महर क्या होता है? निकाह में पत्नी को हक मेहर का महत्व, शर्ते और अधिकार



मुस्लिम निकाह में "महर" एक जरूरी शर्त होती है जिसे आम भाषा में हक मेहर या डोवर (Dower) भी कहा जाता है। निकाह के वक्त पति अपनी पत्नी को जो पैसा, ज़मीन, गहना या कोई भी चीज़ देने का वादा करता है, उसे ही मेहर कहते हैं। यह रकम पत्नी का हक (legal right) होता है और इसे देना हर मुसलमान पति पर फर्ज़ है। आज हम इस आर्टिकल  "महर" के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जैसे की मेहर क्या होता है, हक मेहर की रकम कितनी होती है, सुन्नी और शिया मुस्लिमों मे महर का महत्व, महर का भुगतान ना करने पर पत्नी के अधिकार आदि।


विषयसूची

  1. महर क्या होता है (What is Mahr in Islamic Mariage)
  2. मेहर का उद्देश्य (Object of Mehar)
  3. महर के प्रकार (Types of Dower)
  4. महर का वर्गीकरण (Classification of Dower)
  5. हक मेहर की पुष्टि कब हो जाती है (When Dower becomes Confirmed)
  6. सुन्नी मुस्लिमों मे महर की पुष्टि कब हो जाती है
  7. शिया मुस्लिमों मे महर की पुष्टि कब हो जाती है
  8. मुस्लिम पत्नी कब मेहर का दावा कर सकती है (When Muslim Wife Can Claim Dower)
  9. मेहर का दावा करने की सीमा अवधि
  10. मेहर का भुगतान न किए जाने पर विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकार
  11. पत्नी द्वारा महर माफ करना (Remission of Dower By Wife)
  12. हक मेहर माफ करने के लिए आवश्यक शर्तें
  13. अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


महर क्या होता है (What is Mahr in Islamic Mariage)

मेहर (Mehr), जिसे हक मेहर या डोवर (Dower) भी कहा जाता है, मुस्लिम शादी (Nikah) का एक जरूरी हिस्सा है। जब दो लोग मुस्लिम रीति से निकाह करते हैं, तो पति की तरफ से पत्नी को कुछ रकम, संपत्ति या कुछ और देने का वादा किया जाता है - इसी को मेहर कहते हैं। यह महिला का वैध अधिकार (legal right) होता है, और बिना मेहर तय किए निकाह पूरा नहीं माना जाता। एच.एम. मोंडल बनाम डी.आर. बीबी के मामले में न्यायालय ने मुस्लिम विवाह को एक कॉन्ट्रैक्ट (Contract) बताया जिसमें प्रतिफल (Consideration) के रूप में मेहर दी जाती है।



मेहर का उद्देश्य (Object of Mehar)

  • पत्नी के प्रति सम्मान के प्रतीक के रूप में पति पर दायित्व लागू करना (अब्दुल कादिर बनाम सलीमा 1886)।
  • पति के दुर्व्यवहार से बचाना है।
  • पति के तलाक देने के मनमाने अधिकार पर रोक लगाना चूंकि तलाक के बाद महर का तुरंत भुगतान करना होता है।
  • तलाक के बाद भरण-पोषण में सहायता।
  • मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना।


महर के प्रकार (Types of Dower)

1. निर्दिष्ट महर (Specified Dower): जब विवाह के समय महर की राशि तय कर दी जाती है तो उसे निर्दिष्ट महर के रूप में जाना जाता है।

मोहम्मद शहाबुद्दीन बनाम उम्मेदर रसूल ए.पी. 511: पति अपनी पत्नी को मेहर के रूप में कोई भी राशि दे सकता है, भले ही वह उसकी सामर्थ्य से परे हो और राशि चुकाने के बाद उसके उत्तराधिकारियों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा जा सकता है, लेकिन वह किसी भी स्थिति में दस दिरहम (10 दिरहम की रकम तीन से चार रुपये के बीच होती है) से कम राशि नहीं दे सकता है। शिया कानून के तहत महर के लिए कोई न्यूनतम राशि तय नहीं है।

