पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी के नियम
February 12, 2020एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा
विषयसूची
पावर ऑफ़ अटॉर्नी जिसे मुख्तारनामा या अधिकार पत्र के नाम से भी जाना जाता है, इसका सामान्य सा अर्थ यह होता है, कि यदि कोई आदमी विदेश में रह रहा है, और उसकी कोई अचल संपत्ति भारत में है, या किसी संपत्ति का मालिक इस स्तिथि में नहीं है, कि वह अपनी संपत्ति से जुड़े किसी मामले के लिए इधर से उधर सफर कर सके, और वह व्यक्ति अपनी उस संपत्ति को वहां से बेचना चाहता है, तो उस संपत्ति को बेचने के लिए उस व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को जो भारत में रहता हो, उसे पावर ऑफ अटॉर्नी बनाना होगा, जो कि उस व्यक्ति के नाम पर उस संपत्ति को बेच सके।
पावर ऑफ़ अटॉर्नी या अटॉर्नी का पत्र निजी मामलों में व्यवसाय या किसी दूसरे कानूनी मामले में किसी अन्य की ओर से प्रतिनिधित्व या कार्य करने के लिए एक लिखित अनुमति होती है। जिस व्यक्ति को प्रतिनिधि घोषित किया जाता है, उसको एजेंट कहा जाता है, और जो व्यक्ति प्रतिनिधि घोषित करता है, उसको प्रिंसिपल कहा जाता है। यह पावर ऑफ़ अटॉर्नी एक कानूनी दस्तावेज होता है।
एजेंट, प्रिंसिपल के बदले उनके सभी कानूनी वित्तीय लेनदेन के साथ दूसरे कार्यों के लिए भी फैसले ले सकता है। वह प्रिंसिपल के बदले कोई काम भी कर सकता है। और यह सभी फैसले कानूनी रूप से मान्य होते हैं। और उस एजेंट का पेशे से वकील होना ही जरूरी नहीं है। लेकिन एजेंट पावर ऑफ अटॉर्नी के दायरे से बाहर नहीं जा सकता है। अगर उसके फैसले से प्रिंसिपल को कोई नुकसान होता है। तो एजेंट को उसका नुकसान भरना पड़ता है। पावर ऑफ अटॉर्नी किसी अचल संपत्ति के मालिकाना हक को ट्रांसफर करने के लिए तैयार की जाती है। रजिस्ट्री के समय पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल आमतौर पर उस स्थिति में किया जाता है। जब प्रॉपर्टी का मालिक बीमारी या किसी दूसरी वजह से न्यायालय में नहीं जा सकता हो, जबकि वह अपने अहम फैसले लेने में सक्षम हो लेकिन वह मानसिक रुप से सेहतमंद होना भी बहुत जरूरी है।
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पावर ऑफ़ अटॉर्नी कितने प्रकार की होती है
पावर ऑफ अटॉर्नी काम के उद्देश्य से मुख्यतः दो तरह की होती हैं-
1. जनरल पावर ऑफ़ अटॉर्नी
जब पावर ऑफ़ अटॉर्नी का प्रिंसिपल एक से अधिक कार्य करने का अधिकार अपने अटॉर्नी को देता है, तो उसे जनरल पावर ऑफ़ अटॉर्नी कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई प्रिंसिपल अपने अटॉर्नी को अपनी अचल संपत्ति के मालगुजारी भुगतान करने, खेती करने ,खेत की देखभाल करने, फसल की बिक्री करने, सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि बिक्री आदि के लिए ग्राहक की खोज करने या और अन्य कई दायित्व सौंपता है, तो उसे जनरल पावर ऑफ़ अटॉर्नी कहते हैं।
2. स्पेशल पावर ऑफ़ अटॉर्नी
जब पावर ऑफ़ अटॉर्नी का प्रिंसिपल अपने अटॉर्नी को कोई विशेष कार्य करने का अधिकार देता है, तो उसे स्पेशल पावर ऑफ़ अटॉर्नी कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई प्रिंसिपल अपने अटॉर्नी को अपनी अचल संपत्ति का मालगुजारी, सरकार को भुगतान करने का अधिकार सौपता है, तो यह स्पेशल पावर ऑफ़ अटॉर्नी होती है। ऐसे मामले में अटॉर्नी केवल मालगुजारी ही अदा कर सकता है, तथा अन्य कोई कार्य नहीं कर सकता है।
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पावर ऑफ अटॉर्नी कब तक मान्य होती है
