भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 (Article 19 in Hindi) - वाक्‌-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण


विवरण

(1) सभी नागरिकों को--
(क) वाक्‌-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ बनाने का,
(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, [और]

(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।
[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता], राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी ।]
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता] याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता] याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(5) उक्त खंड के [उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया [उक्त उपखंड की कोई बात--
(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
जहाँ तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।]

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संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।

संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप किया गया।

संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।

संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) ''उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।

संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा कुछ शद्बों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
 

विवरण

स्वतंत्रता एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें लोगों को बाहरी प्रतिबंधों के बिना बोलने, करने और अपने सुख को प्राप्त करने का अवसर मिलता है, और कई लोगों को स्वतन्त्र होकर जीवन यापन करने में अच्छा लगता है, वे लोग किसी अन्य व्यक्ति से ज्यादा बोलना और न ही किसी से ज्यादा मतलब रखना पसंद करते हैं। स्वतंत्रता हमारे लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उससे हमें अपने नए विचार, रचनात्मक कला, उत्पादन और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का मौका मिलता है, इसके साथ ही स्वतन्त्र होकर रहने से कोई भी व्यक्ति खुद को अधिक समय दे सकता है, और अपने बारे में विचार कर सकता है, जो कि एक व्यक्ति के जीवन के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

हमारी स्वतंत्रता हमें अत्यंत प्रिय होती है। अगर सही मायने में देखा जाये तो यह आज़ादी की लड़ाई के फलस्वरूप ही हमें प्राप्त हुई है, क्योंकि अंग्रेजों से हमारा वैर केवल इसी लिए था, कि उन्होंने हमारी आज़ादी को हमसे अलग करके रखा था, और हम इस तरह से बंधे हुए थे कि हमें अपनी ही संपत्ति का प्रयोग करने से पहले अंग्रेजों से अनुमति लेनी पड़ती थी, और वे लोग भी आसानी से अनुमति भी नहीं दिया करते थे। अनेक भारतीयों ने अपना सुख एवं जीवन त्याग कर हमें यह आज़ादी भेंट दी है। स्वतन्त्र भारत में हम अपने देश और अपने घर परिवार के साथ - साथ खुद की प्रगति के लिए कार्य कर सकते हैं, जो अंग्रेजों के अधीन रहकर करना संभव नहीं था।

स्वतंत्र होने के कारण हम लोग अपने नए संविधान को गठित कर सके। इसी के कारण हम नागरिकों के अधिकार प्राप्त करने में सफल हुए हैं। समाज में सुधार और सबके लिए सुविधाएं उपलब्ध हो पाई है, और देश में नयी ऊर्जा विकसित हो पायी है, जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति का प्रयोग अपने मन से कर सकता है, अब उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। प्रजातंत्र में लोग देश के शासन के लिए सही व्यक्तियों का चुनाव कर सकते हैं, और अपने कार्य सिद्ध करवा सकते हैं। इसलिए स्वतंत्रता का हमारे और हमारे देश के लिए बहुत महत्व है।
 

स्वतंत्रता का अधिकार क्यों महत्वपूर्ण है?

स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक बुनियादी मानव अधिकार है। उपनिवेशवाद के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय संघर्ष विदेशी साम्राज्यवादी शासन से मुक्त होने की लड़ाई थी, और सम्मान के साथ जीवन जीने की स्वतंत्रता के लिए, यह निर्धारित करने के लिए कि कानून के अनुसार कैसे-कैसे रहें, किसी भी व्यवसाय या व्यापार को स्वीकार करें, स्वतंत्र रूप से बोलें और व्यक्त करें , देश के किसी भी हिस्से में घूमें और निवास करें, और अंततः सुरक्षा के साथ सार्थक जीवन जीने में सक्षम हों।
 

संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान

भारतीय संविधान का उद्देश्य विचार - अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वाधीनता सुनिश्चित करना है। इसलिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। जिसमें देश के सभी वर्ग के लोगों को ध्यान में रखते हुए प्रावधान दिए गए हैं, जिससे कोई भी व्यक्ति अपने मन से कोई भी कार्य कर सके, किन्तु वह कार्य गैर क़ानूनी और असंवैधानिक नहीं होना चाहिए और न ही उस कार्य से किसी अन्य व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होना चाहिए।

