भारत में दहेज प्रतिषेध अधिनियम - धाराएं, सजा और बचाव
November 19, 2023एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा Read in English
विषयसूची
- दहेज (Dowry) क्या है?
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act), 1961
- भारत के दहेज़ से संबधित महतवपूर्ण आईपीसी सेक्शन
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961�के तहत�सजा और जुर्माना
- भारतीय दंड संहिता (IPC), 1980 मे दहेज संबंधित प्रावधान
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत दहेज से संबंधित धारा
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत दहेज से संबंधित धारा
- भारत में दहेज उत्पीड़न की शिकायत कैसे दर्ज करे?
- दहेज उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने के अन्य विकल्प
- दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग (झूठे�आरोप में फ़साना)
- दहेज के केस�में जमानत और झुठे मुक़दमे मे बचाव
- दहेज़ के मामले में विशेषज्ञ वकील की आवश्यकता क्यों है?
जिस तरह पानी मे विष घुल-मिल जाता है ठीक उसी तरह दहेज की परंपरा समाज मे घुल-मिल गयी है। यह अंगिनत शादीशुदा महिलाओं व उनके परिवारों के लिये यातना, उत्पीड़न और शोषण का मूल कारण बन गया है।
इस लेख में हम दहेज (Dowry) की कुप्रथा के लिये दंडित करने वाले कानून, विशेष रूप से 1961 के दहेज प्रतिषेध (पर रोक लगाने वाला) अधिनियम (Dowry Prohibition Act 1961), दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के बारे में आपको बताएँगे। इसके साथ में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की महत्वपूर्ण धाराओं के तहत दहेज क्या है, इससे संबंधित अपराध उनके लिये सजा, जुर्माना, जमानत और इसके झुठे मुक़दमे मे बचाव के उपाय के संबंध मे विस्तृत चर्चा करेंगे।
दहेज (Dowry) क्या है?
दहेज भारत में एक प्रथा है जहां दूल्हे का परिवार शादी होने पर दुल्हन के परिवार से पैसे या मूल्यवान वस्तुएं मांगता है। यह प्रथा लैंगिक असमानता को दर्शाती है, क्योंकि यह माना जाता है कि दूल्हा श्रेष्ठ है और दुल्हन से अपेक्षा करता है कि वह अपने नए परिवार द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए एक निश्चित राशि या संपत्ति प्रदान करे।
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दहेज प्रतिषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act), 1961
दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 वह कानून है जो दहेज लेने या देने की प्रथा पर रोक लगाता है। यह क़ानून विभिन्न संपत्ति, या विवाह के संबंध में धन को दहेज के रूप में मान्यता देकर दहेज की समझ को व्यापक बनाता है, भले ही यह माता-पिता या विवाह में शामिल किसी अन्य पक्ष द्वारा प्रदान किया गया हो।
यह अधिनियम इसके प्रावधान और दंड को मजबूत करने के उद्देश्य से कई संशोधनों के अधीन रहा है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम में संशोधन ने दहेज देने, प्राप्त करने या मांगने के साथ-साथ विवाह के संबंध में धन या संपत्ति के विज्ञापन प्रस्तावों के लिए विशिष्ट दंड भी स्थापित किया है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत सजा और जुर्माना
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धारा 3: दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की में दहेज लेने और देने पर कम से कम पांच साल की कैद और 15,000 रुपये या दहेज के मूल्य (जो भी अधिक हो) के जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
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धारा 4: विवाह मे दहेज की मांग करने के कृत्य को दंडित करती है। इसमें कम से कम छह महीने और अधिकतम पांच साल की सजा के साथ 15000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
