स्टे ऑर्डर क्या है? Stay Order कैसे लेते है – रोक, फीस, कॉपी और नियम
आप सभी ने कभी ना कभी किसी ना किसी माध्यम से स्टे ऑर्डर के बारे में जरुर सुना होगा। यह अदालत द्वारा जारी किया जाने वाला एक बहुत ही जरुरी आदेश होता है, इसलिए आज हम आपको इसी विषय से जुड़ी हर जानकारी देंगे कि स्टे आर्डर क्या होता है? (Stay Order in Hindi), खेत, जमीन, किसी अन्य विवादित प्रॉपर्टी या झगडे पर Stay Order कब लगता है? स्थगन आदेश लेने की प्रक्रिया क्या है?
विषयसूची
- स्टे ऑर्डर क्या होता है ? Stay Order Meaning in Hindi
- कोर्ट से स्टे ऑर्डर कैसे लेते है ? पूरी प्रक्रिया
- स्टे ऑर्डर का अर्थ ? �Stay order meaning in Hindi
- Stay Order से संबंधित कानून क्या है?
- स्थगन आदेश कितने प्रकार का होता है और यह कब लिया जाता है?
- स्थगन आदेश (Stay Order) के बाद क्या होता है
- स्टे आर्डर कितने समय के लिए लिया लगता है?
- स्थगन आदेश ना मानने पर क्या परिणाम होते हैं
- कोर्ट से स्टे ऑर्डर लेने में फीस कितनी लगती है ? Stay order fees in Hindi
- अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
आपने बहुत सी फिल्मों व समाचारों में जरुर देखा होगा कि कोई व्यक्ति अचानक Stay Order ले आता है तो उसी समय कोई भी तोड़-फोड का या किसी भी प्रकार का कार्य रोक दिया जाता है या किसी व्यक्ति को पुलिस पकड़ कर ले जा रही होती है तो पुलिस इस आदेश को देखते ही उस व्यक्ति को उसी समय छोड़ देती है। लेकिन असल मे हमें पूरी तरह से इस Order के नियमों व कार्यों की बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती इसलिए आज हम स्टे ऑर्डर कि शक्तियों के बारे में भी जानेंगे की यह आदेश कहाँ और कब इस्तेमाल होता है। इसके साथ ही हम आपको बहुत ही सरल भाषा में Court से Stay Order लेने की पूरी प्रक्रिया भी बताएंगे।
स्टे ऑर्डर क्या होता है – Stay Order Meaning in Hindi
भारत में “स्टे आर्डर” (Stay Order) अदालत द्वारा जारी किया जाने वाला एक आदेश है जो पहले जारी किए गए अदालती आदेश (Court Order), फैसले, विवादित मामलों या किसी कानूनी कार्रवाई (Legal Actions) को रोकने के लिए उपयोग किया जाता है। एक बार किसी मामले में स्टे लग जाता है तो उस मामले में होने वाली कार्यवाही को रोक दिया जाता है। इसके बाद स्टेऑर्डर तब तक लागू रहता है जब तक की न्यायालय द्वारा उस मामले में जांच (Investigation) पूरी नहीं हो जाती।
स्टे ऑर्डर का अर्थ – Stay order meaning in Hindi
स्टे आर्डर का हिन्दी में मतलब होता है Stay = रोकना, Order = आदेश जिसका मतलब है किसी कार्य या कार्यवाही को रोकने का आदेश इसे हिन्दी में स्थगन आदेश भी कहा जाता है।
उदाहरण
मान लीजिए किसी जमीन को लेकर दो पक्षों में विवाद होता है, तो इनमें से एक पक्ष उस जमीन को विवाद (Dispute) होने के बावजूद भी किसी को बेच ना दे या उस पर कोई इमारत ना बना दे। इसलिए इस कार्य को रोकने के लिए दूसरे पक्ष द्वारा कोर्ट से Stay Order लिया जाता है। एक बार कोर्ट से स्टे मिलने के बाद पहले पक्ष का व्यक्ति उस जमीन को ना तो बेच पाएगा और ना ही उस पर कुछ निर्माण कर पाएगा। ऐसा तब तक होगा जब तक की कोर्ट सबूतों की जाँच करके उचित निर्णय तक नहीं पहुँचती।
Stay Order से संबंधित कानून क्या है?
भारत में स्टे ऑर्डर का कानून (Law) मुख्य रुप से सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure), 1908 के द्वारा शासित (Governed) होता है। जिसके द्वारा किसी भी कानूनी कार्यवाही या किसी निर्णय पर अदालत द्वारा जारी किए आदेश से रोक लगा दी जाती है। यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि उसके साथ किसी कानूनी या गैर-कानूनी निर्णय से अन्याय (Injustice) हो रहा है तो वह कोर्ट में स्थगन आदेश की मांग कर सकता है।
स्थगन आदेश कितने प्रकार का होता है और यह कब लिया जाता है?
