भारतीय संविधान अनुच्छेद 20 (Article 20 in Hindi) - अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण


विवरण

भारतीय संविधान के अंदर बहुत सारे ऐसे नियम व कानून (Laws) बनाए गए है जो देश के प्रत्येक नागरिक के अधिकारों (Rights) की रक्षा करते है। इसी तरह कुछ कानून ऐसे भी बनाए गए है, जो किसी अपराध के आरोपी व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए लागू किए जा सकते है। आज के इस लेख में हम आपको भारतीय संविधान के एक बहुत ही जरुरी आर्टिकल के बारे में आपको बताएंगे, कि अनुच्छेद 20 क्या है?(Article 20 in Hindi), अनुच्छेद 20 के मुख्य प्रावधान, अधिकार और महत्व क्या है? 

आप सभी जानते होंगे कि कानून हमेशा देश की जनता को किसी भी प्रकार के अपराध से बचाने के लिए लागू किए जाते है। लेकिन कुछ ऐसे कानून भी है जिनको किसी अपराध के आरोपी व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। जी हाँ, इसी विषय पर आज हम आपको विस्तार से बताने वाले है कि कैसे आरोपी (Accused) व्यक्ति भी अपनी सुरक्षा के लिए बनाए गए अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते है।

अनुच्छेद (आर्टिकल) 20 क्या है– Article 20 in Hindi

अनुच्छेद 20 भारतीय संविधान (Indian Constitution) के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों में से एक है। यह उन व्यक्तियों के लिए एक ढाल (Shield) के रूप में कार्य करता है जिन पर अपराध करने का आरोप (Blame) है। इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनके साथ किसी के भी द्वारा मनमाना और अन्यायपूर्ण (Unfair) व्यवहार ना किया जा सके। Article 20 मुख्य रूप से सरकार को अपनी शक्ति का लाभ उठाने और जांच व परीक्षण प्रक्रिया के दौरान अभियुक्तों (Accused) के अधिकारों का उल्लंघन करने से रोकने से संबंधित है।
 

अनुच्छेद 20 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

अनुच्छेद 20 में तीन अलग-अलग प्रावधान (Provision) शामिल हैं जो अभियुक्तों की सुरक्षा के लिए काम करते हैं:-

  • अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण:- (अनुच्छेद 20(1)): यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो उस समय लागू नहीं थे। दूसरे शब्दों में कहे तो यह पूर्वव्यापी कानूनों (Retro Active law) पर रोक लगाता है। जिसका अर्थ है कि व्यक्तियों पर उन कार्यों के लिए आरोप नहीं लगाया जा सकता है और उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता है जिन्हें उनके द्वारा किए जाने के समय अपराध नहीं माना जाता था।

  • दोहरे दंड से सुरक्षा:- अनुच्छेद 20(2) किसी व्यक्ति पर एक ही Crime के लिए एक से अधिक बार मुकदमा (Case) चलाने और दंडित (Punished) करने पर रोक लगाता है। यदि एक बार किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाया गया और उसे किसी विशेष अपराध के लिए बरी किया गया है या दोषी (Guilty) ठहराया गया है। तो उसी तथ्य के आधार पर उसी अपराध के लिए उस पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

  • आत्म-अपराध के विरुद्ध सुरक्षा:- अनुच्छेद 20(3) आत्म-दोषारोपण (Self Blame) के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाह (Witness) बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इसे आमतौर पर "चुप रहने का अधिकार" (Right to Remain Silent) के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी आरोपी व्यक्ति को खुद के खिलाफ सबूत (Evidence) देने या अपना अपराध कबूल करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।


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आर्टिकल 20 का दूसरा प्रावधान "दोहरे दंड़ से सुरक्षा" क्या है?