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धारा 8: इसके अनुसार धारा 3 और धारा 4 के तहत अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय होंगे। उप-धारा (ए) उक्त अपराध करने से इनकार करने वाले व्यक्ति पर सबूत का भार डालकर इसे और अधिक मजबूत करती है।
भारतीय दंड संहिता (IPC), 1980 मे दहेज संबंधित प्रावधान
दहेज पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1980 मे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में भी संशोधन किया गया था। इन कानूनों को उनकी अप्रभावीता के कारण सुधारने के लिए 1983 और 1986 में संशोधनों में क्रमशः धारा 304(बी) और धारा 498(ए) जोड़ी गईं। इन आईपीसी धाराओं के बारे में हमने नीचे सरल भाषा में बताया है।
भारत के दहेज़ से संबधित महतवपूर्ण आईपीसी सेक्शन
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आईपीसी धारा 304 (बी) दहेज मृत्यु: यह अपराध दहेज उत्पीड़न से संबंधित क्षति, जलने या अप्राकृतिक परिस्थितियों के कारण शादी के सात साल के भीतर एक महिला की मृत्यु से संबंधित है। सज़ा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक है।
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आईपीसी धारा 498 (ए) महिला के प्रति क्रूरता: यह पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न से संबंधित है। इसमें शारीरिक और मानसिक शोषण के साथ-साथ दहेज मांगना भी शामिल है। इसके लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
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किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाना (आईपीसी धारा 306): धारा 306 आत्महत्या के लिए उकसाने को संबोधित करती है, जिसमें ऐसी स्थितियाँ भी शामिल हैं जहाँ एक महिला का पति और उसके रिश्तेदार उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं। यदि ऐसा शादी के सात साल के भीतर होता है, तो इसे दहेज से जुड़ा आत्महत्या के लिए उकसाना माना जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत दहेज से संबंधित धारा
भारत में दहेज देना या लेना गैरकानूनी है और इस अपराध की जांच के लिए विशिष्ट कानूनी प्रक्रियाएं हैं। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत दहेज से संबंधित प्रावधान निम्नलिखित है:
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पुलिस और मजिस्ट्रेट दहेज के मामले मे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 174 और 176 के तहत कार्यवाही करते हैं।
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यदि किसी व्यक्ति की शादी के सात साल के भीतर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है, तो पुलिस के लिए शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजना अनिवार्य है।
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इसके अतिरिक्त, कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के पास ऐसी मौतों की जांच करने का अधिकार है, खासकर जब उनमें महिलाएं शामिल हों।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत दहेज से संबंधित धारा
महिलाओं को दहेज संबंधी समस्याओं से बचाने के लिए, 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया था जो की निम्नलिखित है:
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धारा 113 (बी) को जोड़ने से स्पष्ट होता है कि दहेज के लिए किसी के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगने पर किसे अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी।
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इस नियम के अनुसार, इन दुर्व्यवहार की घटनाओं को दहेज से संबंधित माने जाने के लिए पीड़िता की मृत्यु से ठीक पहले घटित होना चाहिए।
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महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी मृत्यु को दहेज मृत्यु तभी कहा जाता है जब वह शादी के सात साल के भीतर होती है।
भारत में दहेज उत्पीड़न की शिकायत कैसे दर्ज करे?
