धारा 16 हिन्दू विवाह अधिनियम - शून्य और शून्यकरणीय विवाहों के अपत्यों की धर्मजता

October 11,2018


विवरण

(1) इस बात के होते हुए भी कि विवाह धारा 11 के अधीन अकृत और शून्य है, ऐसे विवाह का कोई अपत्य, जो विवाह के विधिमान्य होने की दशा में धर्मज होता, धर्मज होगा, चाहे ऐसे अपत्य का जन्म विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम, 1976 के प्रारम्भ से पूर्व हुआ हो या पश्चात् और चाहे उस विवाह के सम्बन्ध में अकृतता की डिक्री इस अधिनियम के अधीन मन्जूर की गई हो या नहीं और चाहे वह विवाह इस अधिनियम के अधीन अर्जी से भिन्न आधार पर शून्य अभिनिर्धारित किया गया हो या नहीं।

(2) जहाँ धारा 12 के अधीन शून्यकरणीय विवाह के सम्बन्ध में अकृतता की डिक्री मन्जूर की जाती है, वहाँ डिक्री की जाने से पूर्व जनित या गर्भाहित ऐसा कोई अपत्य, जो यदि विवाह डिक्री की तारीख को अकृत किये जाने के बजाय विघटित किया गया होता तो विवाह के पक्षकारों का धर्मज अपत्य होता, अकृतता की डिक्री होते हुए भी उनका धर्मज अपत्य समझा जायेगा।

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जायेगा कि वह ऐसे विवाह के किसी अपत्य को, जो अकृत और शून्य है या जिसे धारा 12 के अधीन अकृतता की डिक्री द्वारा अकृत किया गया है, उसके माता-पिता से भिन्न किसी व्यक्ति की सम्पत्ति में या सम्पति के प्रति कोई अधिकार किसी ऐसी दशा में प्रदान करती है जिसमें कि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो वह अपत्य अपने माता-पिता का धर्मज अपत्य न होने के कारण ऐसा कोई अधिकार रखने या अजित करने में असमर्थ होता।


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