प्रॉपर्टी कैसे बांटी जाती है

July 12, 2019
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


विषयसूची

  1. पैतृक संपत्ति का बंटवारा
  2. पैतृक संपत्ति के बंटवारे के बारे में कुछ आवश्यक बातें
  3. आपसी सहमति से बंटवारा
  4. न्यायालय कि मदद से बंटवारा

आमतौर पर परिवार के लोगों में उनकी पैतृक संपत्ति का बंटवारा करने के ही मामले सामने आते हैं। अगर किसी संपत्ति का बंटवारा परिवार के लोगों के बीच करना हो, तो उसके लिए दस्तावेज के रूप में एक बंटवारानामा बनवाया जाता है। इस दस्तावेज की मदद से ही कानूनी तौर पर किसी संपत्ति के सभी उत्तराधिकारियों को उसमें अधिकार दिया जाता है, जिससे कि वे उस संपत्ति के मालिक बन सकते हैं। संपत्ति के बंटवारे में लागू होने वाले कानून के अनुसार संपत्ति के सभी सह - मालिकों को भी उनका हिस्सा दिया जाता है। बंटवारा होने के बाद संपत्ति के नए मालिक बन जाते हैं और उन सभी को उनके हिस्से की संपत्ति का स्वामित्व दे दिया जाता है।

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दूसरे शब्दों में कहें तो, यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सम्पूर्ण संपत्ति का मालिक अपने स्वामित्व का सरेंडर करता हैं, और वह अपने अधिकारों और संपत्ति से जुड़े सभी लाभों को अपने वंशज, अपने पुत्रों या अपने उत्तराधिकारियों में उनके हिस्से के आधार पर हस्तांतरित कर देता है। इसमें जिस व्यक्ति को जो हिस्सा दिया जाता है, वही उसका नया मालिक बन जाता है, और वह अपनी मर्जी से उस संपत्ति के साथ जो चाहे व्यवहार कर सकता है, यानी उसे बेचने, किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित, एक्सचेंज या गिफ्ट के तौर पर देने का या उस संपत्ति का उपयोग करके उससे लाभ प्राप्त करने का अधिकार उसी नए मालिक के पास आ जाता है।
 


पैतृक संपत्ति का बंटवारा

किसी भी पैतृक संपत्ति के बंटवारे के लिए सबसे पहले संपत्ति के मुख्य मालिक की संतानों की गिनती की जाती है, और उसी आधार पर उस संपत्ति का बंटवारा किया जा सकता है। भारतीय न्याय व्यवस्था में 9 सितम्बर, 2005, से पहले एक परिवार की पैतृक संपत्ति पर केवल परिवार के बेटों का ही अधिकार हो सकता था। किन्तु बर्ष 2005, में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनयम, 1956, में संसोधन होने के पश्चात् परिवार के बेटों के साथ - साथ बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में सामान अधिकार प्राप्त हो सकता है। संपत्ति का बंटवारा करने में यदि परिवार का कोई सदस्य किसी अन्य सदस्य को पैतृक संपत्ति के अधिकार से वंचित करने की कोशिश करता है, या उसे उस पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा न लेने के लिए किसी भी प्रकार का दबाव बनाता है, तो ऐसी स्तिथि में पीड़ित व्यक्ति न्यायालय में अपनी याचिका दायर कर सकता है।

आमतौर पर किसी भी पैतृक संपत्ति का बंटवारा मुख्यतः दो प्रकार से किया जाता है, जो कि निम्न हैं

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आपसी सहमति से बंटवारा

आपसी सहमति के मामले में किसी पैतृक संपत्ति में बंटवारा उस संपत्ति के सह - मालिकों के बीच होता है। इसमें दोनों पक्ष अपनी सोच बूझ से संपत्ति का बंटवारा आपसी सहमति से कर लेते हैं, किन्तु इस बंटवारे को क़ानूनी रूप से लागू करने के लिए बंटवारानामा को अपने क्षेत्र के सब - रजिस्ट्रार के दफ्तर में पंजीकृत कराना अनिवार्य होता है। किसी संपत्ति में एक से अधिक उत्तराधिकारी और मालिक भी हो सकते हैं, और उन सभी मालिकों के पास संपत्ति का उपयोग करने का समान या निश्चित प्रतिशत होता है।
किसी संपत्ति में जॉइंट ऑनरशिप या संयुक्त स्वामित्व का एक बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य उस संपत्ति का बिना विभाजित किया हुआ शेयर होता है। हालांकि संपत्ति में सभी सह - मालिक या तो एक समान होते हैं, या किसी निश्चित हिस्से के मालिक होते हैं। चूँकि ये बिना विभाजित किये हुए होते हैं, तो इनका संपत्ति की निश्चित सीमाओं के माध्यम से पता नहीं लगाया जा सकता, की यह हिस्सा किस मालिक का है।