यह समझना महत्वपूर्ण है कि यदि कोई महिला भारत में दहेज उत्पीड़न से जूझ रही है तो शिकायत कैसे दर्ज करे:
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शिकायत दर्ज करें - स्थानीय पुलिस स्टेशन पर जाएं, जिसका अधिकार क्षेत्र उस क्षेत्र पर है जहां उत्पीड़न हुआ था या जहां आप वर्तमान में रहते हैं। दहेज की मांग को लेकर पति और ससुराल वालों द्वारा की जाने वाली यातनाओं की शिकायत यहां की जा सकेगी।
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एफआईआर दर्ज करें - पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी चाहिए और जांच शुरू करनी चाहिए, वह आपको कहीं और पुनर्निर्देशित नहीं कर सकते।
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साक्ष्य प्रदान करें - उत्पीड़न या दहेज की मांग से संबंधित सभी सहायक दस्तावेज या साक्ष्य जमा करें, और उन्हें अपनी शिकायत में शामिल करें। इससे आपका केस मजबूत हो सकता है।
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कॉपी मांगें - कानूनी प्रक्रिया के लिए शिकायतकर्ता को एफआईआर की कॉपी मांगनी होगी।
दहेज उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने के अन्य विकल्प
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दहेज प्रतिषेध अधिकारी से शिकायत करें: अपने जिले के दहेज निषेध अधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
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महिला हेल्पलाइन नंबर: महिलाएं "1091" जैसे हेल्पलाइन नंबर का उपयोग कर सकती हैं या "181" पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। ये हेल्पलाइन दहेज उत्पीड़न सहित विभिन्न समस्याओं का सामना करने वाली महिलाओं की मदद के लिए समर्पित हैं।
दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग (झूठे आरोप में फ़साना)
पतियों को अपने वश में करने के लिए दहेज विरोधी कानूनों का दुरुपयोग व्यापक हो गया है। इस दुरुपयोग ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय को इसे 'कानूनी आतंकवाद' के रूप में वर्णित करने के लिए प्रेरित किया है।
पतियों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने के कुछ प्रमुख कारण:
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एक कठिन विवाह से बचना।
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ब्लैकमेल कर पति पर पैसे देने का दबाव बनाना।
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पूर्व प्रेमी के साथ फिर से जुड़ने या विवाह करने के लिए पति को झूठा फंसाना।
हालाँकि, यह कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे कृत्य दंडनीय हैं। दहेज के झूठे मामलों के लिए सजा आईपीसी की धारा 211 के तहत मिल सकती है, जो बिना किसी वैध कारण के, दुर्भावनापूर्ण इरादों से किसी पर अपराध का गलत आरोप लगाने के गैरकानूनी कृत्य पर रोक लगाती है। इस अपराध के लिए दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडनीय है।
दहेज के केस में जमानत और झुठे मुक़दमे मे बचाव
दहेज के संबंधित अपराध संज्ञेय एवं गैर-जमानती होते है जिनमे जमानत मिलने की संभावना ना के बराबर ही होती जो की चिंतन का विषय है इस परिस्थिति में आपकी सहायता सिर्फ एक अनुभवी अपराधिक वकील ही कर सकता जो की कानूनी दाव-पैंचो से भली-भांति परिचित हो और न्यायालय के समक्ष आप का पक्ष मजबूती से रख सके।
दहेज़ के मामले में विशेषज्ञ वकील की आवश्यकता क्यों है?
भारत में दहेज से संबंधित मामलों से निपटते समय, जटिल कानूनों और संभावित परिणामों के कारण कानूनी मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है। एक विशेषज्ञ आपको इन कानूनों को समझने, प्रक्रियाओं को समझने और आपके अधिकारों की सुरक्षा करने में मदद कर सकता है।
लॉराटो निःशुल्क कानूनी सलाह सेवा प्रदान करता है, जो आपको दहेज मामलों में विशेषज्ञता वाले अनुभवी वकीलों से जोड़ती है। अपने अधिकारों की रक्षा और अपनी कानूनी चिंताओं को हल करने के लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्राप्त करें।
ये गाइड कानूनी सलाह नहीं हैं, न ही एक वकील के लिए एक विकल्प
ये लेख सामान्य गाइड के रूप में स्वतंत्र रूप से प्रदान किए जाते हैं। हालांकि हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि ये मार्गदर्शिका उपयोगी हैं, हम कोई गारंटी नहीं देते हैं कि वे आपकी स्थिति के लिए सटीक या उपयुक्त हैं, या उनके उपयोग के कारण होने वाले किसी नुकसान के लिए कोई ज़िम्मेदारी लेते हैं। पहले अनुभवी कानूनी सलाह के बिना यहां प्रदान की गई जानकारी पर भरोसा न करें। यदि संदेह है, तो कृपया हमेशा एक वकील से परामर्श लें।