भारत मे स्टे आर्डर के बहुत से प्रकार होते है जिनके अलग-अलग कार्यें होते है। इसलिए इन सभी के बारें में विस्तार से जानना आपके लिए बहुत जरुरी है। साथ ही आप में से बहुत से लोगों का यह भी सवाल रहता है कि स्टे ऑर्डर कब लिया जाता है? तो आपकों नीचे दी गई जानकारी के द्वारा अपने सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
- अंतरिम रोक: अंतरिम रोक (Interim Stay) का मतलब होता है कि जब तक किसी मामले के अंतिम निर्णय तक कोर्ट नहीं पहुँच जाता तब तक अस्थायी (Temporary) रुप से रोक लगी रहती है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति से बेदखली का सामना कर रहा है, तो वह बेदखली की प्रक्रिया को रोकने के लिए कोर्ट के सामने अंतरिम रोक का अनुरोध कर सकता है जब तक कि अदालत मामले की पूरी तरह से जांच नहीं कर लेती।
- निष्पादन पर रोक: यह आदेश ऐसे आपराधिक मामलों से संबंधित होता है जिनमें किसी व्यक्ति को दोषी (Guilty) ठहराया जाता है और उसे कारावास या मृत्युदंड की सजा का सामना करना पड़ रहा है। इसकी मदद से उस व्यक्ति की फांसी की सजा पर रोक लगाई जाती है और ऐसा तब होता है जब उस व्यक्ति के मामले में कोई नया कानूनी मुद्दा या सबूत सामने आता है तो ऐसे मामलों में दोबारा जांच (Investigation) की मांग की जाती है।
- कार्यवाही पर रोक: इसके द्वारा किसी भी मामले में सभी कानूनी कार्यवाही पर अस्थायी (Temporary) रोक लग जाती है। उदाहरण के लिए यदि अदालत के अधिकार क्षेत्र को लेकर पक्षों के बीच असहमति है या मामले के किसी महत्वपूर्ण पहलू से संबंधित कोई अपील लंबित है, तो कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दिया जा सकता है।
- नीलामी पर रोक: यदि किसी भी मामले में ऋण वसूल (Debt Recover) करने या किसी अन्य कारण से किसी संपत्ति की नीलामी (Auction) की जा रही है तो उस निलामी पर रोक की मांग की जा सकती है। इस प्रकार के मामलों को भी तब तक रोका जा सकता है जब तक अदालत मामले की पूरी तरह से जांच नहीं कर लेती।
- विध्वंस पर रोक: यदि किसी भी कारण से किसी संपत्ति को तोड़ने या गिराने की योजना है तो उस पर रोक लगाने का अनुरोध किया जा सकता है। इस रोक के द्वारा तब तक रोक लगाई जा सकती है कि जब तक की उसके तोड़ने के कारण को कोर्ट के द्वारा सही नहीं पाया जाता।
- गिरफ्तारी से बचने के लिए: पुलिस आपको किसी कारण से गिरफ्तार करने के लिए वारंट (Warrant) लेकर आती है तो ऐसे में आप अपनी गिरफ्तारी से कुछ समय के लिए बचने के लिए अपने वकील की मदद से Stay order ले सकते है।
कोर्ट से स्टे ऑर्डर कैसे लेते है – पूरी प्रक्रिया
क्या आप बहुत समय से इस सवाल का जवाब खोज रहे है कि कोर्ट से स्टे ऑर्डर कैसे लेते है? तो हमारे द्वारा आपके लिए भारत में Stay Order लेने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया बहुत ही आसान भाषा मे दी गई है। जिसके द्वारा आपको इस विषय की पूरी जानकारी हो जाएगी।
चरण 1: वकील की सलाह ले
स्टे ऑर्डर लेने के लिए सबसे पहले आपको एक अनुभवी वकील से कानूनी सलाह (Legal Advice) लेनी चाहिए। वकील को अपने मामले के बारे में सारी जानकारी दे व स्टे आर्डर लेने के लिए कहे।
चरण 2: प्रासंगिक दस्तावेज़ इकट्ठा करें
इसके बाद अपने मामले से संबंधित सभी जरुरी दस्तावेजों (Documents) को इक्ट्ठा करें जैसे मूल शिकायत (Original Complaint) की Photocopy ,सभी जरुरी सबूत,अदालत के आदेश, व अन्य कोई आवश्यक दस्तावेज।
चरण 3: एक याचिका तैयार करें
