तलाक कैसे लेते है - पूरी प्रक्रिया | Divorce Process in Hindi



हमारे भारत देश में पति व पत्नी के रिश्ते को एक अटूट रिश्ते के रुप में देखा जाता था, जिसे पुरानी कहावतों के अनुसार सात जन्मो का रिश्ता भी कहा जाता है। लेकिन आजकल पति व पत्नी के बीच छोटी सी बात को लेकर भी विवाद इतना बढ़ जाता है कि वह रिश्ते को खत्म करने तक पहुँच जाता है। जिसके लिए उन दोनों को एक दूसरे से अलग होने के लिए तलाक लेना पड़ता है, परन्तु तलाक लेना या देना इतनी आसान प्रक्रिया नहीं है। हमारे देश में लोग डिवोर्स के बारे में तो जानते है लेकिन Divorce लेने की प्रक्रिया क्या होती है इसकी जानकारी आज के समय में भी बहुत से लोगों को नहीं है। इसलिए आज के लेख द्वारा हम बहुत ही सहज भाषा में जानेंगे की तलाक कैसे लेते है (Divorce Process in Hindi), भारत में पुरुष महिला के तलाक लेने की प्रक्रिया क्या है (हिंदू, मुस्लिम, इसाई)? डिवोर्स के लिए कानून क्या है? आपसी सहमति या एकतरफा तलाक कैसे ले?


विषयसूची

  1. तलाक क्या होता है - What is Divorce in Hindi
  2. भारत में डाइवोर्स कितने प्रकार के होते है - Type of Divorce in India
  3. आपसी सहमति से तलाक कैसे लेते है
  4. भारत में तलाक लेने की प्रक्रिया क्या है (Divorce Process in Hindi)?
  5. भारत में पति व पत्नी के डिवोर्स लेने के क्या कारण हो सकते है?
  6. आपसी सहमति से तलाक (डिवोर्स):-
  7. विवादित तलाक (एकतरफा)
  8. विवादित तलाक लेने के लिए मुख्य आधार कौन से है?
  9. मुस्लिम पर्सनल लॉ 1939 के अनुसार तलाक
  10. भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 - ईसाई समुदाय के तलाक
  11. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936
  12. भारत में विवादित तलाक की प्रक्रिया
  13. मुस्लिम समुदाय के लिए तलाक की प्रक्रिया क्या है?
  14. तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता क्या होता है?
  15. तलाक के बाद चाइल्ड कस्टडी और मुलाक़ात
  16. तलाक के लिए आवश्यक दस्तावेज - Documents for Divorce


तलाक क्या होता है - What is Divorce in Hindi

तलाक एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) होती है जिसके द्वारा विवाहित पुरुष व महिला (Married Man & Women) अपने विवाहित (Married) जीवन के सभी संबंधों को खत्म करने का निर्णय लेते है। यह कार्य वैवाहिक जीवन के एक ऐसे मोड़ पर लिया जाता है, जब विवाहित जोड़े के रिश्तों के बीच बात बहुत ज्यादा बिगड़ जाती है।

शादीशुदा महिला व पुरुष के जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितयाँ उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण उन दोनों का एक साथ रहना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार की स्थिति में वह आपस में समझौता (Compromise) नहीं करने के कारण तलाक के माध्यम से अपने पति और पत्नी के रिश्ते को कानूनी प्रक्रिया के द्वारा खत्म कर देते है और अलग हो जाते है।  

आसान शब्दों मे कहे तो यह विवाह को समाप्त करने का एक ऐसा तरीका है जो दोनों पक्षों को कानूनी और आर्थिक (Legal & Economic) रूप से अलग-अलग तरीके से अपना जीवन जीने की अनुमति देता है।



भारत में तलाक लेने की प्रक्रिया क्या है (Divorce Process in Hindi)?

