मानहानि कानून और इसकी सजा क्या है

December 08, 2023
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा
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बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के संविधान द्वारा प्रत्येक भारतीय नागरिक को दिया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत यह मौलिक अधिकार हमें अन्य व्यक्तियों के समक्ष अपने विचार और राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता देता है।

यह मौलिक अधिकार, दूसरे अधिकारों की तरह एकपक्षीय नहीं हो सकता है, इसीलिए यह कुछ प्रतिबंधों से घिरा हुआ है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित हैं। इस तरह के प्रतिबंध उन मामलों में लगाए जाते हैं, जहां कोई भी स्टेटमेंट देश के लिए हानिकारक या किसी की मानहानि की प्रकृति के होते हैं। मानहानि का कानून लगाने के लिए यह सुनिश्चित किया जाता है, कि दूसरों की प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए गलत स्टेटमेंट नहीं दिए गए हैं।


मानहानि का मतलब क्या है?

मानहानि किसी व्यक्ति के चरित्र, प्रतिष्ठा या ख्याति को गलत या दुर्भावनापूर्ण स्टेटमेंट प्रकाशित करके ठेस पहुंचाने की क्रिया है। भारत में, मानहानि एक नागरिक गलत के साथ-साथ एक आपराधिक रूप से अनुचित भी है। दूसरे शब्दों में, वह व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है, वह मानहानि करने वाले व्यक्ति पर या तो मुआवजे के लिए मुकदमा कर सकता है, या उस पर इस तरह के कृत्यों के लिए आपराधिक मुकदमा कर सकता है। आम तौर पर मानहानि में किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके बारे में कुछ गलत प्रकाशन होने की आवश्यकता होती है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि किसी की भावनाओं को चोट पहुंचाने से मानहानि नहीं हो सकती बल्कि किसी झूठे स्टेटमेंट के कारण उसकी प्रतिष्ठा का नुकसान होना चाहिए।
 


मानहानि के प्रकार क्या हैं?

मानहानि के दो प्रकार होते हैं

  1. लिबेल (अभियोग पत्र)

  2. स्लेंडर (बदनामी)

लिबेल- यह स्थायी रूपों में किसी झूठे स्टेटमेंट के माध्यम से किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिए होता है। उदाहरण के लिए, लेखन, अखबार में छपाई, मानहानि की तस्वीरें प्रकाशित करना आदि।

स्लेंडर- यह बोले गए शब्दों या इशारों के माध्यम से मानहानि को संदर्भित करता है। इसमें इशारों की भाषा और अभिव्यक्तियों का संक्षिप्त रूप भी शामिल होता है। जैसे कि किसी व्यक्ति को धिक्कारना या आँख मारना या प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का कोई अन्य तरीका।

लिबेल और स्लेंडर में यह अंतर है कि स्लेंडर का स्टेटमेंट किसी भी माध्यम में किया जा सकता है। यह एक ब्लॉग टिप्पणी, भाषण या टेलीविजन पर कहा जा सकता है। लिबेल का स्टेटमेंट लिखित रूप में होता है (डिजिटल स्टेटमेंट को लिखित स्टेटमेंट के रूप में ही गिना जाता है)। स्लेंडर के स्टेटमेंट केवल मौखिक रूप से किए जाते हैं। हालाँकि, दोनों मामलों में यह आवश्यक है कि मानहानि के शब्द किसी तीसरे पक्ष द्वारा सुने / देखे जाएं, अर्थात मानहानि होने और मानहानि करने वाले व्यक्ति के आलावा कोई अन्य व्यक्ति होना चाहिए।

लिबेल किसी भी क्षति के प्रमाण के बिना कार्रवाही करने योग्य है, क्योंकि यह लिखित रूप में होता है, और इस लिखित रूप को साक्ष्य में प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन स्लेंडर के मामले में केवल तब ही कार्रवाही की जा सकती है, जब पीड़ित व्यक्ति कोई विशेष क्षति का सबूत देने में सक्षम हो। यह विशेष क्षति एक भौतिक क्षति है, जिसका मूल्यांकन मौद्रिक संदर्भ में किया जा सकता है।
 


