भारतीय संविधान अनुच्छेद 21 (Article 21 in Hindi) - प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण


विवरण

किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण)

अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य की सावधानी का अधिकार वैसा ही है, जैसे जीवन का अधिकार होता है। यह अनुच्छेद भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन जीने और उसकी निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, यदि कोई अन्य व्यक्ति या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे उच्चतम न्यायलय तक जाने का अधिकार होता है। अन्य शब्दों में किसी भी प्रकार का क्रूर, अमाननीय उत्‍पीड़न या अपमान जनक व्‍यवहार चाहे वह किसी भी प्रकार की जॉंच के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्‍न से या किसी अन्‍य स्‍थान पर हो, तो यह इस अनुच्‍छेद 21 का अतिक्रमण करता है, जो कि भारतीय संविधान के अनुसार वर्जित है। यह एक मूल अधिकार है, इसमें कहा गया है, कि किसी व्‍यक्ति को उसके जीवन और निजता की स्‍वतंत्रता से बंछित किये जाने संबंधी कार्यवाही उचित ऋजु एवं युक्तियुक्‍त होनी चाहिए। य‍ह सब अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत आता है।

निजता के अधिकार की अवधारणा को आसानी से नहीं समझा जा सकता है। निजता प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का उपयोग करती है और आम तौर पर नई सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का जवाब देती है। निजता का अधिकार हमारे चारों ओर एक डोमेन रखने का हमारा अधिकार है, जिसमें ये सभी चीजें शामिल हैं जो हमारा हिस्सा हैं, जैसे कि हमारा शरीर, घर, संपत्ति, विचार, भावनाएं, रहस्य और पहचान, निजता का अधिकार हमें क्षमता देता है यह चुनने के लिए कि इस डोमेन में कौन से हिस्से दूसरों द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं और उन हिस्सों के उपयोग की सीमा, तरीके और समय को नियंत्रित करने के लिए जिन्हें हम प्रकट करना चुनते हैं। बहुत समय पहले एक वक्तव्य सुनने में आया था कि जो सरकार अपने नागरिकों की निजता या निजी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकती है, वह सरकार किसी भी प्रकार से अपने देश की जनता को सभी क्षेत्रों में सामान अवसर प्रदान कराने वाली सरकार के रूप में आसानी से सामने नहीं आ सकती है। यहाँ पर इस बात को ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है, कि यहाँ पर केवल नागरिकों की शारीरिक रक्षा की ही नहीं बल्कि उनकी निजी जानकारियों की रक्षा की भी बात हो रही है। साधारणतया सभी लोकतंत्र सरकार द्वारा नागरिकों को सामान अवसर प्रदान कराने में हर एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से कुछ भिन्न है, अतः सामान अवसर प्रदान कराने में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी एक नागरिक की वजह से दूसरे नागरिक के साथ किसी भी प्रकार से से समझौता नहीं होना चाहिए।

भारतीय संविधान देश भर के सभी नागरिकों को प्रदान किये गए सभी अधिकारों की रक्षा करता है, इस संविधान के अनुसार देश के सभी नागरिकों के लिए कई प्रकार के मौलिक अधिकार तय किये गये हैं, जो कि किसी भी नागरिक को देश में सुचारु रूप से रहने के लिए उसे सम्मान के साथ उस व्यक्ति को अपने स्तर के सभी हक़ प्रदान कराने के लिए जरुरी होते हैं, हमारे देश भारत में नागरिकों के लिए बराबरी का अधिकार, शैक्षणिक और सांस्कृतिक अधिकार आदि सर्वमान्य माने गये हैं। इसी तरह से देश के नागरिकों को एक और अधिकार प्रदान किया जाता है, जिसे निजता या निजी स्वतंत्रता के अधिकार के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के जीवन में किसी अन्य व्यक्ति की ज़बरदस्ती के हस्तक्षेप पर रोक भी लगायी जा सकती है, इसमें किसी भी व्यक्ति की निजी, पारिवारिक, हॉनर, रेपुटेशन आदि भी सम्मिलित होती है। यहाँ पर इससे सम्बंधित सभी विशेष बातें और तात्कालिक समय में भारत सरकार पर माननीय सर्वोच्छ न्यायालय द्वारा इसके अंतर्गत उठाये गये सवालों का वर्णन किया जा रहा है।
 

निजता का अर्थ क्या है?