इस सम्बन्ध में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 सबसे अधिक जरुरी है। मूल संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को 7 स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई थीं, और इनमें से छठी स्वतंत्रता “सम्पत्ति की स्वतंत्रता” थी, जिसे भारतीय संविधान के 44 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा संपत्ति के मौलिक अधिकार के साथ - साथ “संपत्ति की स्वतंत्रता” भी समाप्त कर दी गई है, किन्तु संपत्ति के अधिकार को अभी भी भारतीय संविधान से पूर्ण रूप से पृथक नहीं किया गया है, संपत्ति का अधिकार अभी भी एक संवैधानिक अधिकार है, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300 'अ' में वर्णित है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में आज के समय केवल देश के नागरिकों के लिए 6 स्वतंत्रताओं का वर्णन किया गया है, जो कि निम्न हैं

  1. विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  2. अस्त्र - शस्त्र रहित और शांतिपूर्ण सम्मलेन की स्वतंत्रता

  3. समुदाय और संघ निर्माण की स्वतंत्रता

  4. भ्रमण की स्वतंत्रता

  5. निवास की स्वतंत्रता

  6. व्यवसाय की स्वतंत्रता
     

विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

भारत के सभी नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुसार किसी बात का विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता प्राप्त है। प्रेस भी विचारों के प्रचार का एक साधन होने के कारण इसी में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है। नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की यह स्वतंत्रता असीमित रूप से प्राप्त नहीं है, बल्कि इसका भी अधिकार क्षेत्र सीमित है, कोई व्यक्ति केवल तब तक ही स्वतन्त्र है, जब तक उसके क्रियाकलाप से किसी अन्य व्यक्ति के मौलिक अधिकारों या उसकी स्वतंत्रता का हनन नहीं हो रहा है।
 

अस्त्र - शस्त्र रहित और शांतिपूर्ण सम्मलेन की स्वतंत्रता

व्यक्तियों के द्वारा अपने विचारों के प्रचार के लिए शांतिपूर्वक और बिना किन्हीं शस्त्रों के सभा या सम्मलेन का आयोजन भी किया जा सकता है, और उनके द्वारा जुलूस या प्रदर्शन का आयोजन भी किया जा सकता है। यह स्वतंत्रता भी असीमित नहीं है, और राज्य के द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में किसी व्यक्ति की इस स्वतंत्रता को सीमित भी किया जा सकता है।
 

समुदाय और संघ निर्माण की स्वतंत्रता

संविधान के द्वारा सभी नागरिकों को समुदायों और संघों के निर्माण की स्वतंत्रता भी प्रदान की गई है, परन्तु यह स्वतंत्रता भी उन प्रतिबंधों के अधीन है, जिन्हें राज्य साधारण जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए लगाता है, इस स्वतंत्रता की आड़ में व्यक्ति ऐसे समुदायों का निर्माण नहीं कर सकता जो षड्यंत्र करें अथवा सार्वजनिक शान्ति और व्यवस्था को भंग करें, या ऐसा करने का प्रयास करे।
 

भ्रमण की स्वतंत्रता

भारत के सभी नागरिक बिना किसी प्रतिबंध या विशेष अधिकार - पत्र के सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र में घूम सकते हैं, यह अधिकार भारत के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है, कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार को छीन नहीं सकता है, यदि कोई व्यक्ति या संस्था ऐसा करता है, तो पीड़ित व्यक्ति बिना किसी रूकावट के सीधे अपनी बात रखने और अपना मौलिक अधिकार प्राप्त करने के लिए देश के माननीय सर्वोच्छ न्यायालय में अपील कर सकता है, जहां से उस व्यक्ति को इंसाफ प्रदान कराया जायेगा।
 

निवास की स्वतंत्रता

भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत में कहीं भी रहने या बस जाने की स्वतंत्रता है। भ्रमण और निवास के सम्बन्ध में यह व्यवस्था संविधान द्वारा अपनाई गई इकहरी नागरिकता के अनुरूप है। भ्रमण और निवास की इस स्वतंत्रता पर भी राज्य सामान्य जनता के हित और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हितों में उचित प्रतिबंध लगा सकता है। जैसा कि 5 अगस्त 2019 से पहले तक भारत के किसी अन्य राज्य में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जम्मू और कश्मीर में अपनी जमीन नहीं खरीद सकता था, किन्तु भारत की संसद में एक नया कानून पारित करके 5 अगस्त 2019 को इस प्रावधान को हटा दिया था, अब कोई भी व्यक्ति जम्मू और कश्मीर में भी अपनी खुद की संपत्ति का आनंद उठा सकता है।
 

