
सजा - छह मास कारावास या एक हजार रुपए आर्थिक दण्ड या दोनों।
यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मेजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।


भारतीय दंड संहिता की धारा 188

भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अनुसार किसी भी पब्लिक सर्वेंट के द्वारा जारी किए गए ऑर्डर को न मानने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान दिया गया है। इसके मुताबिक, "जो कोई भी जानबूझकर पब्लिक सर्वेंट के आदेश की अवमानना करता है, उसको जेल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं."।

जो कोई भी व्यक्ति यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक या कानून से प्राप्त अधिकारों से सशक्त है, कोई कार्य करने से विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में, या अपने प्रबन्धाधीन, किसी संपत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निर्देश की अवज्ञा करेगा, या उस आदेश की अवहेलना कर उसका पालन नहीं करता है, तो वह व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अनुसार दंड का भागीदार होता है।

यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम उत्पन्न करे, या उत्पन्न करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दौ सौ रुपए तक का हो सकता है, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को संकट उत्पन्न करे, या उत्पन्न करने की प्रवॄत्ति रखती हो, या बल्वा या दंगा उत्पन्न करती हो, या उत्पन्न करने की प्रवॄत्ति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकता है, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।


धारा 188 की आवश्यकता कब होती​ है?

जब देश, राज्य या किसी शहर में कोई आपातकाल जैसी स्तिथि की बात सामने आती है, या किसी युद्ध, महामारी या फिर किसी बड़ी परेशानी को रोकने या उससे बचाव के लिए किसी राज्य सरकार या किसी प्रशासनिक अधिकारी द्वारा कोई ऐसा आदेश पास किया जाता है, जिसमें देश, राज्य या किसी शहर के नागरिकों को कोई कार्य करने के लिए या कोई कार्य न करने के लिए आदेश दिया जाता है, जिस आदेश का मूल उद्देश्य केवल देश हित को बरक़रार रखने का ही होता है। यदि कोई व्यक्ति जो ऐसे आदेश का पालन नहीं करता है, तो इस प्रकार के आदेश के सही क्रियान्वयन के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 188 बनाई गयी है।


कर्फ्यू क्या होता है?

कर्फ्यू एक प्रकार का सख्त जनादेश होता है, जो लोगों को सड़कों पर उतरने से दूर रखता है। यह राज्य के नियमों के अनुसार और आपातकालीन स्थितियों में घोषित किया जाता है। इसके दौरान लोग निर्धारित घंटों के लिए घर के अंदर रहने पर मजबूर होते हैं। कर्फ्यू का अपालन करने पर जुर्माना या गिरफ्तारी भी हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर 22 मार्च, 2020 रविवार को किया गया जनता कर्फ्यू वास्तविक कर्फ्यू से काफी अलग था। जनता कर्फ्यू खुद नागरिकों द्वारा लगाया गया कर्फ्यू था। ऐसी स्थिति के दौरान, भले ही सभी को सार्वजनिक स्थानों पर या बाहर न निकलने की सलाह दी गई थी, लेकिन इसका अपालन करने पर कोई दंड नहीं था। लेकिन देश में चुनावों के समय आपने कर्फ्यू के बारे में बहुत सुना होगा जिसमें किसी सार्वजनिक स्थान पर चार से अधिक व्यक्ति एकत्र होने पर वे सभी इस आदेश का पालन न करने के दोषी कहे जाते हैं, और वे सभी दंड के भागीदार बन जाते हैं।


लॉकडाउन क्या है?