निजता का अर्थ है "लोगों के ध्यान से घुसपैठ या किसी के कृत्यों या निर्णयों में हस्तक्षेप से मुक्त होने की स्थिति या स्थिति।"
निजता के अधिकार का अर्थ है:

  • व्यक्तिगत स्वायत्तता का अधिकार।

  • किसी व्यक्ति और व्यक्ति की संपत्ति का अनुचित सार्वजनिक जांच या जोखिम से मुक्त होने का अधिकार।

जबकि निजता के आक्रमण का अर्थ है "किसी के व्यक्तित्व का अनुचित शोषण और किसी की व्यक्तिगत गतिविधियों में घुसपैठ।" निजता को "अकेले रहने के अधिकार" के पर्याय के रूप में भी माना जाता है।
 

आखिर क्या है निजी स्वतंत्रता का अधिकार?

निजी स्वतंत्रता या राईट टू प्राइवेसी का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किया गया है, जो कि भारत के नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसके अंतर्गत भारत देश के किसी व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं,

  1. भारतीय संविधान के इस प्रावधान के अंतर्गत कोई व्यक्ति अपनी निजी जानकारी किसी भी समय किसी भी अथॉरिटी या किसी व्यक्ति से प्राप्त कर सकता है।

  2. यदि किसी भी प्रकार के दस्तावेज में किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों में किसी भी प्रकार की त्रुटी हो गयी है, या कोई आवश्यक जानकारी छूट गयी है, तो वह व्यक्ति उस जानकारी को संशोधित करने के लिए आवेदन कर सकता है, और बिना किसी परेशानी के अपने दस्तावेजों को संसोधित करा सकता है।

  3. बिना किसी क़ानूनी नोटिस या समन के जिसमे न्यायालय द्वारा किसी बड़े मुद्दे को हल करने के लिए अपनी कुछ निजी जानकारी साझा करने का आदेश हो सकता है, तो ऐसे आदेश के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के सामने अपनी निजी जानकारी व्यक्त न करने की स्वतंत्रता भी इस अधिकार के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होती है।

  4. इस निजी स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत किसी भी नागरिक को इस बात की स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है, कि केवल वह यदि चाहे तो ही केवल उसकी निजी जानकारी किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के पास जाएगी अन्यथा नहीं जायेगी।

  5. निजी स्वतंत्रता का अधिकार इस बात की भी स्वतंत्रता भी देता है, कि एक व्यक्ति यह स्वयं तय कर सकता है, कि क्या राज्य उस व्यक्ति की निजी ज़िन्दगी के विषय में जान सकता है, यदि वह व्यक्ति राज्य को इस बात की अनुमति प्रदान नहीं करता है, तो राज्य की कोई भी अथॉरिटी उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित नहीं कर सकती है, और यदि कोई व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित करती है, तो वह व्यक्ति बिना किसी परेशानी के सीधे माननीय सर्वोच्छ न्यायालय में अपने निजी स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए अपील कर सकता है, और जहां से उस व्यक्ति को इन्साफ मिलेगा।

  6. इस अधिकार के अनुसार कोई व्यक्ति जो जानकारी केवल अपने तक ही सीमित रखना चाहता है, वह केवल उसके ही पास रहेगी, किसी और व्यक्ति या संस्था के पास उस व्यक्ति की उस जानकारी को जानने का किसी प्रकार का कोई हक नहीं होगा।
     

