पॉक्सो एक्ट क्या है? धारा, सज़ा, जमानत | POCSO Act in Hindi



दोस्तों अकसर टीवी और अखबारों के माध्यम से बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण के अपराध के बारे में देखने को मिलता है। जोकि हमारे समाज के लिए एक बहुत ही गंभीर समस्या का कारण है। दिन-प्रतिदिन ऐसे अपराध बढ़ते जा रहे है। इसलिए इस तरह के अपराधों को रोकने व दोषी व्यक्तियों को सजा दिलाने के लिए हमारे देश में अलग से एक कानून बनाया गया है। जिसके बारे में आज हम बात करेंगे कि पॉक्सो एक्ट क्या है? Pocso Act Full Form, पॉक्सो एक्ट कब लागू होता है? इस एक्ट में सजा व जमानत? अगर आप इस अधिनियम के बारे में विस्तृत जानकारी आसान भाषा में जानना चाहते है तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े।




पॉक्सो एक्ट क्या है - What is POCSO Act in Hindi?

पॉक्सो एक्ट का निर्माण महिला एंव बाल विकास मंत्रालय द्वारा साल 2012 में Pocso Act -2012 के नाम से किया गया था। 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के साथ किसी भी प्रकार से सैक्सुअल शोषण करने वाले व्यक्ति पर इस एक्ट के तहत कार्यवाही की जाती है। इस कानून का निर्माण नाबालिग बच्चों के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, पोर्नोग्राफी और छेड़छाड़ के मामलों को रोकने के लिए किया गया था। इस कानून के द्वारा अलग-अलग अपराधों के लिए अलग सजा का प्रावधान है।



POCSO Act Full form in Hindi

  • POCSO Act Full form –  Protection of Children From Sexual Offences Act
  • पॉक्सो एक्ट फुल फॉर्म हिंदी में – लैगिंक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम

पॉक्सो एक्ट कब लागू होता है?

18 वर्ष से कम उम्र के नाबालिग बच्चों के शरीर के किसी भी अंग में लिंग या कोई अन्य वस्तु डालना या अन्य किसी प्रकार से गलत बर्ताव करना यौन शोषण कहलाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग बच्चे (Minor Child) का यौन शोषण करता है तो उस व्यक्ति पर POCSO ACT के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जाती है।

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पॉक्सो अधिनियम के तहत "यौन उत्पीड़न" की परिभाषा और धाराएँ

POCSO अधिनियम के अनुसार "यौन हमला" एक बच्चे पर की गई निम्नलिखित गतिविधियों में से किसी को संदर्भित करता है:-

  • भेदनात्मक यौन हमला | Penetrative Sexual Assault (धारा 3):- इसमें बच्चे के साथ योनि, गुदा या मौखिक संभोग शामिल है।
  • गंभीर प्रवेशन यौन हमला | Aggravated penetrative Sexual Assault (धारा 5):- यह धारा 3 के तहत यौन हमले को संदर्भित करता है जो कुछ गंभीर परिस्थितियों में किया जाता है, जैसे कि जब अपराधी बच्चे का रिश्तेदार, अभिभावक या शिक्षक हो, या जब बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम।
  • यौन हमला | Sexual Assault (धारा 7):- इसमें बच्चे के साथ यौन प्रकृति का कोई भी अवांछित शारीरिक संपर्क शामिल है, जैसे कि बच्चे के गुप्तांगों को छूना या बच्चे को अपराधी के गुप्तांगों (Private parts) को छूना।
  • उग्र यौन हमला (धारा 9):- यह धारा 7 के तहत यौन हमले को संदर्भित करता है जो कुछ गंभीर परिस्थितियों में किया जाता है, जैसे कि जब अपराधी बच्चे का रिश्तेदार, अभिभावक या शिक्षक हो, या जब बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम हो। .
  • बच्चे का यौन उत्पीड़न | Child Sexual abuse (धारा 11):- इसमें कोई भी अवांछित यौन इशारा या व्यवहार शामिल है, जैसे यौन टिप्पणी करना या बच्चे को अश्लील साहित्य दिखाना।
 

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POCSO Act 2012 के तहत शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है?