भारत में तलाक की प्रक्रिया को छह चरणों (Six Steps) में विभाजित किया गया है जो कि इस प्रकार है:-

  1. याचिका दाखिल करना: इसके पहले चरण में पति या पत्नी में से किसी के द्वारा पारिवारिक न्यायालय (Family Court) में तलाक याचिका दायर (Petition filled) करना शामिल है। याचिकाकर्ता (Petitioner) याचिका में डिवोर्स लेने की सभी बातों का जिक्र करता है जैसे :- तलाक के आधार, विवाह के बारे में विवरण और मांगी गई चीजों की सूची।
  2. सम्मन जारी करना:- याचिका दायर करने के बाद अदालत दूसरे पक्ष को तलाक की कार्यवाही के बारे में सूचित करने और जवाब देने का अवसर प्रदान करने के लिए सम्मन (Summons) जारी करती है।
  3. प्रतिक्रिया/प्रतिदावा:- सम्मन प्राप्त होने के बाद दूसरे पक्ष (पति या पत्नी) को Divorce Petition का जवाब दाखिल करने के लिए एक समय दिया जाता है। वे या तो Divorce का विरोध कर सकते हैं या इसके लिए सहमत हो सकते हैं। यदि दूसरा पक्ष इस डिवोर्स का विरोध करता है, तो वे तलाक या इसके लिए दी जाने वाले अन्य राहत के लिए अपने स्वयं के आधार या कारण बताते हुए प्रतिवाद या विरोध (Counter claim) दायर कर सकते हैं।
  4. साक्ष्य और तर्क: इसके बाद जब एक बार जब दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें दायर कर दी, तो Court सबूत और तर्क पेश करने के लिए सुनवाई (Hearing) का समय निर्धारित करती है। इस में गवाहों (Witness) को पेश करना और उनके मामले का समर्थन करने वाले कानूनी बातें शामिल हैं। अदालत तलाक के कारण, बच्चे की कस्टड़ी (बच्चा किसको मिलेगा), संपत्ति का विभाजन और गुजारा भत्ता जैसी बातों पर विचार कर सकती है।
  5. मध्यस्थता/निपटान चर्चा: कुछ मामलों में अदालत दोनों पक्षों को समझौता या आपस में चर्चा करने के लिए कह सकती है, ताकि उन्हें बच्चे की कस्टड़ी (Child Custody), बच्चे से मुलाकात और संपत्ति विभाजन (Property Division) जैसे मुद्दों पर एक समझौते करने का मौका मिल सके। यदि कोई समझौता हो जाता है, तो इसे अनुमोदन (Approval) के लिए Court में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  6. तलाक की डिक्री: यदि अदालत सबूतों (Evidence) और पेश किए गए तर्कों (Arguments) से पूरी तरह से संतुष्ट है, और यदि कोई समझौता नहीं होता है तो तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) सुना दी जाती है। यह डिक्री कानूनी रूप से विवाह को समाप्त करती है और Conditions OF Divorce को जारी करती है, जिसमें बच्चे की कस्टड़ी, मुलाक़ात के अधिकार, गुजारा भत्ता (Alimony) और संपत्ति का विभाजन जैसी सभी बातें शामिल है।


भारत में पति व पत्नी के डिवोर्स लेने के क्या कारण हो सकते है?

Divorce लेने की प्रक्रिया को समझने से पहले हमें इस बात के बारे में भी जानना बहुत जरुरी है कि ऐसे क्या मुख्य कारण होते है जिनकी वजह से पति व पत्नी एक दूसरे से अलग होने का फैसला ले लेते है।

  • सामाजिक और मानसिक तनाव: जब पति और पत्नी के बीच किसी बात को लेकर सामाजिक (Social), मानसिक (Mentally), और पारिवारिक (Family) ज्यादा बढ़ जाता है तो तनाव (Stress) के कारण दोनों के द्वारा भी ऐसा फैसला लिया जा सकता है जैसे लड़ाई झगड़े, असंतुष्टि, घर के क्लेश के कारण, धोखेबाजी के कारण, आदि।
  • अदालती मामले: कई बार ऐसे मामले भी इसका कारण हो सकते है जिनमें अत्याचार करना (Torture), मानसिक व शारीरिक (Mental & Physical) रुप से यातना देना, किसी बात को छिपाना, अयोग्यता ये सभी ऐसे मामले होते है जिनके कारण पहले से ही मामला अदालत में चल रहा हो इन सब के कारण Divorce की मांग की जा सकती है।
  • दहेज की मांग: बहुत बार देखा जाता है कि किसी महिला को दहेज (Dowry) के कारण उसके ससुराल के लोगों द्वारा बहुत परेशान किया जाता है तो दहेज की मांग भी Divorce का कारण बन सकती है।