व्यवसाय की स्वतंत्रता

भारत में सभी नागरिकों को इस बात की स्वतंत्रता है, कि वे अपनी आजीविका के लिए कोई भी पेशा, व्यापार या कारोबार कर सकते हैं, किन्तु वह कार्य गैरकानूनी या असंवैधानिक नहीं होना चाहिए, अन्यथा आपको भारत के कानून के अनुसार उचित दंड दिया जा सकता है। राज्य साधारणतया किसी व्यक्ति को न तो कोई विशेष नौकरी, व्यापार या व्यवसाय करने के लिए बाध्य करेगा और न ही उसके इस प्रकार के कार्य में बाधा डालेगा। किन्तु इस सबंध में भी राज्य को यह अधिकार प्राप्त है, कि वह कुछ व्यवसायों के सम्बन्ध में आवश्यक योग्यताएं निर्धारित कर सकता है, जिससे कि किसी विशेष कार्य को करने के लिए उस क्षेत्र में जानकार और अनुभवी लोग ही चुने जाएँ, तो वह कार्य भी सरलता से किया जा सकेगा, अथवा सरकार किसी कारोबार या उद्योग को पूर्ण अथवा आंशिक रूप से भी अपने हाथ में ले सकता है।
 

अनुच्छेद 20

अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में नागरिकों के संरक्षण से संबंधित है। यह राज्य के खिलाफ व्यक्ति की तीन प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है।

  1. पूर्वव्यापी आपराधिक कानून: इसे कार्योत्तर आपराधिक कानून के रूप में भी जाना जाता है। इसके तहत, किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है जो उस समय किया गया था जब अधिनियम को कानून द्वारा अपराध घोषित नहीं किया गया था।

  1. इसका मतलब है कि आपराधिक कानून को पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं दिया जा सकता है।

  2. इस प्रतिरक्षा का उपयोग निवारक निरोध के प्रावधान के खिलाफ नहीं किया जा सकता है, और यह परीक्षण को भी कवर नहीं करता है।

  3. कानून यह भी प्रावधान करता है कि किसी व्यक्ति को किए गए अपराध के लिए कानून द्वारा निर्धारित सजा से अधिक सजा के अधीन नहीं किया जा सकता है।

  1. दोहरा खतरा: यह इंगित करता है कि एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

  2. आत्म-अपराध के विरुद्ध निषेध: इसका तात्पर्य यह है कि किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को राज्य द्वारा गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
     

अनुच्छेद 21

अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। इस लेख का व्यापक दायरा है और दशकों में इसकी व्याख्या में कई बदलाव हुए हैं।

  1. सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को सम्मानजनक जीवन के अधिकार के रूप में व्याख्यायित किया है।

  2. यह एक मायने में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है, क्योंकि जीवन के इस अधिकार के बिना, अन्य सभी मौलिक अधिकार निरर्थक होंगे।

  3. यह वह लेख है जो एक पुलिस राज्य और एक संवैधानिक राज्य के बीच अंतर करता है।
     

अनुच्छेद 21 (ए)

यह लेख 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा पेश किया गया था। यह प्रावधान करता है कि राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
 

अनुच्छेद 22

अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नजरबंदी के खिलाफ संरक्षण से संबंधित है।

  1. यह लेख नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों पर लागू होता है।

  2. यह प्रावधान गिरफ्तारी के मामले मे व्यक्तियों के लिए कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का विस्तार करता है।

  3. यह एक व्यक्ति के गिरफ्तार होने के बाद सामने आता है। यह नजरबंदी और गिरफ्तारी के खिलाफ मौलिक अधिकार नहीं है।

  4. इस अधिकार के पीछे मनमाना गिरफ्तारी और हिरासत को रोकना है।

यह अनुच्छेद निम्नलिखित सुरक्षा उपाय प्रदान करता है:

  1. अनुच्छेद 22(1) - कोई भी व्यक्ति जो हिरासत में है, उसे सूचित किया जाना चाहिए कि उसे क्यों गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा, उसे एक वकील से परामर्श करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

  2. अनुच्छेद 22(2) - गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।

  3. अनुच्छेद 22(3) - गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित अवधि से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।

हालांकि, ये सुरक्षा उपाय इन पर लागू नहीं हैं

  1. शत्रु एलियंस

  2. निवारक निरोध कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए लोग
     

निवारक निरोध क्या है?

