संपत्ति में बेटी का अधिकार

July 11, 2023
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


विषयसूची

  1. पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार
  2. एक दत्तक बेटी का अपने वर्तमान पिता की संपत्ति में अधिकार
  3. पैतृक संपत्ति में बेटी का अधिकार
  4. पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी का अधिकार

भारतीय कानून व्यवस्था में साल, 2005 में संशोधन होने के पहले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार एक व्यक्ति की संपत्ति में उसके बेटे और बेटियों के अधिकार अलग - अलग हुआ करते थे। इसमें बेटों को पिता की संपत्ति पर पूरा हक दिया जाता था, जबकि बेटियों का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार केवल उनकी शादी होने तक का ही होता था। बेटी के विवाह होने के बाद उसे उसके पिता के घर का हिस्सा नहीं माना जाता था, बल्कि विवाह होने के बाद वह अपने पति के घर का हिस्सा मानी जाती थी। बेटी के विवाह होने से पहले वह अपने पिता की संपत्ति पर अपना अधिकार दिखा सकती थी, और अपनी किसी भी जरुरत के लिए वह अपने पिता की अनुमति से उस संपत्ति को बेच भी सकती थी। हिन्दू कानून के मुताबिक हिन्दू गैर विभाजित परिवार (एच. यू. एफ.) जिसे जॉइंट फैमिली भी कहा जाता है, वे सभी लोग एक ही पूर्वज के वंशज होते हैं। एच. यू. एफ. हिन्दू, जैन, सिख या बौद्ध को मानने वाले लोग बना सकते हैं, क्योंकि जैन, सिख और बौद्ध लोग हिन्दू ही माने जाते हैं, और उनके निजी मामले भी हिन्दू कानून द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं।

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पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार

बर्ष, 2005 की 9 सितम्बर, को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन के बाद अब हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 के मुताबिक एक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी, अर्थात एक बेटी का भी अपने पिता की संपत्ति में उसके भाई के बराबर का अधिकार होगा। केवल यही नहीं, यदि कोई व्यक्ति चाहे उस लड़की के पिता हों या उसका भाई हो, उसे संपत्ति में अपना अधिकार देने के लिए वंचित करता है, या वंचित करने का प्रयास करता है, तो वह लड़की अपनी संपत्ति को पाने के लिए न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकती है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 में संसोधन होने के बाद अब बेटी को पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। 2005, के इस संशोधन के बाद बेटियों को भी वही अधिकार दिए गए हैं, जो पहले सिर्फ बेटों के पास थे।
 


एक दत्तक बेटी का अपने वर्तमान पिता की संपत्ति में अधिकार

यदि किसी व्यक्ति ने एक बच्ची को गोद लिया है, तो कानून के हिसाब से उस बच्ची की उम्र 15 बर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए, और न ही गोद लेने वाले माता - पिता की पहले से कोई संतान होनी चाहिए । गोद ली जाने वाली बेटी को अपने वर्तमान पिता की संपत्ति में उन माता - पिता की वास्तविक बेटी के बराबर ही अधिकार प्राप्त होता है। इसके आलावा वह बेटी चाहे भी तो अपने वास्तविक पिता की संपत्ति में अपना अधिकार नहीं दिखा सकती है, और न ही अपने वास्तविक पिता की संपत्ति को पाने के लिए न्यायालय में याचिका दायर कर सकती है, इसकी जगह वह केवल उसके वास्तविक पिता की इच्छा से उनसे कोई उपहार या गिफ्ट प्राप्त कर सकती है, उसके वास्तविक पिता अपनी मर्जी से एक वसीयत बनाकर भी उस बेटी को अपनी संपत्ति दे सकते हैं। यह केवल इसलिए होता है, क्योंकि उस बेटी का गोद लिए जाने के बाद अपने वर्तमान पिता की संपत्ति में अधिकार हो जाता है, और यह अधिकार उसे उस दिन प्राप्त होता है, जब उसे गोद लिया गया हो। एक दत्तक बेटी का गोद लिए जाने के पश्चात् सभी तरह के कामों के लिए गोद ली गयी बेटी के साथ दत्तक परिवार में जैविक बेटी की तरह ही व्यवहार किया जाता है, और उसकी शादी होने तक उस दत्तक बेटी को उसी परिवार का वंशज भी माना जाता है।