मौलिक अधिकार और निजी स्वतंत्रता का अधिकार

बीती अगस्त 2017 को भारत की माननीय सर्वोच्छ न्यायालय ने देश के लिए एक सबसे अहम फैसला लिए जिसमें निजी स्वतंत्रता के अधिकार को भारतीय संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों की श्रेणी दी गयी। इस फैसले में सर्वोच्छ न्यायालय की 9 सदस्यीय बेंच ने एक साथ मिलकर अपना फैसला सुनाया, जिसमें चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस आर. के. अग्रवाल, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस ए. एम. सप्रे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस. के. कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ये जज लोग शामिल थे।
इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था, कि निजता को मुख्य रूप से तीन जोन में बांटा जा सकता है। जिसमें पहला है, आंतरिक जोन, जिसके अंतर्गत शादी, बच्चे पैदा करना आदि मामले आते हैं। दूसरा है, प्राइवेट जोन, जहां हम अपनी निजता को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से साझा नहीं करना चाहते, जैसे अगर बैंक में खाता खोलने के लिए हम अपना डेटा देते हैं, तो हम चाहते हैं, कि बैंक ने जिस उद्देश्य से हमारा डेटा लिया है, उसी उद्देश्य से तहत वह उसका इस्तेमाल करे, किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को वह डेटा न दे। वहीं, तीसरा होता है, पब्लिक जोन। इस दायरे में निजता का संरक्षण न्यूनतम होता है, लेकिन फिर भी एक व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक निजता बरकरार रहती है। वहीं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी की थी, कि अगर किसी व्यक्ति से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान - सम्मान को ठेस पहुंचाता है, तो वह निजता के मामले के अंतर्गत आता है। चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान - सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा। स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान - सम्मान का अधिकार आता है, और मान सम्मान के दायरे में निजता का मामला आता है।
 

निजता की अंतर्राष्ट्रीय अवधारणाएं

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) के अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि "किसी को भी उसकी निजता, परिवार, घर या पत्राचार के साथ मनमाने ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा और न ही उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर हमला किया जाएगा। इस तरह के हस्तक्षेप या हमलों के खिलाफ हर किसी को कानून की सुरक्षा का अधिकार है।“

नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय वाचा (जिसका भारत एक पक्ष है) के अनुच्छेद 17 में कहा गया है, "किसी को भी उसकी गोपनीयता, परिवार, घर और पत्राचार के साथ मनमाने या गैरकानूनी हस्तक्षेप के अधीन नहीं किया जाएगा, न ही उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर गैरकानूनी हमले का।"

मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन के अनुच्छेद 8 में कहा गया है, "हर किसी को अपने निजी और पारिवारिक जीवन, अपने घर और अपने पत्राचार के सम्मान का अधिकार है; एक सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, सिवाय इसके कि कानून के अनुसार है और एक लोकतांत्रिक समाज में राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक सुरक्षा या देश की आर्थिक भलाई के लिए स्वास्थ्य या नैतिकता की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। या दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए।"
 

निजता का अधिकार-अनुमति प्रतिबंध

निजता में दखल (1) विधायी प्रावधान (2) प्रशासनिक/कार्यकारी आदेश (3) न्यायिक आदेश द्वारा हो सकता है। विधायी घुसपैठ को संविधान द्वारा गारंटी के अनुसार तर्कसंगतता की कसौटी पर परखा जाना चाहिए और उस उद्देश्य के लिए न्यायालय घुसपैठ की आनुपातिकता में उस उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है जिसे प्राप्त करने की मांग की गई है। जहां तक ​​प्रशासनिक या कार्यकारी कार्रवाई का संबंध है, इसे मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए युक्तियुक्त होना चाहिए। न्यायिक वारंट के रूप में, न्यायालय के पास यह मानने के लिए पर्याप्त कारण होना चाहिए कि तलाशी या जब्ती जरूरी है और उसे विशेष राज्य के हितों की सुरक्षा के लिए आवश्यक तलाशी या जब्ती की सीमा को ध्यान में रखना चाहिए। इसके अलावा, जैसा कि पहले कहा गया है, सामान्य कानून ने मान्यता दी है कि वारंट रहित खोजों के संचालन के लिए दुर्लभ अपवादों का आयोजन किया जा सकता है, लेकिन ये अच्छे विश्वास में होने चाहिए, जिसका उद्देश्य सबूतों को संरक्षित करना या व्यक्ति या संपत्ति के लिए अचानक क्रोध को रोकने का इरादा है।
 

निजता और समाज के विभिन्न पहलुओं से इसका संबंध

निजता व्यक्तियों, समूहों या समाज के प्रति निर्देशित एक मूल्य है जिसका अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता हैं। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जो अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, इसमें सभी धर्मों, रीति-रिवाजों और पृष्ठभूमि के लोग हैं और इसलिए यह पता लगाना आसान है कि एक चीज का मतलब पूरे देश के लिए समान नहीं हो सकता है और ऐसा ही निजता की स्थिति है। निजता का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग चीजें हैं। कुछ के लिए यह सूचना की निजता है, दूसरों के लिए शरीर की निजता और कुछ के लिए इसका कुछ अलग दृष्टिकोण हो सकता है। इसलिए निजता को समाज या देश के विभिन्न पहलुओं के साथ अलग-अलग पंक्तियों में पढ़ा जा सकता है जिस पर आगे चर्चा की गई है।

