धारा 100 आईपीसी - IPC 100 in Hindi - सजा और जमानत - किसी की मॄत्यु कारित करने पर शरीर की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार कब लागू होता है।

अपडेट किया गया: 01 Dec, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

विषयसूची

  1. धारा 100 का विवरण
  2. क्या होती है भारतीय दंड संहिता की धारा 100?
  3. भारतीय दंड संहिता की धारा 100 के लिए आवश्यक तत्व
  4. धारा 100 में वकील की जरुरत क्यों होती है?

धारा 100 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 100 के अनुसार

शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती धारा में वर्णित बंधनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छा पूर्वक मॄत्यु कारित करने या कोई अन्य क्षति कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात निम्न प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात्: -

  1. ऐसा हमला जिससे यथोचित रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मॄत्यु होगा।

  2. ऐसा हमला जिससे यथोचित रूप से आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर क्षति होगा;

  3. बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला;

  4. प्रकॄति-विरुद्ध काम-तॄष्णा की तॄप्ति के आशय से किया गया हमला;

  5. व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला;

  6. इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में अनुचित रूप से प्रतिबंधित किया जाए, जिनसे उसे यथोचित रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा;

  7. तेजाब फेकने का कार्य या प्रयास करना जिससे यथोचित रूप से आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे कृत्य का परिणाम घोर क्षति होगा। (आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013)।


क्या होती है भारतीय दंड संहिता की धारा 100?

भारत के हर नागरिक का भारत पर बराबर का अधिकार होता है, और इसी अधिकार के अनुसार भारत के हर नागरिक की सुरक्षा का दायित्व भारत की सरकार या स्थानीय सरकार पर होता है, पर क्या ये सम्भव है, कि हर व्यक्ति को हर समय, किसी भी परिस्थिति में तुरंत सुरक्षा उपलब्ध करवाई जा सकें? इसका साधारण सा यह जबाब है, कि ऐसा नहीं हो सकता है। इसीलिए, भारतीय दंड संहिता की धारा 100 के अंतर्गत हर नागरिक को अपने शरीर की निजी तौर पर, उसके शरीर पर हुए घातक हमले या हमले की आशंका होने पर अपने शरीर की रक्षा करने का अधिकार प्रदान किया गया है, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर इस अधिकार को किन परिस्थितियों में और किस हद तक प्रयोग किया जा सकता है, यह आई.पी.सी की इस धारा में विस्तार से बताया गया है।


भारतीय दंड संहिता की धारा 100 के लिए आवश्यक तत्व

यह धारा एक प्रकार के अधिकार की बात करती है, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति निजी प्रतिरक्षा के लिए किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु का कारण तक हो सकता है, इस धारा के अनुसार वे स्तिथि इस प्रकार हैं, जब कोई व्यक्ति अपनी निजी प्रतिरक्षा के लिए किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकता है।

पहला- ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा|
दूसरा- ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा;
तीसरा- बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला ;
चौथा- प्रकृति-विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला ;
पांचवां- व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला ;
छठा- इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा” ।
सातवां- तेजाब फेकने का कार्य या प्रयास करना जिससे यथोचित रूप से आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे कृत्य का परिणाम घोर क्षति होगा।


धारा 100 में वकील की जरुरत क्यों होती है?

भारतीय दंड संहिता में धारा 100 किसी व्यक्ति को एक प्रकार का अधिकार प्रदान करती है, इसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति से अपनी खुद की जान बचाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। किन्तु वह व्यक्ति उस मरने वाले व्यक्ति की हत्या नहीं करना चाहता था, किन्तु उसे खुद की जान बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी था, तो ऐसे व्यक्ति को कुछ स्तिथियों में कानूनन सजा नहीं दी जाती है, लेकिन इस बात की जानकारी के लिए आपको एक ऐसे वकील की आवश्यकता होती है, जो आपको आपके अधिकार के बारे में जागरूक कर सके, क्योंकि ऐसे अपराध में किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और खुद की जान बचाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनने के मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 100 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।

आईपीसी धारा 100 को बीएनएस धारा 38 में बदल दिया गया है।



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