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पैतृक संपत्ति में बेटी का अधिकार

जब भी बेटी के अधिकार के लिए पैतृक संपत्ति की बात आती है, तो इसमें सबसे पहले यह समझना बहुत जरूरी है, कि एक व्यक्ति के सहदायिक यानी समान उत्तराधिकारी में कौन - कौन आता है। सहदायिक में परिवार का सबसे बुजुर्ग सदस्य और परिवार की तीन पीढ़ियां आती हैं। अगर उदहारण से इसे और सरलता से समझें तो सहदायिक में पहले बेटा, पिता, दादा और परदादा ही आते थे। लेकिन अब हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संसोधन होने के बाद परिवार की बेटी को भी चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, बेटे के सामान उत्तराधिकार दिया गया है। पैतृक संपत्ति पर परिवार के सभी वंशजों या उत्तराधिकारियों का सामान अधिकार होता है। भारत की सर्वोच्छ न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा था, कि एक बेटी का उसकी पैतृक संपत्ति पर पूरा मालिकाना हक है। वह अपनी मर्जी से इस संपत्ति को बेच भी सकती है, या किसी अन्य व्यक्ति के नाम कर सकती है। इस प्रकार हिंदू उत्तराधिकार संशोधित अधिनियम, 2005 के बाद यह तय हो चुका है, कि पिता की संपत्ति पर उनकी बेटी भी बेटे के समान ही अधिकार रखती है। और इसीलिए इस कानून की धारा 6 (5) में ये स्पष्ट रूप से लिखा गया है, कि इस कानून के लागू होने के पूर्व में हो चुके संपत्ति के बंटवारे इस कानून से अप्रभावित रहेंगे।
 


पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी का अधिकार

पिता द्वारा खुद की कमाई से अर्जित की गयी संपत्ति को लेकर बेटियों का पक्ष थोड़ा कमजोर है। यह पिता की मर्जी पर ही निर्भर करता है, कि वह अपनी बेटियों को हिस्सेदारी देना चाहता है, या नहीं। अगर वह हिस्सेदारी देना नहीं चाहता है, तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है, और न ही बेटी के पास कानूनी रूप से उस संपत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार है।

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कोई भी व्यक्ति स्वयं अर्जित की गयी संपत्ति को वसीयत द्वारा किसी को भी दे सकता है। इसके लिए यह जरूरी नहीं कि वह किसी परिवार के व्यक्ति के नाम ही वसीयत कर सकता है, वह किसी अन्य व्यक्ति को दान या उसके नाम वसीयत भी कर सकता है। मुस्लिम कानून के अनुसार अपनी एक तिहाई संपत्ति से अधिक की वसीयत नहीं की जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी वसीयत बनाये बिना मर जाता है, तो मरने वाला व्यक्ति जिस क्षेत्र में रहता है, उस राज्य में लागू कानून से ये तय किया जायेगा, कि उस व्यक्ति की संपत्ति का उसकी मौत के बाद किस प्रकार बंटवारा किया जायेगा। आमतौर पर बिना वसीयत के मरने वाले व्यक्ति की संपत्ति में उसके सभी उत्तराधिकारियों को सामान अधिकार दिया जाता है, इसका मतलब उस व्यक्ति की बेटी को भी अपने भाइयों के बराबर ही संपत्ति में सामान अधिकार दिया जायेगा।





ये गाइड कानूनी सलाह नहीं हैं, न ही एक वकील के लिए एक विकल्प
ये लेख सामान्य गाइड के रूप में स्वतंत्र रूप से प्रदान किए जाते हैं। हालांकि हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि ये मार्गदर्शिका उपयोगी हैं, हम कोई गारंटी नहीं देते हैं कि वे आपकी स्थिति के लिए सटीक या उपयुक्त हैं, या उनके उपयोग के कारण होने वाले किसी नुकसान के लिए कोई ज़िम्मेदारी लेते हैं। पहले अनुभवी कानूनी सलाह के बिना यहां प्रदान की गई जानकारी पर भरोसा न करें। यदि संदेह है, तो कृपया हमेशा एक वकील से परामर्श लें।

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