2. “उचित” महर (Proper Dower) :  यदि निकाह के समय मेहर की राशि तय नहीं की गई हो तो पत्नी “उचित” मेहर (महर-ए-मिस्ल) पाने की हकदार है, भले ही विवाह इस स्पष्ट शर्त पर हुआ हो कि वह महर का दावा नहीं करेगी।
“उचित” मेहर निर्धारित करने के मानदंड निम्नलिखित है:

  • महिला के पिता की सामाजिक स्थिति।
  • पति की आर्थिक स्थिति।
  • मेहर की एक निश्चित राशि जो उसके पिता के परिवार की अन्य महिला सदस्यों को दी गई हो।
  • महिला की योग्यता।


महर का वर्गीकरण (Classification of Dower)

मेहर की राशि का वर्गीकरण आमतौर पर दो भागों में विभाजित किया गया है जो की निम्नलिखित है:

  1. तत्काल महर (Prompt Dower): तत्काल मेहर का भुगतान निकाह के तुरंत बाद मांग पर किया जाता है।
  2. विलम्बित महर (Deferred Dower): विलम्बित महर का भुगतान तलाक होने पर या पति की मृत्यु पर किया जाता है।
 

हक मेहर की पुष्टि कब हो जाती है (When Dower becomes Confirmed)

महर की पुष्टि कुछ निम्नलिखित घटनाओं के घटित होने पर हो जाती है:

  1. यौन संबंध बनाकर निकाह पूर्ण करने पर; या
  2. वैध सेवानिवृत्ति (खिलवत-ए-सहीहा) द्वारा; या
  3. पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु से।

जाने - मुस्लिम धर्म में तलाक के नियम और शर्ते



सुन्नी मुस्लिमों मे महर की पुष्टि कब हो जाती है

सुन्नी विधिवेत्ताओं (Sunni Jurist) के अनुसार पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कहा है कि जो व्यक्ति किसी स्त्री का पर्दा हटाकर उसे देखता है, उस पर पूरा महर बकाया हो जाता है, चाहे संभोग हुआ हो या नहीं।



शिया मुस्लिमों मे महर की पुष्टि कब हो जाती है

शिया कानून के अनुसार महर (Dower) का अधिकार यौन-संभोग या किसी भी पक्ष की मृत्यु से स्थापित होता है, लेकिन "वैध सेवानिवृत्ति" (खिलवत-ए-सहीहा) से नहीं।



मुस्लिम पत्नी कब मेहर का दावा कर सकती है (When Muslim Wife Can Claim Dower)

इस्लाम धर्म में पत्नी मेहर का दावा निम्नलिखित परिस्थितियों मे कर सकती है :

  1. धर्मत्याग के बाद भी वह अपने मेहर का दावा कर सकती है।
  2. तलाक, क्रूरता, व्यभिचार आदि जैसे वैवाहिक अपराधों के बाद वह इसका दावा कर सकती है।
  3. उचित महर (Proper Dower) के तहत, न्यायालय उसकी मेहर की राशि तय कर सकता है।
  4. यह पति के खिलाफ एक असुरक्षित ऋण है। अपने पति की मृत्यु के बाद भी वह अपने पति के कानूनी उत्तराधिकारियों से इसका दावा कर सकती है।
  5. यदि उसके पति द्वारा कोई मेहर नहीं चुकाया जाता है तो वह अपने पति की संपत्ति को तब तक जब्त कर सकती है जब तक उसका मेहर चुकाया नहीं जाता।

जाने - तलाक और पति की मौत के बाद इद्दत के नियम
 



मेहर का दावा करने की सीमा अवधि

यदि पत्नी को जीवित रहते हुए मेहर का भुगतान नहीं किया जाता है, तो उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी इसका दावा कर सकते हैं। परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुसार सीमा महर का दावा करने की सीमा अवधि:

  1. अगर पत्नी को महर की रकम अदा नहीं की जाती है, तो वह जब मेहर की मांग की जाती है या इनकार करने की तारीख से 3 महीने के भीतर इसका दावा कर सकती है।
  2. पति की मृत्यु हो जाने पर, वह मृत्यु की तारीख से 3 महीने के भीतर अपने पति के कानूनी उत्तराधिकारियों से इसका दावा करने की हकदार है।
  3. तलाक हो जाने की परिस्थिति में, वह तलाक की तारीख से 3 महीने के भीतर इसका दावा करने की हकदार है।