Article 20 के अनुसार यह एक मौलिक सिद्धांत है जो व्यक्तियों को एक ही Crime के लिए एक से अधिक बार मुकदमा चलाने और दंडित करने से रोकती है। यह सिद्धांत आरोपी व्यक्तियों के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा करता है:-

  • यह सरकार को किसी आरोपी व्यक्ति के साथ उत्पीड़न (Harassment) करने,या सबूतों में हेराफेरी के माध्यम से सजा दिलाने के उद्देश्य से बार-बार मुकदमा चलाने से रोकता है।

  • यह इस सिद्धांत को कायम रखता है कि न्यायिक निर्णय (Judicial Decision) ही अंतिम होता है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए।

  • यह अन्यायपूर्ण और अत्यधिक सज़ा को रोककर किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है। इस सुरक्षा के बिना, व्यक्तियों को एक ही Crime के लिए कई सज़ाएं दी जा सकती हैं, जिससे मानवाधिकारों (Human Rights) का उल्लंघन हो सकता है।

 

Article 20 व्यक्तियों को आत्म-दोषारोपण से कैसे बचाता है?

इसमें बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति को खुद के खिलाफ सबूत देने या कोई गवाही देने के लिए मजबूर नही किया जा सकता।

  • यह आपराधिक मुकदमे (Criminal Cases) के दौरान किसी व्यक्ति के चुप रहने के अधिकार को मान्यता देता है और लागू करता है। इसका मतलब यह है कि आरोपी के पास उन सवालों का जवाब न देने या सबूत न देने का विकल्प है जो उन्हें अपराध करने में फंसा सकते हैं।

  • यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी द्वारा दिए गए बयान स्वैच्छिक (यानी खुद की इच्छा से दिए गए) हैं और किसी भी प्रकार के दबाव का परिणाम नहीं हैं।

  • यह किसी भी प्रकार के अपमानजनक व्यवहार (Abusive Behaviour) को रोकता है जो व्यक्तियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध अपराध स्वीकार करने के लिए मजबूर कर सकता है।

  • जबरन या झूठी बयानबाजी को रोकने के लिए आत्म-दोषारोपण के खिलाफ सुरक्षा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस सुरक्षा के बिना व्यक्तियों को उन अपराधों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सकता है जो उन्होंने नहीं किए हैं, जिससे न्याय (Justice) में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

  • आत्म-दोषारोपण के विरुद्ध आरोपी व्यक्ति के अधिकार की रक्षा करना आपराधिक मुकदमों की निष्पक्षता (Fairness) में योगदान देता है।


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कुछ ऐसे मामले जहां भारत में अनुच्छेद 20 लागू किया गया है?

लाल सिंह बनाम गुजरात राज्य (2013):- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी आरोपी को उसकी सहमति के बिना नार्को-विश्लेषण परीक्षण (Narco-analysis Test) से गुजरने के लिए मजबूर करना अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोषारोपण के खिलाफ उनके अधिकार का उल्लंघन है।

नंदिनी सत्पथी बनाम पी.एल. दानी (1978):- इस मामले में हस्ताक्षर (Signature) और लिखावट (Handwriting) के लिए अंगूठे का निशान देने से इनकार करने के एक व्यक्ति के अधिकार पर विवाद शामिल था। अदालत ने फैसला सुनाया कि किसी आरोपी को अंगूठे के निशान या हस्ताक्षर देने के लिए मजबूर करना प्रशंसात्मक प्रकृति (Testimonial Nature) का है और यह आत्म-दोषारोपण (Self Blame) के बराबर है।
 

कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)


प्रश्न:- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 क्या है?

उत्तर:- Article 20 भारतीय संविधान में निहित एक ऐसा अधिकार है जो अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है।


प्रश्न:- अनुच्छेद 20 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

उत्तर:- Article 20 में तीन मुख्य प्रावधान हैं:-
1. कार्योत्त कानूनों के विरुद्ध संरक्षण।
2. दोहरे दंड से सुरक्षा।
3. आत्म-दोषारोपण से सुरक्षा।


 प्रश्न:- अनुच्छेद 20 में "पूर्वव्यापी कानून" का क्या अर्थ है?