यह सिर्फ कुछ सामान्य उदाहरण है और किसी भी परिवार में तलाक की स्थिति व कारण की और भी बहुत सारी अलग- अलग वजह हो सकती है।



भारत में डाइवोर्स कितने प्रकार के होते है - Type of Divorce in India

भारत में Divorce के प्रकार अलग-अलग धार्मिक समुदायों (Religious Communities) पर लागू व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, क्योंकि भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग विवाह और Divorce Law हैं जैसे:-

  • हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
  • मुस्लिम लोगों के लिए मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939
  • पारसियों के लिए पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936।
  • भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 द्वारा ईसाई धर्म के लोगों के लिए।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1956 सभी अंतर-सामुदायिक और नागरिक विवाहों को नियंत्रित करता है।

लेकिन भारत में तलाक की याचिका दायर करने के लिए Divorce के मुख्य रुप से दो प्रकार होते है, जो की इस प्रकार है।

  1. आपसी सहमति से (Divorce by mutual Consent)
  2. विवादित तलाक (Contested Divorce)


आपसी सहमति से तलाक (डिवोर्स):-

इस प्रकार का Divorce हिंदू विवाह अधिनियम, ईसाई विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम सहित विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के अंदर उपलब्ध होता है। जिसका अर्थ है कि दोनों पति-पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को को समाप्त करने के लिए सहमत होते हैं और दोनों एक साथ अपनी मर्जी से Court में Divorce की याचिका दायर करते हैं।

इस कानून के तहत दोनों पति पत्नी को यह साबित करना होगा कि वे एक दूसरे से 1 साल से अलग रह रहे है और अब दोनों मिलकर आपसी सहमति (Mutual Consent) से ये Divorce लेना चाहते है।



विवादित तलाक (एकतरफा)

यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें पति-पत्नी संपत्ति के विभाजन, बच्चे का पालन पोषण, गुजारा भत्ता, या किसी अन्य बात को  लेकर समझौता करने में असमर्थ होते है। इसमें पति या पत्नी में से कोई एक तलाक के लिए Petition File करता है, लेकिन दूसरा उसका विरोध करता है।

लेकिन विवाह के लिए बनाए गए कानूनों में पति व पत्नी दोनों के लिए कुछ जरुरी कानून बनाए गए है। यदि दोनों में से कोई एक पक्ष इन अधिकारों का उल्लंघन (Violation of Rights) करता है तो दूसरा पक्ष तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है।



विवादित तलाक लेने के लिए मुख्य आधार कौन से है?

भारत में Contested Divorce लेने के आधारों को भी अलग-अलग धर्मों के अनुसार ही बताया गया है जो कि इस प्रकार है।

  • हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) 1955 हिंदू विवाह अधिनियम 1955 हिंदूओं, बौद्ध, जैन और सिखों पर लागू होता है।
  • परित्याग द्वारा तलाक: एक पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण या सहमति के कम से कम दो साल की निरंतर अवधि के लिए दूसरे को छोड़ देते हैं।
  • क्रूरता के कारण तलाक: पति पत्नी मे से कोई एक दूसरे के साथ शारीरिक या मानसिक क्रूरता करता है, जिससे विवाह को जारी रखना मुश्किल हो जाता है।
  • व्यभिचार के कारण: यह एक ऐसा कारण होता है जिसमें पति या पत्नी में से कोई एक किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध शारीरिक संबंध (illegal Physical Relationship) बनाने में शामिल होता है।
  • धर्मांतरण के कारण: यदि पति या पत्नी में से कोई भी अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म (Religion) में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • मानसिक विकार के कारण: पति या पत्नी में से कोई एक मानसिक विकार (Mental Disorders) से पीड़ित होता है यानी मानसिक रुप से अस्वस्थ होता है।
  • कुष्ठ रोग के कारण:- यदि महिला या पुरुष दोनों में से कोई भी लंबे समय से कुष्ठ रोग (Leprosy) का रोगी होता है जिससे वह रोग दूसरे को भी फैलने का कारण बन सकता हो।


मुस्लिम पर्सनल लॉ 1939 के अनुसार तलाक

यह कानून केवल मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के लोगों पर लागू होता है। मुस्लिम कानूनों (Muslim Laws) के अनुसार एक पुरुष अपनी पत्नी को बिना कोर्ट की प्रक्रिया के भी Divorce दे सकता है। लेकिन यदि मुस्लिम महिला तलाक लेना चाहे तो उन्हें अपने पति की अनुमति की आवश्यकता पड़ती है या इस अधिनियम (Act) की धारा 2 में दिए गए आधारों के अनुसार मुस्लिम महिलाएं भारत में अपने लिए तलाक ले सकती है। 