मेहर का भुगतान न किए जाने पर विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

मेहर का भुगतान न किए जाने पर विवाहित मुस्लिम महिलाओं को निम्नलिखित अधिकार है:

  1. साथ रहना से इनकार: अगर निकाह के बाद महर का भुगतान नहीं किया जाता है तो वह अपने पति के साथ रहने से इंकार कर सकती है, बशर्ते कि यौन-संभोग (Sexual-Intercourse) नही हुआ हो। अगर उनके बीच संभोग हो जाता है तो वह अपने पति के साथ रहने से इनकार नहीं कर सकती। लेकिन अगर वह फिर भी उसके साथ रहने से इनकार करती है तो वह उचित मेहर की हकदार नहीं है, बल्कि सशर्त हक़ महर की हकदार है।
  2. पति के विरुद्ध ऋण: मेहर पति के विरुद्ध असुरक्षित ऋण है। पति को अपनी पत्नी को मेहर का भुगतान करना होगा यदि पति की मृत्यु हो जाती है, तो भी वह अपने मृत पति के कानूनी उत्तराधिकारियों से इसका दावा करने की हकदार है।
  3. संपत्ति पर कब्ज़ा का अधिकार: अगर उसे महर का भुगतान नहीं किया जाता है तो वह महर के बदले में अपने पति की संपत्ति अपने पास रख सकती है। उसे सिर्फ़ संपत्ति पर कब्ज़ा पाने का अधिकार है, उस संपत्ति का स्वामित्व नहीं इसलिए वह अपने पति की संपत्ति को बेच नहीं सकती।


पत्नी द्वारा महर माफ करना (Remission of Dower By Wife)

पत्नी मेहर या उसके किसी भाग को पति या उसके उत्तराधिकारियों के पक्ष में माफ कर सकती है। महर माफ करना वैध है, भले ही वह बिना किसी प्रतिफल के किया गया हो (बैली 533)
 



हक मेहर माफ करने के लिए आवश्यक शर्तें

महर माफ करने के लिए आवश्यक शर्तें इस प्रकार हैं:

  1. पत्नी को वयस्क (18 वर्ष की आयु) होना चाहिए
  2. पत्नी दिमागी रूप से ठीक होनी चाहिए। 
  3. महर माफ करने के लिए बिना किसी अनुचित प्रभाव के स्वतंत्र सहमति आवश्यक है।
  4. निकाह के बाद ही मेहर माफ किया जा सकता है, चाहे यौन-संभोग (Sexual-Intercourse) हुआ हो या नहीं।
  5. महर बिना किसी प्रतिफल के भी माफ किया जा सकता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


मेहर (Haq Mehr) क्या होता है?

महर या हक मेहर वो रकम होती है जो निकाह (शादी) के वक्त पति अपनी पत्नी को देता है या देने का वादा करता है। ये इस्लाम में एक जरूरी शर्त है, यानी बिना मेहर तय किए निकाह पूरा नहीं होता।



क्या मेहर शादी के वक्त ही देना जरूरी है?

हक़ मेहर  शादी के वक्त या बाद में कभी भी दिया जा सकता है - पर इसे पत्नी को देना जरूरी होता है। बिना मेहर तय किए निकाह अधूरा माना जाता है।



अगर महिला खुद तलाक (खुला) चाहती है, तो क्या उसे मेहर वापस करना पड़ेगा?

खुला  के मामले में, अगर महिला बिना किसी गलती के तलाक चाहती है, तो कई बार उसे मेहर वापस करना पड़ सकता है। लेकिन अगर पति की गलती की वजह से तलाक हुआ है, तो मेहर वापस करने की जरूरत नहीं।



क्या पत्नी महर माफ़ कर सकती है?

हां, पत्नी अपनी मर्जी से मेहर माफ कर सकती है। लेकिन कोई भी उस पर दबाव नहीं बना सकता। यह उसका खुद का फैसला होना चाहिए।