हिरासत के दो प्रकार हैं:
1. दंडात्मक
2. निवारक

जहां दंडात्मक निरोध एक परीक्षण के बाद निरोध है वहीं निवारक निरोध परीक्षण के बिना निरोध है। इसके पीछे का विचार किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकना है। इसका मतलब है कि संदेह के आधार पर व्यक्तियों को हिरासत में लिया जा सकता है। इस तरह से गिरफ्तार किए गए लोगों के अधिकार निवारक निरोध कानूनों द्वारा शासित होते हैं।
 

स्वतंत्रता के अधिकार को सुचारु रूप से कायम रखने के उपाय

न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका: उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए करना चाहिए।

देशद्रोह कानून को कम करना: राजद्रोह की परिभाषा को संकुचित किया जाना चाहिए, जिसमें केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए।

मीडिया नैतिकता का पालन: मीडिया की जिम्मेदारी के संबंध में, यह महत्वपूर्ण है कि मीडिया सच्चाई और सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता और निष्पक्षता, जिम्मेदारी और निष्पक्षता जैसे मूल सिद्धांतों पर टिके रहे।

संस्थागत ढांचे को मजबूत करना: सरकार के बजाय, समाचार नियामक निकाय (भारतीय प्रेस परिषद) को मीडिया के कृत्यों पर अधिक नजर रखनी चाहिए।

व्यक्तिगत अधिकारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति और समाज और राज्य की सामूहिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, यह जिम्मेदारी अकेले सरकार को नहीं, बल्कि उन सभी को लेनी चाहिए जो इन अधिकारों का आनंद लेते हैं। स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने दिए गए अधिकारों का गलत इस्तेमाल न करते हुए राष्ट्र की स्वाधीनता को बनाए रखने मे सहायता प्रदान करें एवं एक बेहतर राष्ट्र के निर्माण में संविधान के नियमों का पालन करते हुए नव भारत का निर्माण करें। 


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भारतीय संविधान पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


1. संविधान क्या है?

संविधान देश का सर्वोच्च विधी है। यह सरकार/राज्य/संस्थानों के मौलिक संहिता, संरचनाओं, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों का सीमांकन करने वाले ढांचे का विवरण देता है। इसमें मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत और नागरिकों के कर्तव्य भी शामिल हैं।


2. संविधान कब प्रभाव मे आया ?

भारत के संविधान को 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और यह 26 जनवरी, 1950 को प्रभाव मे आया था।


3. क्या संविधान मानव अधिकारों के दुरुपयोग को रोक सकता है?

यह नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका का संवैधानिक जनादेश है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पास मौलिक और अन्य अधिकारों को लागू करने के लिए कार्रवाई करने की शक्ति है। यह निवारण तंत्र अनुच्छेद 32 और 226 के तहत प्रदान किया गया है।


4. धर्मनिरपेक्षता क्या है?

संविधान के 42वें संशोधन ने प्रस्तावना में यह अभिकथन किया है की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है सभी धर्मों को समान सम्मान देना और सभी धर्मों की समान तरीके से रक्षा करना।


5. प्रस्तावना क्या है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसमें कहा गया है कि भारत के लोग अपने नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुरक्षित करने का संकल्प लेते हैं।


6. क्या संविधान में संशोधन किया जा सकता है?

हां, भारत के संविधान में संशोधन किया जा सकता है। इसे या तो संसद के साधारण बहुमत से, या संसद के विशिष्ट बहुमत से, या संसद के विशिष्ट बहुमत से और आधे राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन द्वारा संशोधित किया जा सकता है।


7. क्या भारतीय संविधान किसी अन्य देश के संविधान के समान है?

भारत के संविधान में विभिन्न राष्ट्रों के संविधानों से कई विशेषताएं अपनायी हैं और आज हमारे पास भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला गया है। अन्य देशों के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड के संविधानों से विशेषताओं को उधार लिया गया है।



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