  • यदि किसी महिला को अपने पति का कम से कम 4 साल तक कोई पता ना चला हो कि वो कहाँ है। 
  • किसी महिला व उसके बच्चों का पालन-पोषण 2 साल तक उसके पति ने ना किया हो।  
  • यदि पति को 7 वर्ष की कैद हो गई हो।
  • पुरुष शादी के समय से नपुंसक (Impotent) था और यौन रोगों (Sexual Diseases) से पीड़ित होने पर या दो वर्षों से अधिक समय तक मानसिक तौर पर अस्वस्थ होने पर।
  • पति अपनी पत्नी मारता पीटता हो या उस महिला के साथ कम उम्र में ही शादी कर ली हो।


भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 - ईसाई समुदाय के तलाक

यह कानून भारत में ईसाइयों (Christians) पर लागू होता है। इस अधिनियम में ईसाई धर्म के वैवाहिक जोड़े के लिए Divorce के आधारों के बारे में बताया गया है जिसके द्वारा ईसाई धर्म के महिला व पुरुष एक दूसरे से तलाक की मांग कर सकते है जो इस प्रकार हैं:-

  • किसी पुरुष द्वारा शादीशुदा होते हुए धर्म परिवर्तन (Religion Change) करना और किसी दूसरी लड़की से शादी करना। 
  • दोनों में से किसी का भी किसी दूसरे पुरुष या महिला से अवैध शारीरिक संबंध होने पर।
  • अवैध संबंध होने के साथ-साथ दूसरा विवाह (Second Marriage) करने पर।
  • कम से कम 2 वर्ष की अवधि के लिए परित्याग करने पर।


पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936

यह कानून पारसी समुदाय (Parsi Community) पर लागू होता है और उनकी शादी और तलाक की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।



आपसी सहमति से तलाक कैसे लेते है

भारत में आपसी सहमति से Divorce लेने की प्रक्रिया इस प्रकार है:-
 

  • समझौता: पति-पत्नी के बीच आपसी सहमति व तलाक की शर्तों के साथ विवाह को समाप्त करने के लिए सभी बातों का समझौते होना चाहिए, जिसमें बच्चे किसके पास रहेगा, मुलाकात के अधिकार, संपत्ति का बंटवारा, गुजारा भत्ता (Alimony) जैसी बातें शामिल है।
  • दोनों पति-पत्नी एक साथ मिलकर पारिवारिक न्यायालय (Family Court) में Divorce petition file करते हैं। याचिका में विवाह, अलग होने की अवधि (Separation Period) ,और तलाक के समझौते की सहमत शर्तों के बारे में विवरण शामिल होना चाहिए।
  • इसके बाद अदालत Petition में दिए गए सभी दस्तावेजों (Documents) की जांच करने के बाद शपथ पर दोनों के बयानों (Statements) को दर्ज करने के आदेश को पारित करती है।
  • इसके बाद Court द्वारा दोनों पार्टियों को आपस में समझौते के लिए 6 महीने का समय देती है। जिसे कूलिंग-ऑफ़ अवधी (Cooling off Period) के रुप में भी जाना जाता है।  
  • अगर 6 महीने के दिए गए समय के बाद भी दोनों पक्षों में वापिस एक साथ रहने की सुलह (Compromise) नहीं होती तो पति व पत्नी दोनों को आखिरी सुनवाई (Last Hearing) के लिए Court में हाजिर होना पड़ता है।  
  • अंतिम सुनवाई होने के बाद अदालत द्वारा दोनों पक्षों के वैवाहिक जीवन को समाप्त करने के लिए डिक्री (Decree) पारित कर देती है।


भारत में विवादित तलाक की प्रक्रिया

आपसी सहमति से Divorce की तुलना में यह अधिक मुश्किल प्रक्रिया है। भारत में विवादित तलाक के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
 