भारतीय कानूनों के तहत मानहानि

मानहानि के लिए तीन मुख्य आवश्यक बातें हैं: -

प्रकाशित स्टेटमेंट- एक मानहानिकारक स्टेटमेंट प्रकाशित होना चाहिए। मानहानि किसी स्टेटमेंट का प्रकाशन है, जिससे किसी व्यक्ति के मान या चरित्र में हानि होती है। यहाँ प्रकाशन का अर्थ है कि इस तरह के मानहानिकारक स्टेटमेंट को किसी तीसरे व्यक्ति या और अधिक लोगों द्वारा सुना जाना चाहिए।

स्टेटमेंट में किसी अन्य व्यक्ति का उल्लेख होना चाहिए- एक मानहानि करने वाला स्टेटमेंट दूसरे व्यक्ति के बारे में होना चाहिए। यहां तक ​​कि अगर किसी व्यक्ति का अन्य किसी को बदनाम करने का इरादा नहीं है, तो वह अपने स्टेटमेंट के लिए उत्तरदायी हो सकता है, यदि उसके स्टेटमेंट किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि कर रहे हैं। वह स्टेटमेंट जो किसी को संदर्भित नहीं किया जाता है, वह मानहानि का स्टेटमेंट नहीं हो सकता है।

स्टेटमेंट मानहानिकारक होना चाहिए- किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया स्टेटमेंट प्रकृति में मानहानिकारक होना चाहिए, अर्थात, इसके कारण किसी तीसरे पक्ष की प्रतिष्ठा में नुकसान होना चाहिए। किसी भी स्टेटमेंट को मानहानि नहीं कहा जा सकता। इसके लिए न्यायलय फैसला करती है, कि क्या एक स्टेटमेंट मानहानिकारक हो सकता है, या नहीं। भारतीय कानून में कहा गया है, कि मानहानि किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ भी की जा सकती है, यदि इस तरह के स्टेटमेंट में उसके परिवार या उसके मान को ठेस पहुंचाने की बात कही गयी हो। कंपनियों या व्यक्तियों के किसी के संघ के खिलाफ दिए गए किसी स्टेटमेंट को भी मानहानिकारक ठहराया जा सकता है।
 


मानहानि के उपाय और दंड क्या हैं

मानहानि का केस दोनों सिविल कोर्ट के साथ-साथ आपराधिक अदालतों में भी दायर किया जा सकता है।

यदि यह एक नागरिक अपराध है, इसके लिए टॉर्ट लॉ की मदद से पीड़ित व्यक्ति उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय में दीवानी केस दायर कर सकता है, और मानहानि वाले स्टेटमेंट के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति (मौद्रिक दावा) का दावा भी कर सकता है।

लिबेल और स्लेंडर दोनों को भारतीय दंड संहिता (धारा 499 और 500) के तहत भारत में आपराधिक अपराध माना जाता है, और कोई भी आरोपी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर सकता है।

आपराधिक मामलों में, निर्धारित सजा में अधिकतम दो साल तक कारावास या जुर्माना या दोनों शामिल हैं। यह अपराध प्रकृति में जमानती, गैर-संज्ञेय और संयोजनीय होता है।
 


मानहानि साबित कौन करता है?

यदि वादी (पीड़ित व्यक्ति) ने मामला दायर किया है, तो यह साबित करने का दायित्व वादी पर ही है, कि उसके लिए कहा गया/ लिखा गया, स्टेटमेंट/ कोई कार्रवाही मानहानिकारक प्रकृति की है, या वादी के लिए कोई मानहानि वाली टिप्पणी की गयी है। यह साबित किया जाना चाहिए कि इस मामले को दर्ज करने वाले पीड़ित व्यक्ति के लिए स्टेटमेंट दिया गया है।
 


यदि आपके खिलाफ मानहानि का आरोप लगाया गया है तो आपके बचाव क्या हैं?