इसके बाद अपने वकील की मदद से Stay Order के लिए एक याचिका (Petition) तैयार करें। इस याचिका में आप स्टेआर्डर क्यों लेना चाहते है उन सभी बातों का जिक्र करें, व अपने दावे को साबित करने के लिए सभी सबूत भी प्रदान करें। जिसके लिए आपका वकील आपकी मदद करेगा।
चरण 4: याचिका दायर करें
इसके बाद अपनी याचिका को अपने वकील की मदद से न्यायालय में लेकर जाएं और याचिका को जमा कराने की निर्धारित शुल्क को देकर जमा करें।
चरण 5: विरोधी पक्ष को नोटिस भेजें
आपकी याचिका दायर हो जाने के बाद अपने विरोधी पक्ष (Opposing Side) को नोटिस भिजवाए। जिसमें आप दूसरे पक्ष को आपके द्वारा दायर की गई याचिका व अन्य जरुरी दस्तावेजों की एक प्रति (Copy) पहुँचाए।
चरण 6: सुनवाई में भाग लें
इसके बाद अदालत आपके मामले के सुनवाई के लिए तारीख निर्धारित करेगी। इसलिए अदालत द्वारा दी गई तिथि पर आपको अपने वकील के साथ अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा। उसी दिन सभी जरुरी जानकारी व आवश्यक दस्तावेज न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत करें। जिसके बाद आपका वकील स्टे ऑर्डर के लिए कोर्ट में बहस (Argument) करेगा।
चरण 7: स्थगन आदेश प्राप्त करें
यदि अदालत आपके द्वारा दिए गए तर्कों और सभी सबूतों को सही मानती है तो स्टे ऑर्डर के आदेश दे सकती है। जिसके बाद आपके मामले से संबंधित कार्यवाही या कार्यों पर अस्थायी रुप (Temporary) से रोक लगा दी जाती है।
चरण 8: स्थगन आदेश दे
कोर्ट से स्टे आर्डर मिलने के बाद दूसरे पक्ष को इसकी एक प्रति देनी होगी। जिससे उन्हें कोर्ट के फैसले का पता चल सकें व उनके द्वारा आदेशों की पालना भी की जा सकें।
चरण 9: स्थगन आदेश का अनुपालन करें
इसके बाद दोनों पक्षों को स्टे आर्डर के नियमों व शर्तों (Term & Conditions) का पालन करना होगा। यदि विरोधी पक्ष स्टे लगी हुई किसी भी चीज के साथ छेड़-छाड़ करता है या कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करता है तो इसके बारे में अपनी वकील को सूचित करें।
स्थगन आदेश (Stay Order) के बाद क्या होता है
भारत में स्थगन आदेश दिए जाने के बाद, आम तौर पर आगे क्या होता है:
- स्थगन आदेश जारी होने के बाद आपके मामले से संबंधित कार्यों को अस्थायी रुप से निलंबित कर दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि आपके केस से संबंधित किसी भी गतिविधि या निर्णय को अंतिम निर्णय आने तक रोक दिया जाता है।
- इस आदेश के जारी होने के बाद आदेश के प्राप्तकर्ता (Recipient) को लगाई गई रोक के सभी नियमों व शर्तों का पालन करना होगा। यदि कोई भी इसका उल्लंघन (Violation) करता है तो उस पर कार्यवाही की जा सकती है।
- इसके बाद विरोधी पक्ष को स्टे ऑर्डर के बारे में सूचित करवाना जरुरी होता है जिससे उसे पता चल सके कि उसके किसी भी मामले पर आपके द्वारा कोर्ट से रोक लगवाई गई है। इसलिए विरोधी पक्ष को आदेश की एक प्रति देना जरुरी होता है।
- स्टे आर्डर के आदेश के बाद आपको अपने वकील से आगे की कानूनी कार्यवाही के लिए तैयारी करने की कहना चाहिए। इसके साथ ही अपने केस को मजूबत करने के लिए सबूत इक्ट्ठा करें, व अंतिम निर्णय के लिए अपने वकील की सलाह लेते रहे।
- इसके साथ ही आगे की कार्यवाही के दौरान होने वाली कोर्ट की सुनवाई व कार्यवाही के बारे में अपने वकील से पूछते रहे।
- स्टे ऑर्डर के लगने के बाद अदालत दोनों पक्षों की और से सुनवाई (Hearing) करती है। और अंत में सभी बातों पर विचार करते हुए जिस पक्ष का केस मजबूत व सही होगा उसके लिए अपना निर्णय (Decision) सुनाती है।
स्टे आर्डर कितने समय के लिए लिया लगता है?