  • निजता अधिकार सरकार को लोगों की जासूसी करने से रोकते हैं (बिना कारण के)। 

  • निजता अधिकार समूहों को अपने लक्ष्यों के लिए व्यक्तिगत डेटा का उपयोग करने से रोकते हैं।

  • निजता अधिकार यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि डेटा चोरी या दुरुपयोग करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाता है।

  • निजता अधिकार सामाजिक सीमाओं को बनाए रखने में मदद करते हैं।

  • निजता अधिकार विश्वास बनाने में मदद करते हैं।

  • निजता अधिकार सुनिश्चित करते हैं कि हमारे डेटा पर हमारा नियंत्रण रहे।

  • निजता अधिकार भाषण और विचार की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।

  • निजता अधिकार आपको राजनीति में स्वतंत्र रूप से शामिल होने देते हैं।

  • निजता अधिकार प्रतिष्ठा की रक्षा करते हैं।

  • निजता अधिकार आपके वित्त की रक्षा करते हैं।

निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अनिवार्य घटक है। निजता का अधिकार, अनुबंध के अलावा, एक विशेष विशिष्ट संबंध से भी उत्पन्न हो सकता है, जो वाणिज्यिक, वैवाहिक या यहां तक ​​कि राजनीतिक भी हो सकता है। निजता का अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है; यह अपराध की रोकथाम, अव्यवस्था या स्वास्थ्य या नैतिकता की सुरक्षा या अधिकारों की सुरक्षा और दूसरों की स्वतंत्रता के लिए उचित प्रतिबंधों के अधीन है। जहां दो व्युत्पन्न अधिकारों के बीच संघर्ष होता है, वहां सार्वजनिक नैतिकता और सार्वजनिक हित को आगे बढ़ाने वाला अधिकार प्रबल होता है। एक समाज का हिस्सा होने के नाते अक्सर यह तथ्य खत्म हो जाता है कि हम पहले व्यक्ति हैं। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी गतिविधि के लिए अपने निजी स्थान की आवश्यकता होती है (यह मानते हुए कि यह कानूनी होगा)। राज्य तदनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उन निजी पलों का आनंद लेने का अधिकार देता है जिनके साथ वे बाकी दुनिया की चुभती आँखों के बिना चाहते हैं। क्लिंटन रॉसिटर ने कहा है कि निजता एक विशेष प्रकार की स्वतंत्रता है जिसे कम से कम कुछ व्यक्तिगत और आध्यात्मिक चिंताओं में स्वायत्तता सुरक्षित करने के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है। यह स्वायत्तता सबसे खास चीज है जिसका आनंद व्यक्ति ले सकता है। वह वास्तव में वहां एक स्वतंत्र व्यक्ति है। यह राज्य के खिलाफ नहीं बल्कि दुनिया के खिलाफ अधिकार है। यदि व्यक्ति अपने विचारों को दुनिया के साथ साझा नहीं करना चाहता तब यह अधिकार उसके हितों की रक्षा करने में मदद करेगा।
 

अनुच्छेद 21 का विस्तार क्षेत्र

अनुच्छेद 21 का दायरा 1950 के दशक तक थोड़ा संकरा था, क्योंकि ए. के. गोपालन बनाम स्टेट ऑफ़ मद्रास में शीर्ष न्यायालय द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया था, कि अनुच्छेद 21 और 19 (1) (डी) की विषय वस्तु और विषय समान नहीं हैं। इस मामले में वंचित शब्द को संकुचित अर्थ में रखा गया था और यह निष्कर्ष निकाला गया था कि वंचितता अनुच्छेद 19 (1) (डी) के तहत आने वाले किसी व्यक्ति को देश में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने के अधिकार पर रोक नहीं लगाती है। उस समय संविधान के कुछ अन्य लेखों के साथ अनुच्छेद 21 के संबंध में ए. के. गोपालन मामला बहुत ही प्रमुख मामला था, लेकिन बाद में गोपालन मामले को अनुच्छेद 21 के दायरे के संबंध में कुछ अन्य मामलों के साथ संसोधन करके विस्तार किया गया है, और यह माना जाता है, कि किसी व्यक्ति के घर में या जब वह जेल में बंद हो तब उसकी स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप करने के लिए कानून के अधिकार की आवश्यकता होगी। क्या अनुच्छेद 19 के संदर्भ में दंडात्मक कानून की निष्पक्षता की जांच की जा सकती है, यह मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में गोपालन मामले के बाद मुद्दा था, इसके बाद शीर्ष न्यायालय ने एक नया आयाम खोला और कहा कि यह प्रक्रिया मनमानी, अनुचित या अनुचित नहीं हो सकती है। अनुच्छेद 21 ने भारत के राज्यों पर भी प्रतिबंध लगाया कि कोई भी राज्य किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है।
 