पावर ऑफ अटॉर्नी प्रिंसिपल या एजेंट की मौत के बाद वैद्य नहीं रहती है, उसके बाद यह अमान्य हो जाती है, यदि किसी दुर्घटना के कारण प्रिंसिपल साइन करने योग्य नहीं रहता है, तो पहले की गई पावर ऑफ अटॉर्नी की सीमा खत्म हो जाती है, और इसे अमान्य कर दिया जाता है, इसके अलावा प्रिंसिपल पहले की गई पावर ऑफ अटॉर्नी को खुद से ही कैंसिल भी कर सकता है। और काम पूरा होने के बाद स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी को खत्म कर दिया जाता है। इसे समय से पहले ही दोनों पक्षों की सहमति से भी खत्म किया जा सकता है।
पावर ऑफ अटॉर्नी का रजिस्ट्रेशन
आमतौर पर बहुत से लोग तो पावर ऑफ अटॉर्नी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराते हैं, क्योंकि वैसे तो यह जरूरी नहीं होता है, और अगर आप इसका रजिस्ट्रेशन करवा लेते हैं, तो इसका महत्त्व थोड़ा बढ़ जाता है। खास तौर पर यदि मामला किसी अचल संपत्ति से जुड़ा हुआ होता है, तो वहां पर पावर ऑफ अटॉर्नी का रजिस्ट्रेशन करा लेना चाहिए। लेकिन जिन जगहों पर रजिस्ट्रेशन अधिनियम लागू होता है, तो वहां पर सब रजिस्ट्रार के पास जाकर पावर ऑफ़ अटॉर्नी का रजिस्ट्रेशन करवा लेना चाहिए। बाकी जगह पर आप नोटरी के पास जाकर या किसी प्रशासनिक अधिकारी के पास जाकर भी पावर ऑफ़ अटॉर्नी का रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। इसके रजिस्ट्रेशन को करवाते समय आपके पास दो या दो से अधिक सबूतों का होना बहुत जरूरी है। रजिस्ट्रेशन होने के बाद प्रिंसिपल को निष्पादक और इसे पाने वाले को पावर ऑफ़ अटॉर्नी होल्डर कहा जाता है।
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भारत से बाहर पावर ऑफ अटॉर्नी कैसे बनाई जाती है
यदि कोई आदमी भारत से बाहर किसी दूसरे देश में रहता है, और हमारे देश भारत में उसकी कोई जमीन या जायदाद है, तो ऐसे व्यक्ति को खुद की उपस्तिथि न होने पर अपनी संपत्ति के साथ किसी भी प्रकार के क़ानूनी काम के लिए एक पावर ऑफ अटॉर्नी नियुक्त करना पड़ता है। भारत में किसी भी प्रॉपर्टी को डील करने के लिए विदेशों में भी पावर ऑफ अटॉर्नी को तैयार करके उसका रजिस्ट्रेशन करवाया जा सकता है। यदि पावर ऑफ अटॉर्नी का रजिस्ट्रेशन भारत से बाहर कराया गया है। तो उन कागजात को भारत में आने के 3 महीने के अंदर सम्बंधित जिला अधिकारी से मान्यता दिलाना बहुत जरूरी होता है।
मान लीजिए अमेरिका में रहने वाला कोई आदमी अपनी पुरानी जमीन को बेचना चाहता है। लेकिन इसके लिए वह भारत नहीं आना चाहता है। इसके लिए वह अमेरिका में ही अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी को तैयार करके उसको पंजीकृत करा सकता है। विदेशों में पावर ऑफ अटॉर्नी स्टांप पेपर पर नहीं बल्कि सिंपल कागज पर तैयार करवाई जाती है। लेकिन इसको पंजीकृत कराना बहुत जरूरी होता है। भारत में इसको स्टांप पेपर पर ही तैयार किया जा सकता है। विदेशों में पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करने के लिए नोटरी या केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के पास जाना होता है।
ये गाइड कानूनी सलाह नहीं हैं, न ही एक वकील के लिए एक विकल्प
ये लेख सामान्य गाइड के रूप में स्वतंत्र रूप से प्रदान किए जाते हैं। हालांकि हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि ये मार्गदर्शिका उपयोगी हैं, हम कोई गारंटी नहीं देते हैं कि वे आपकी स्थिति के लिए सटीक या उपयुक्त हैं, या उनके उपयोग के कारण होने वाले किसी नुकसान के लिए कोई ज़िम्मेदारी लेते हैं। पहले अनुभवी कानूनी सलाह के बिना यहां प्रदान की गई जानकारी पर भरोसा न करें। यदि संदेह है, तो कृपया हमेशा एक वकील से परामर्श लें।