कोरोना वायरस महामारी के दौरान लॉकडाउन एक आम शब्द बन गया है। लॉकडाउन एक आपातकालीन प्रोटोकॉल है, जो लोगों को किसी दिए गए क्षेत्र को छोड़ने से रोकता है। इसका मतलब है, लोगों को घर छोड़ने से रोकने के लिए एक बड़ा कदम उठाना है।

आपको घर छोड़ने या फिर सफर करने के लिए प्रमाण की ज़रूरत पड़ती है। लॉकडाउन आपको एक ही जगह पर रहने के लिए मजबूर करता है, और आप एक जगह से बाहर या दूसरी जगह पर प्रवेश नहीं कर सकते। हालांकि, एक लॉकडाउन के दौरान खाने - पीने, दवाइयां या ऐसे ही ज़रूरत के सामान पर रोक नहीं लगती।

यह परिदृश्य आमतौर पर आवश्यक आपूर्ति, किराने की दुकानों, फार्मेसियों और बैंकों को लोगों की सेवा जारी रखने की अनुमति देता है। लॉकडाउन की अवधि तक सभी गैर - जरूरी गतिविधियां पूरी अवधि के लिए बंद रहती हैं।

लेकिन लॉकडाउन के समय आवश्यक गतिविधियों की पूर्ति के लिए अलग - अलग राज्य सरकार अपनी रुपरेखा बनती है, जिसका आम जनता के साथ - साथ उस राज्य के सभी नागरिक अनुसरण करते हैं। और जो लोग इस आदेश का पालन नहीं करते हैं और बिना मतलब के सड़कों पर घूमते पाए जाते हैं, तो उन सभी लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अनुसार कार्यवाही की जाती है।


धारा 188 का क्या असर पड़ता है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के दौरान आपको किराने का सामान लेने, डॉक्टर के पास जाने या टहलने जाने जैसी सभी आवश्यक गतिविधियां करने की अनुमति दी जाती है, बशर्ते आप सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। आपातकालीन सेवाओं में काम करने वाले लोग प्रतिबंधों में शामिल नहीं हैं। बेहतर है कि अपने स्थानीय अधिकारियों द्वारा जारी नियमों का पालन करें। ग़ैर-आवश्यक स्थानों को बंद किया जा सकता है जिसमें स्कूल, कॉलेज, व्यवसाय शामिल हैं। यहां तक कि परिवहन पर भी रोक लग सकती है, लेकिन कोई भी परेशानी कितनी बड़ी है, ये उस पर निर्भर करता है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

Offence : किसी लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक दिए गए आदेश की अवहेलना, यदि ऐसी अवज्ञा से विधिपूर्वक नियोजित व्यक्तियों को बाधा, झुंझलाहट या चोट लगती है


Punishment : 1 महीने के लिए साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों


Cognizance : संज्ञेय


Bail : जमानती


Triable : किसी भी मजिस्ट्रेट



Offence : यदि इस तरह की अवज्ञा से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा आदि को खतरा होता है


Punishment : 6 महीने या जुर्माना या दोनों


Cognizance : संज्ञेय


Bail : जमानती


Triable : किसी भी मजिस्ट्रेट



आईपीसी धारा 188 को बीएनएस धारा 223 में बदल दिया गया है।



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IPC धारा 188 पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


आई. पी. सी. की धारा 188 के तहत क्या अपराध है?

आई. पी. सी. धारा 188 अपराध : किसी लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक दिए गए आदेश की अवहेलना, यदि ऐसी अवज्ञा से विधिपूर्वक नियोजित व्यक्तियों को बाधा, झुंझलाहट या चोट लगती है



आई. पी. सी. की धारा 188 के मामले की सजा क्या है?

आई. पी. सी. की धारा 188 के मामले में 1 महीने के लिए साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।



आई. पी. सी. की धारा 188 संज्ञेय अपराध है या गैर - संज्ञेय अपराध?

आई. पी. सी. की धारा 188 संज्ञेय है।



आई. पी. सी. की धारा 188 के अपराध के लिए अपने मामले को कैसे दर्ज करें?

आई. पी. सी. की धारा 188 के मामले में बचाव के लिए और अपने आसपास के सबसे अच्छे आपराधिक वकीलों की जानकारी करने के लिए LawRato का उपयोग करें।



आई. पी. सी. की धारा 188 जमानती अपराध है या गैर - जमानती अपराध?

आई. पी. सी. की धारा 188 जमानती है।



आई. पी. सी. की धारा 188 के मामले को किस न्यायालय में पेश किया जा सकता है?

आई. पी. सी. की धारा 188 के मामले को कोर्ट किसी भी मजिस्ट्रेट में पेश किया जा सकता है।