यदि आप पर मानहानि के मुकदमे में मानहानि का आरोप लगाया गया है, तो कुछ ऐसे बचाव हैं, जो आप न्यायाधीश के सामने कर सकते हैं-

सत्य द्वारा तर्क देना- मानहानि के लिए आवश्यक है, कि किसी व्यक्ति द्वारा गलत बयान दिया जाए। किसी के द्वारा दिया गया एक बयान जो सत्य है, मानहानि की श्रेणी में नहीं आता है। यदि एक स्टेटमेंट सत्य को इंगित करता है, तो वह मानहानिकारक नहीं हो सकता है।

निष्पक्ष टिप्पणी- एक निष्पक्ष और प्रामाणिक टिप्पणी आपराधिक मानहानि के खिलाफ एक बचाव है। निष्पक्ष टिप्पणी वह टिप्पणी है, जो बिना किसी दुर्भावनापूर्ण इरादे के साथ की जाती है, और यह जनता के हित के लिए अच्छे विश्वास में बनाई जाती है। उपयोग किए जाने वाले इस बचाव के लिए, आपके स्टेटमेंट को आपकी राय के रूप में माना जाना चाहिए, न कि तथ्यों को दावा करने वाले स्टेटमेंट के रूप में।

विशेषाधिकार- विशेषाधिकार कुछ सदस्यों को बिना किसी प्रतिबंध के स्वतंत्र रूप से बात करने के लिए प्रदान किया जाता है। इन विशेषाधिकारों को कुछ परिस्थितियों में ही प्रदान किया जाता है, जहां स्वतंत्र रूप से राय की आवश्यकता होती है।

वे दो प्रकार के होते हैं-

निरपेक्ष विशेषाधिकार- इस विशेषाधिकार में कोई भी दुर्भावनापूर्ण या गलत स्टेटमेंट के लिए कोई कार्रवाही नहीं होती है। इसे न्यायालयी कार्यवाही, संसदीय कार्यवाही और राज्य संचार में लागू किया जाता है।

अर्हताप्राप्त विशेषाधिकार- यह विशेषाधिकार कुछ मामलों में दिया जाता है, जहां व्यक्ति के पास टिप्पणी करने के लिए कानूनी या नैतिक कर्तव्य होता है, जिसे मानहानि माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, एन. सी. एल. टी. और सरकारी निकायों जैसे नियामक संस्थाओं की कार्यवाही में दिए गए स्टेटमेंट या प्रेस कॉन्फ्रेंस के सदस्यों द्वारा की गई आलोचना आदि। हालांकि, ऐसे स्टेटमेंट, बिना किसी दुर्भावनापूर्ण इरादे से होने चाहिए।
 


आपको ऐसे मामलों में वकील की आवश्यकता क्यों है?

यदि आप पर मानहानि कानून के तहत आरोप लगाए गए हैं, तो उसके लिए किसी वकील से संपर्क करना उचित है। भारत में मानहानि को भी एक अपराध माना जाता है, अगर ऐसे मामलों में अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाता है, तो व्यक्ति को जेल का सामना भी करना पड़ सकता है। एक वकील अदालत में आपका प्रतिनिधित्व कर सकता है, और ऐसे किसी भी आरोप के लिए बचाव प्रदान कर सकता है। यदि आपकी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानहानि होती है, तो आप एक वकील से संपर्क कर सकते हैं, जो आपकी ओर से मानहानि का दावा दायर करेगा और अदालत में आपका प्रतिनिधित्व करेगा।





ये गाइड कानूनी सलाह नहीं हैं, न ही एक वकील के लिए एक विकल्प
ये लेख सामान्य गाइड के रूप में स्वतंत्र रूप से प्रदान किए जाते हैं। हालांकि हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि ये मार्गदर्शिका उपयोगी हैं, हम कोई गारंटी नहीं देते हैं कि वे आपकी स्थिति के लिए सटीक या उपयुक्त हैं, या उनके उपयोग के कारण होने वाले किसी नुकसान के लिए कोई ज़िम्मेदारी लेते हैं। पहले अनुभवी कानूनी सलाह के बिना यहां प्रदान की गई जानकारी पर भरोसा न करें। यदि संदेह है, तो कृपया हमेशा एक वकील से परामर्श लें।

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