- स्टे आर्डर की अवधि आपके केस पर निर्भर करती है। यदि आपका केस ज्यादा विवादित है तो उसमें समय ज्यादा लगता है।
- इसके अलावा अलग-अलग न्यायालयों के अनुसार भी इसके समय में अंतर हो सकता है।
- अगर कोर्ट को स्टे ऑर्डर को बदलने या रद्द करने की आवश्यकता महसूस होती है, तो वह अपनी विवेकपूर्ण शक्ति का उपयोग करके स्टे आर्डर के समय को कम या ज्यादा भी कर सकता है।
- कुछ विशेष परिस्थितियों में भी स्टे ऑर्डर के समय को बढ़ाया जा सकता है या उसे समाप्त भी किया जा सकता है।
स्थगन आदेश ना मानने पर क्या परिणाम होते हैं
यदि कोई व्यक्ति स्थगन आदेश का उल्लंघन करता है तो उसे भारतीय कानून (Indian Laws) के अनुसार गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए चलिए जानते है कि कोर्ट का स्टे आर्डर ना मानने वाले व्यक्ति पर क्या कार्यवाही हो सकती है।
- कोर्ट की अवमानना करना:- स्थगन आदेश का उल्लंघन करना न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) माना जाता है। जिसका अर्थ होता है न्यायालय के आदेशों का अपमान करना और यह एक दंडनीय अपराध (Punishable Offence) है।
- जुर्माना:- जो भी व्यक्ति अदालत के आदेशों का उल्लंघन करता है उस पर कोर्ट द्वारा जुर्माना (Fine) लगाया जा सकता है।
- कानूनी परिणाम:- इन आदेशों का उल्लंघन करने से आपके मामले की कानूनी स्थिति पर बहुत गलत प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण कोर्ट के सामने आपकी विश्वसनीयता (Reliability) कमजोर हो जाती है और कोर्ट ऐसे मामलों को नकारात्मक रुप से देखती है।
- आपराधिक कार्यवाही: कुछ मामलों में इन आदेशों का उल्लंघन करने पर आपके खिलाफ आपराधिक मामला (Criminal Case) भी दर्ज किया जा सकता है। जिसके कारण आपको गिरफ्तार कर मुकदमा भी दर्ज किया जा सकता है।
कोर्ट से स्टे ऑर्डर लेने में फीस कितनी लगती है – Stay order fees in Hindi
अकसर आप में से बहुत से लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि स्टे ऑर्डर लेने के लिए कितना खर्च आता है? स्टे आर्डर की फीस कितनी होती है? तो चलिए जानते है कि स्टे लेने के लिए भारत में कितनी फीस लगती है।
- वकील की फीस: स्थगन आदेश लेने के लिए सबसे पहले आपको एक वकील की आवश्यकता पड़ती है। जिसके लिए आपको अपने लिए किसी अच्छे वकील का चयन करना पड़ता है। आप जितना अनुभवी व अच्छा वकील अपने केस के लिए करेंगे, उतनी ही ज्यादा फीस आपको देनी पड़ेगी। इसलिए किसी भी वकील को अपना मामला सौपने से पहले उसकी फीस के बारे में अच्छे से जान ले।
- न्यायालय शुल्क: स्थगन आदेश के लिए याचिका दायर (Petition Filled) करते समय आपको न्यायालय के द्वारा तय किए गए शुल्क (Fees) का भुगतान करना होता है। कोर्ट की फीस आपके मामले के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों के आधार पर भी फीस में बदलाव मिल सकता है। ये फीस संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है और कुछ सौ रुपये से लेकर कई हजार रुपये तक हो सकती है। इसलिए याचिका दायर करते समय अपने मामले पर लागू होने वाली अदालती शुल्क के बारे में अपने क्षेत्र में या अपने वकील से पूछताछ करें।
- प्रोसेस सर्वर शुल्क: कुछ मामलों में विरोधी पक्ष को इस आदेश का नोटिस देने की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए प्रोसेस सर्वर की फीस भी आपको देनी पड़ सकती है। Process Server एक व्यक्ति होता है जिसका काम किसी आदेश, नोटिस, या कानूनी प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजों को दूसरे पक्ष तक पहुँचाने का होता है।
- अन्य खर्च:- इन सब के अलावा भी आपका कुछ अन्य चीजों में खर्च आ सकता है जैसे सभी दस्तावेजों की फोटोकापी कराने में नोटरी शुल्क, विरोधी पक्ष को दस्तावेज भेजने के लिए कूरियर खर्च जैसे खर्च देने पढ़ सकते है।