  • चरण 1: याचिका दाखिल करना:- Divorce की मांग करने वाला याचिका कर्ता सबसे पहले अदालत में तलाक की याचिका दायर (Petition filled) करता है। उस में वह तलाक लेने के आधार सहित अन्य सभी मामलों को शामिल करता है।  
  • चरण 2: नोटिस की पालना करना: याचिका दायर होने के बाद तलाक की कार्यवाही का नोटिस (Notice) दूसरे पक्ष को दिया जाता है, और उन्हे Court की सुनवाई के बारे में सूचित किया जाता है।
  • चरण 3: इसके बाद अदालत आगे की कार्यवाही करते हुए दोनों पक्षों को आपस में समझौता (Compromise) करने का एक अवसर देती है। अगर दोनों पक्षों के बीच समझौता नहीं होता तो अदालत आगे की कार्यवाही करती है।   
  • चरण 4: अदालती कार्यवाही और परीक्षण: दोनों पक्षोx कोर्ट के सामने अपनी दलीलें (Arguments), सबूत और गवाह पेश करते है। जिसके बाद अदालत सबूतों की जांच करती है और तर्कों को सुनती है और मामले के लागू कानूनों और परिस्थितियों के आधार पर Child Custody, संपत्ति के बंटवारे और गुजारा भत्ता जैसे विभिन्न मुद्दों पर निर्णय लेती है।
  • चरण 5: अंतिम निर्णय: प्रस्तुत सभी साक्ष्यों और तर्कों (Evidence & Arguments) पर विचार करने के बाद अदालत अंतिम निर्णय (Final Decision) जारी करती है, जिसमें तलाक और संबंधित मामलों पर निर्णय शामिल होता है। जिसके बाद अदालत डिक्री पारित करती है और तलाक के बाद दोनों पक्षो के अधिकारों और दायित्वों (Rights & Obligations) को निर्धारित करता है।


मुस्लिम समुदाय के लिए तलाक की प्रक्रिया क्या है?

भारत में Muslim Personal Law Divorce के विभिन्न तरीकों को मान्यता देते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार शामिल हैं:

तलाक: तलाक मुस्लिम समुदाय में तलाक को मौखिक रूप (बोलकर) से, लिखित रूप (लिखकर) में या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दिया जा सकता है। जैसे Email द्वारा, Social sites द्वारा।

1. तलाक-ए-सुन्नत: यह Divorce का एक प्रथागत (पुरानी प्रथा का) रूप है जहां किसी महिला का पति दी गई समय की अवधि में तीन अलग-अलग मौकों पर तलाक शब्द बोल देता है तो वह रिश्ता खत्म हो जाता है।

2. तलाक-ए-हसन: यह एक ऐसा नियम है जहां किसी मुस्लिम महिला का पति लगातार तीन महीने के तीन अलग-अलग मौकों पर तलाक का उच्चारण करता है तो वो तलाक मान्य होता है।

3. तलाक-ए-बिद्दत (ट्रिपल तलाक): यह Divorce का एक विवादास्पद (Controversial) रूप है जहां कोई व्यक्ति बिना किसी प्रतीक्षा समय (Waiting Period) के एक साथ तीन बार तलाक बोल देता है और उसी समय उसका उसकी पत्नी से संबंध खत्म हो जाता है।

4. न्यायिक तलाक: ऐसे मामलों में जहां पक्ष समझौता (Compromise) करने में असमर्थ हैं या Divorce के लिए कुछ शर्तों को पूरा नहीं किया जाता है तो अदालत विशिष्ट आधारों (Specific Grounds) पर तलाक दे सकती है, जैसे कि क्रूरता, परित्याग, नपुंसकता, या Muslim Personal Law के तहत मान्यता प्राप्त कोई अन्य कानून (Law)।



तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता क्या होता है?

भारत में गुजारा भत्ता (Alimony) जिसे रखरखाव के रूप में भी जाना जाता है, तलाक के बाद एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता (Financial Help) को कहा जाता है। यह सभी संसाधनों (घर, पैसे, जमीन आदि) के समान वितरण और आश्रित (Dependent) पति या पत्नी की वित्तीय भलाई सुनिश्चित करने की आवश्यकता के आधार पर एक पति या पत्नी पर दूसरे को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए लगाया गया कानूनी दायित्व (Legal Obligation) होता है।

भारत में गुजारा भत्ता की राशि और अवधि विभिन्न बातों के आधार पर निर्धारित की जाती है, जो कि इस प्रकार है:-