अगर आप या आपका कोई जानने वाला यौन शोषण का शिकार हुआ है तो आप पॉक्सो एक्ट के तहत शिकायत दर्ज करा सकते हैं। POCSO अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया इस प्रकार है:

  1. पुलिस से संपर्क करें:- पहला कदम पुलिस से संपर्क करना और घटना की रिपोर्ट करना है। आप या तो व्यक्तिगत रूप से पुलिस स्टेशन जा सकते हैं या शिकायत दर्ज (Complaint Register) कराने के लिए पुलिस हेल्पलाइन नंबर पर कॉल भी कर सकते हैं।
  2. विवरण प्रदान करें:- आपको घटना की तिथि, समय और स्थान के साथ-साथ यदि संभव हो तो अपराधी की पहचान जैसे विवरण प्रदान करने की आवश्यकता होगी।
  3. मेडिकल जांच:- पुलिस दुर्व्यवहार के सबूत इकट्ठा करने के लिए पीड़िता की मेडिकल जांच की व्यवस्था करेगी।
  4. प्राथमिकी दर्ज करना (FIR):- अगर पुलिस को पता चलता है कि शिकायत POCSO अधिनियम के दायरे में आती है, तो वे प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेंगे और जांच शुरू करेंगे।
  5. परीक्षण:- POCSO अधिनियम के तहत एक नामित अदालत में मामले की कोशिश की जाएगी। पीड़िता और गवाहों (Witnesses) को कोर्ट में गवाही (Testimony) देनी होगी।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पॉक्सो अधिनियम पीड़ित (Victim) और गवाहों की पहचान की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान करता है।



POCSO Case के तहत पुलिस की क्या जिम्मेदारियां हैं?

पुलिस इस कानून को लागू करने और ऐसे अपराधों के पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पॉक्सो एक्ट के तहत पुलिस की जिम्मेदारियों में शामिल हैं:-

  • शिकायत का पंजीकरण:- जब किसी बच्चे के खिलाफ यौन अपराध की शिकायत प्राप्त होती है, तो पुलिस को तुरंत शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
  • बयान दर्ज करना:- पुलिस पीड़ित या किसी गवाह के बयान को इस तरह से दर्ज करने के लिए जिम्मेदार है जो बच्चे की उम्र, लिंग और मानसिक स्थिति के प्रति संवेदनशील हो।
  • मेडिकल जांच:- पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपराध के सबूत इकट्ठा करने के लिए शिकायत के 24 घंटे के भीतर पीड़िता की मेडिकल जांच हो।
  • अभियुक्तों की गिरफ्तारी:- यदि अपराध में उनकी संलिप्तता (Involvement) का उचित संदेह है तो पुलिस के पास आरोपी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की शक्ति है।
  • पीड़ित की सुरक्षा:- पुलिस को जांच और मुकदमे के दौरान सुरक्षा और सहायता प्रदान करने सहित पीड़ित की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • जांच और साक्ष्य संग्रह:- पुलिस को अपराध की गहन जांच करनी चाहिए, अपराध से संबंधित सभी सबूतों को इकट्ठा करना चाहिए और उसे Court में पेश करना चाहिए।
  • फास्ट-ट्रैक ट्रायल:- पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि POCSO अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अभियुक्तों का मुकदमा समयबद्ध तरीके से चलाया जाए और उसमें तेजी लाई जाए।

बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के अपराधियों को न्याय दिलाने के लिए POCSO अधिनियम के तहत पुलिस की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।



पॉक्सो एक्ट में सजा और जमानत - Pocso Act Punishment in Hindi

पॉक्सो एक्ट का यह अपराध एक बहुत ही गंभीर अपराध माना जाता है। जिसमें दोषी व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान होता है। जो भी व्यक्ति इस अपराध को करने का दोषी पाया जाता है। इस अधिनियम में अपराध की गंभीरता के आधार पर न्यूनतम 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।

पॉक्सो एक्ट में मृत्यु दंड की सजा

पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद यह फैसला लिया गया कि अगर कोई 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार का दोषी पाया जाता है तो दोषी व्यक्ति को मौत की सजा दी जा सकती है।



POCSO Act में जमानत (Bail) का प्रावधान

यदि किसी व्यक्ति पर नाबालिग बच्चे के साथ यौन शोषण जैसे अपराध करने के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है तो उसे किसी भी प्रकार से जमानत नहीं दी जा सकती। इस एक्ट में संशोधन से पहले अग्रिम जमानत का प्रावधान था। लेकिन संशोधन के बाद आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जाती।



झूठा POCSO Act Case करने पर क्या सज़ा हो सकती है?