अनुच्छेद 21 किस - किस पर लागू हो सकता है

इस अनुच्छेद का अधिकार क्षेत्र बहुत ही व्यापक है, और यह नियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, जो कि भारत के मूल निवासी हैं, और जिनके पास भारत देश की नागरिकता है। इसमें किसी भी व्यक्ति के लिए कोई रोक - टोक नहीं होती है, सभी को समानता का अधिकार है।
 

अनुच्छेद 21 के मामलों में एक वकील की जरुरत क्यों होती है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है, जिसमे यह कहा गया है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के आलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सर्वोच्छ न्यायालय जाने का अधिकार है, वह सर्वोच्छ न्यायालय में किसी सुप्रीम कोर्ट के वकील के माध्यम से अपनी याचिका दायर कर सकता है। इसी कारण एक वकील ही एकमात्र ऐसा यन्त्र होता है, जो किसी पीड़ित व्यक्ति को सही रास्ता दिखने में लाभकारी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि वकील को कानून और संविधान की उचित जानकारी होती है, तो वह मामले से सम्बंधित सभी प्रकार के उचित सुझाव भी दे सकता है। लेकिन इसके लिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस वकील को हम अपने मामले को सुलझाने के लिए नियुक्त कर रहे हैं, वह अपने क्षेत्र में निपुण वकील होना चाहिए, और उसे संविधान से सम्बंधित और अनुच्छेद 21 के मामलों से निपटने का उचित अनुभव होना चाहिए, जिससे आपके केस जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।


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भारतीय संविधान पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


1. संविधान क्या है?

संविधान देश का सर्वोच्च विधी है। यह सरकार/राज्य/संस्थानों के मौलिक संहिता, संरचनाओं, प्रक्रियाओं, शक्तियों और कर्तव्यों का सीमांकन करने वाले ढांचे का विवरण देता है। इसमें मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत और नागरिकों के कर्तव्य भी शामिल हैं।


2. संविधान कब प्रभाव मे आया ?

भारत के संविधान को 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था और यह 26 जनवरी, 1950 को प्रभाव मे आया था।


3. क्या संविधान मानव अधिकारों के दुरुपयोग को रोक सकता है?

यह नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका का संवैधानिक जनादेश है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पास मौलिक और अन्य अधिकारों को लागू करने के लिए कार्रवाई करने की शक्ति है। यह निवारण तंत्र अनुच्छेद 32 और 226 के तहत प्रदान किया गया है।


4. धर्मनिरपेक्षता क्या है?

संविधान के 42वें संशोधन ने प्रस्तावना में यह अभिकथन किया है की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है सभी धर्मों को समान सम्मान देना और सभी धर्मों की समान तरीके से रक्षा करना।


5. प्रस्तावना क्या है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसमें कहा गया है कि भारत के लोग अपने नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुरक्षित करने का संकल्प लेते हैं।


6. क्या संविधान में संशोधन किया जा सकता है?

हां, भारत के संविधान में संशोधन किया जा सकता है। इसे या तो संसद के साधारण बहुमत से, या संसद के विशिष्ट बहुमत से, या संसद के विशिष्ट बहुमत से और आधे राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन द्वारा संशोधित किया जा सकता है।


7. क्या भारतीय संविधान किसी अन्य देश के संविधान के समान है?

भारत के संविधान में विभिन्न राष्ट्रों के संविधानों से कई विशेषताएं अपनायी हैं और आज हमारे पास भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला गया है। अन्य देशों के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड के संविधानों से विशेषताओं को उधार लिया गया है।



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