  • आय और कमाई की क्षमता: Alimony की राशि पति व पत्नी दोनों की कमाई (Earnings) के आधार पर निर्धारित करती है।
  • वित्तीय जरूरतें: अदालत निर्भर पति या पत्नी की उम्र, जीवन स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी जरुरी बातों पर विचार करते हुए उनकी उनकी वित्तीय आवश्यकता के हिसाब से गुजारा भत्ता तय करती है।

यह ध्यान रखना आप सब के लिए बहुत जरुरी है कि गुजारा भत्ता के कानून अलग-अलग धर्मों के हिसाब से थोड़े अलग भी हो सकते है। इसलिए ज्यादा जानकारी के लिए आपको किसी कानूनी सलाहकार (Legal Advisor) जैसे - वकील से परामर्श (Counseling) की सलाह दी जाती है।



तलाक के बाद चाइल्ड कस्टडी और मुलाक़ात

यदि किसी शादीशुदा जोड़े (Married Couple) के बच्चे है तो तलाक के बाद वो बच्चे किस के साथ रहेंगे ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात होती है। बच्चे की custody किसे दी जाती है इस पर निर्णय Court लेती है। न्यायालय यह निर्णय बच्चों के हितों, विकास और उनको मिलने वाले अच्छे वातावरण को देखते हुए लेती है।  

यदि न्यायालय किसी एक अभिभावक (Guardian) को बच्चे की custody देती है तो दूसरे अभिभावक को Court द्वारा निर्धारित समय-समय पर बच्चे के साथ मिलने का अधिकार (Right) दिया जा सकता है।



तलाक के लिए आवश्यक दस्तावेज - Documents for Divorce

भारत में Divorce के लिए आवश्यक दस्तावेज़ों (Important Documents) की सूची (List) इस प्रकार है-:

विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र:- इसके लिए सबसे पहले विवाह का पंजीकरण प्रमाणपत्र (Marriage Registration Certificate) आवश्यक होता है।

तलाक आवेदन पत्र:- इसके बाद एक आवेदन पत्र (Application) तैयार करना होता है। यह आपके Divorce की प्रक्रियाओं को शुरु करने का Document होता है।

विवाह सम्बंधित दस्तावेज़: इसमें शादी का कार्ड, शादी के फोटो, व अन्य आवश्यक चीजें शामिल होती है जो आपके विवाह के सबूत (Marriage Evidence) के तौर पर काम आती है।  

पति और पत्नी की पहचान प्रमाण पत्र: पति और पत्नी की पहचान पत्रों (Identity Cards) की फोटोकापी, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, या पासपोर्ट, आवश्यक हो सकती है।

आपत्ति पत्र: इस प्रकार के मामलों में आपको एक आपत्ति पत्र (Objection Letter) प्रस्तुत करना होगा, जिसमें तलाक का कारण और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी शामिल हो सकती है।

निवास प्रमाण पत्र: आपका स्थायी रहने वाले घर के पते को साबित करने वाला दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, राशन कार्ड, या बिजली/पानी का बिल, आवश्यक हो सकता है।

वित्तीय दस्तावेज: तलाक की कार्यवाही में वित्तीय दस्तावेज (Financial Documents) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासकर जब संपत्ति विभाजन, गुजारा भत्ता और बच्चे के समर्थन की बात आती है। इनमें शामिल हो सकते हैं:

  • बैंक विवरण (Bank Details)
  • कर विवरण (Tax Details)
  • निवेश खाता विवरण (Investment Account Details)
  • क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट (Credit Card Statement)

आय का प्रमाण: दोनों पति-पत्नी को अपनी आय के दस्तावेज (Income Document) उपलब्ध कराने की आवश्यकता हो सकती है, जैसे रोजगार की जानकारी, वेतन की जानकारी, व्यवसाय रिकॉर्ड, या कमाई का कोई अन्य प्रमाण।

दोस्तों आज आपने जाना भारत में तालक कैसे लेते है - पूरी प्रक्रिया - How to get Divorce in India? हम उम्मीद करते है आपको डिवोर्स से जुडी पूरी जानकारी मिल गई होगी। अगर आपके कोई सवाल है तो आप कमेंट्स बॉक्स में लिखकर हमसे पूछ सकते है।


अपने कानूनी मुद्दे के लिए अनुभवी तलाक वकीलों से सलाह प्राप्त करें