POCSO Act के तहत झूठी शिकायत करने से शिकायतकर्ता को कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इस अधिनियम की धारा 22 झूठी शिकायतों से संबंधित है और कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर झूठी शिकायत करता है या पॉक्सो एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति को झूठी जानकारी प्रदान करता है, उसे कारावास की सजा दी जाएगी जो छह महीने तक बढ़ सकती है या जुर्माना हो सकता है। अथवा दोनों।



पॉक्सो एक्ट 2012 की विशेषताएं

वर्ष 2018 में हुए संशोधन के बाद इस इस एक्ट को और भी सख्त कर दिया गया है। जिसका उदेश्य है बच्चों को इस अपराध से बचाना व समय पर न्याय दिलवाना। इस तरह के मामलों में बच्चों को सुनवाई के लिए मनाना बहुत ही मुश्किल काम होता है। क्योंकि जो हादसा बच्चों के साथ होता है। उससे उन्हें मानसिक रुप से बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।

  • पॉक्सो कानून में बच्चों के साथ होने वाली सुनवाई कैमरे के सामने बच्चों के माता-पिता की उपस्थिति में होती है।
  • इस केस में सुनवाई की पूरी रिकार्डिंग कैमरे के द्वारा की जाती है।
  • यदि दोषी व्यक्ति ने कोई ऐसा अपराध किया है जो पॉक्सो एक्ट के अतिरिक्त किसी अन्य कानून के तहत अपराध होता है। उस स्थिति में दोषी व्यक्ति उस अपराध की सजा के तौर  पर भी सख्त से सख्त कार्यवाही की जाती है।
  • पॉक्सो एक्ट में बच्चों के लिए विशेष अदालत में कार्यवाही होती है।
  • यदि कोई व्यक्ति बच्चों से देह व्यापार करवाता है तो उस पर भी पॉक्सो एक्ट के तहत कार्यवाही की जाती है।
  • यदि पुलिस को इस तरह के किसी अपराध की जानकारी मिलती है तो 24 घंटे के अंदर पुलिस को बाल कल्याण समिति को जानकारी देनी होती है।
  • पॉक्सो एक्ट में बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जाती है।
  • ऐसे मामलों में पुलिस की भूमिका बहुत बढ़ जाती है। पुलिस द्वारा ऐसे मामलों की जांच जल्द से जल्द करनी होती है।
  • पॉक्सो एक्ट में यौन शोषण के अपराध की सुनवाई 1 वर्ष के अंदर खत्म करने को कहा जाता है। ताकि पीड़ित बच्चों को समय पर न्याय मिल सके।
 

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पोक्सो एक्ट से बचने के उपाय

यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कार्यवाही की जाती है तो उसके बचने के लिए कोई रास्ता नहीं होता। यदि इस मामले में यह साबित हो जाता है कि पीड़ित 18 वर्ष से ज्यादा का है तब ही इस एक्ट को हटाया जा सकता है।

ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सभी को जागरुक करना चाहिए। जिससे भविष्य में होने वाले कुकर्मों को रोका जा सके। बहुत बार देखा जाता है कि कुछ लोग समाज के ड़र से अपने आस पास हो रहे ऐसे अपराधों को छिपा लेते है। ऐसा करना बहुत ही गलत बात है।

यदि किसी बच्चे के साथ ऐसा अपराध होता है तो तुरन्त इसकी शिकायत पुलिस स्टेशन जाकर करे। इस एक्ट का निर्माण बच्चों को न्याय दिलवाने के लिए किया गया है। यदि कोई इस तरह का घिनौना अपराध करता है तो उसे सजा दिलवाना बहुत जरुरी हो जाता है। इसलिए हमेशा सर्तक रहें।


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