लेकिन अगर कभी संपत्ति के सह - मालिक उस संपत्ति को लेकर एक मत नहीं होते हैं, या कभी उनमें किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न होता है, तो वे सभी लोग इस विवाद को निपटने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। न्यायालय से संपत्ति का बंटवारा उचित रूप से कर दिया जाता है, और प्रत्येक हिस्सेदार को उसके नाम पर संपत्ति अलग - अलग दे दी जाती है। बंटवारे के बाद स्टांप पेपर पर स्पष्ट तरीके से हर व्यक्ति का हिस्सा और बंटवारे की तारीख लिखी जानी चाहिए। यह नया बंटवारानामा भी सब - रजिस्ट्रार दफ्तर में पंजीकृत किया जाना चाहिए, ताकि बंटवारे को कानूनी रूप दिया जा सके।
 


न्यायालय कि मदद से बंटवारा

यदि किसी संपत्ति में उसके सभी हिस्सेदार बंटवारा करने में असमर्थ होते हैं, या उनमें किसी पारिवारिक विवाद के चलते आपसी बंटवारा नहीं हो सकता है, तो ऐसी स्तिथि में दोनों पक्ष न्यायालय में अपनी पैतृक संपत्ति के बंटवारे के लिए अपील करते हैं, फिर न्यायालय कुछ जांच पड़ताल करती है, जिसमें संपत्ति के विवाद के बारे में पता लगाया जाता है, और यदि न्यायालय को उचित लगता है, तो उस संपत्ति को उसके सभी हिस्सेदारों के नाम पर सामान रूप से या उनके संपत्ति में हिस्से के अनुसार हस्तांतरित कर दिया जाता है।

भारत में संपत्ति के बंटवारे को लेकर कई प्रकार के कानून प्रचलित हैं, यदि संपत्ति खेती करने योग्य भूमि है, तो उसके लिए चकबंदी जैसे कानून के अनुसार संपत्ति का बंटवारा कर दिया जाता है, जिसमें सभी हिस्सेदारों को इधर - उधर बिखरी भूमि को एक स्थान पर भूमि दी जाती है। यदि किसी मकान का बंटवारा करना होता है, तो मकान की उचित कीमत लगाकर उसका बंटवारा कर दिया जाता है।

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पैतृक संपत्ति के बंटवारे के बारे में कुछ आवश्यक बातें

  1. पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार पैदा होते ही मिल जाता है।

  2. अगर पैतृक संपत्ति को बेचा जाता है, या उसका बंटवारा किया जाता है, तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 2005, के अनुसार बेटियों को भी उसमें से हिस्सा दिया जायेगा।

  3. पैतृक संपत्ति बिना उत्तराधिकारियों की सलाह के बेची नहीं जा सकती। लेकिन उस पर न्यायालय में मुकदमा दायर किया जा सकता है।

  4. अगर किसी उत्तराधिकारी को हिस्सा देने से इनकार किया जाता है, तो वह न्यायालय में अपील कर सकता है।

  5. पैतृक संपत्ति उस संपत्ति को माना जाता है, जिसका हिन्दू जॉइंट फैमिली के सदस्यों के बीच बंटवारा नहीं हुआ है।

  6. एक बार पैतृक संपत्ति का बंटवारा होने के बाद हर उत्तराधिकारी को मिला हिस्सा उसकी खुद कमाई हुई संपत्ति बन जाता है।

  7. यदि कोई संपत्ति माँ के परिवार की तरफ से मिली है, तो वह संपत्ति पैतृक संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

  8. हिन्दू कानून के अनुसार गैर विभाजित परिवार के मुखिया के पास ही परिवार की संपत्ति को संभालने की जिम्मेदारी होगी। लेकिन जब बात मालिकाना हक और पैतृक संपत्ति पर अधिकारों की आती है, तो सभी उत्तराधिकारी को अपना - अपना हिस्सा दिया जायेगा।





ये गाइड कानूनी सलाह नहीं हैं, न ही एक वकील के लिए एक विकल्प
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