उत्तर - "पूर्वव्यापी कानून" का अर्थ होता है कोई ऐसा कार्य या गतिविधि जो पहले दंडनीय नही थी। जिसे आरोपी के पहले ही कर दिया था, लेकिन उसके कुछ समय बाद वो कार्य दण्ड़नीय कानून बना दिया गया।

प्रश्न:- क्या किसी व्यक्ति पर ऐसे कार्य के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है जो किए जाने के समय अपराध नहीं था?
उत्तर:- नहीं, किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य के लिए दंडित नहीं किया जा सकता जो उसके किए जाने के समय कानून के तहत अपराध नहीं था।

प्रश्न:-अनुच्छेद 20 के तहत "दोहरे दंड" का क्या मतलब है?
उत्तर:- दोहरे दंड का अर्थ है एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा चलाया जाना और दंडित किया जाना। अनुच्छेद 20(2) किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार मुकदमा चलाने और दंडित करने पर रोक लगाता है।

प्रश्न:- अनुच्छेद 20(3) आत्म-दोषारोपण के बारे में क्या कहता है?
उत्तर:- Article 20(3) व्यक्तियों को अपने विरुद्ध गवाह बनने के लिए बाध्य होने से बचाता है। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को ऐसे सबूत देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जो उन्हें किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहरा सके।

प्रश्न:- क्या कोई व्यक्ति स्वेच्छा से आत्म-दोषी साक्ष्य प्रदान करना चुन सकता है?
उत्तर:- हां, कोई व्यक्ति स्वेच्छा से आत्म-दोषी साक्ष्य प्रदान करना चुन सकता है। अनुच्छेद 20(3) केवल जबरन आत्म-दोषारोपण से बचाता है।

प्रश्न:- अनुच्छेद 20 आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा कैसे करता है?
उत्तर:- अनुच्छेद 20 यह सुनिश्चित करता है कि अपराधों के आरोपी व्यक्तियों को पूर्वव्यापी कानूनों, दोहरे दंड और आत्म-दोषारोपण से बचाया जाए, जो न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के आवश्यक सिद्धांत हैं।


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भारतीय संविधान पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


1. संविधान क्या है?

संविधान देश का सर्वोच्च विधी है। यह सरकार/राज्य/संस्थानों के मौलिक संहिता, संरचनाओं, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों का सीमांकन करने वाले ढांचे का विवरण देता है। इसमें मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत और नागरिकों के कर्तव्य भी शामिल हैं।


2. संविधान कब प्रभाव मे आया ?

भारत के संविधान को 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और यह 26 जनवरी, 1950 को प्रभाव मे आया था।


3. क्या संविधान मानव अधिकारों के दुरुपयोग को रोक सकता है?

यह नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका का संवैधानिक जनादेश है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पास मौलिक और अन्य अधिकारों को लागू करने के लिए कार्रवाई करने की शक्ति है। यह निवारण तंत्र अनुच्छेद 32 और 226 के तहत प्रदान किया गया है।


4. धर्मनिरपेक्षता क्या है?

संविधान के 42वें संशोधन ने प्रस्तावना में यह अभिकथन किया है की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है सभी धर्मों को समान सम्मान देना और सभी धर्मों की समान तरीके से रक्षा करना।


5. प्रस्तावना क्या है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसमें कहा गया है कि भारत के लोग अपने नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुरक्षित करने का संकल्प लेते हैं।


6. क्या संविधान में संशोधन किया जा सकता है?

हां, भारत के संविधान में संशोधन किया जा सकता है। इसे या तो संसद के साधारण बहुमत से, या संसद के विशिष्ट बहुमत से, या संसद के विशिष्ट बहुमत से और आधे राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन द्वारा संशोधित किया जा सकता है।


7. क्या भारतीय संविधान किसी अन्य देश के संविधान के समान है?

भारत के संविधान में विभिन्न राष्ट्रों के संविधानों से कई विशेषताएं अपनायी हैं और आज हमारे पास भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला गया है। अन्य देशों के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड के संविधानों से विशेषताओं को उधार लिया गया है।



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