आपसी-सहमती से तलाक (Mutual Divorce) क्या है? नियम, प्रारूप आवेदन प्रक्रिया

March 16, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा
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विषयसूची

  1. आपसी सहमति से तलाक क्या है? (Divorce With Mutual Consent)
  2. आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया - Mutual Divorce Process in Hindi
  3. भारत में विभिन्न धर्मों के तहत तलाक कानून
  4. तलाक के लिए कहां आवेदन करना चाहिए?
  5. आपसी सहमति से तलाक के लिए आवश्यक नियम
  6. आपसी सहमति से तलाक के लिए कौन से दस्तावेज़ आवश्यक हैं?
  7. आपसी सहमति से तलाक के नए नियम
  8. क्या इस 6 से 18 महीने के "कूलिंग पीरियड" को माफ किया जा सकता है?
  9. आपसी सहमति से तलाक का लाभ
  10. एनआरआई को आपसी सहमति से तलाक कैसे मिल सकता है?
  11. यदि आपसी-सहमति से तलाक के लिए सहमति बल या जबरदस्ती से प्राप्त की गई हो?

तलाक एक ऐसी प्रक्रिया है जो कानूनी रूप से विवाह समाप्त करती है, यह कई प्रकार के होते है। आपसी-सहमति से तलाक विवाह को समाप्त करने का सबसे आसान तरीका है इस लेख मे हम आपसी सहमती से तलाक क्या है (Mutual Divorce in Hindi), आपसी सहमति से तलाक का प्रारूप, आवेदन प्रक्रिया, आवश्यक दस्तावेज़, तलाक के नए नियम आदि महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करेंगे।


आपसी सहमति से तलाक क्या है? (Divorce With Mutual Consent)

आपसी सहमति से तलाक तब होता है जब दोनों पति-पत्नी एकमत हो शादी को समाप्त करने के लिए सहमत होते हैं। इस तरह के तलाक में, दोनों पक्ष चाइल्ड कस्टडी, संयुक्त-संपत्ति का विभाजन, रखरखाव आदि प्रमुख मुद्दों पर सहमत होते हैं।

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तलाक के लिए कहां आवेदन करना चाहिए?

पक्षकारों को उस शहर के परिवार न्यायालय में तलाक आवेदन करने की आवश्यकता होती है जहां:

  1. दोनों पक्ष एक साथ रहे थे।

  2. जहां पर विवाह हुआ हो या जहां वैवाहिक प्रक्रिया सम्पन्न हुई हो ।

  3. जहां पर पत्नी वर्तमान मे रह रही हो या महिला का वर्तमान मे निवास स्थान।


आपसी सहमति से तलाक के लिए आवश्यक नियम

भारत में आपसी सहमति से तलाक हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 द्वारा शासित होता है। आपसी सहमती से तलाक के लिए दोनों अधिनियमों मे समान प्रावधान हैं जिनके निम्नलिखित आवश्यक नियम है:

  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी और विशेष विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत विवाह के एक साल बाद ही आपसी सहमति से तलाक की मांग की जा सकती है।
  • दोनों पक्षों को तलाक के लिए पारस्परिक रूप से सहमत होना होगा, और यह स्थापित करना होगा कि याचिका दायर करने से पहले वे कम से कम एक वर्ष से अलग रह रहे हैं।
  • यदि न्यायालय आश्वस्त हो कि दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है तो छह महीने की पुनर्विचार अवधि (cooling-off period) की छूट दे सकता है।
  • न्यायालय गुजारा भत्ता, बच्चे की कस्टडी और संपत्ति के बंटवारे जैसे मुद्दों के संबंध में दोनों पक्षों द्वारा किए गए समझौते की शर्तों पर भी विचार करेगी।
  • यदि पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में असमर्थ हैं, तो न्यायालय आपसी सहमति से समाधान की सुविधा के लिए मध्यस्थता का आदेश दे सकती है।
  • आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया आम तौर पर विवादास्पद तलाक की तुलना में तेज और कम विरोधात्मक होती है, और इसे कुछ महीनों में पूरा किया जा सकता है।

आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया - Mutual Divorce Process in Hindi

भारत में आपसी-सहमति से तलाक की प्रक्रिया आम तौर पर याचिका दायर करने से शुरू होती है, जिस में दो प्रस्ताव शामिल होते हैं। इसके महत्वपूर्ण चरण निम्नलिखित हैं:

  • संयुक्त याचिका दायर करना: पहला चरण संबंधित परिवार न्यायालय में एक संयुक्त याचिका दायर करना है। इस संयुक्त याचिका पर दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं। तलाक की याचिका में दोनों पक्षकारों का एक संयुक्त बयान होता है कि उनके असंगत मतभेदों के कारण, वे अब एक साथ नहीं रह सकते हैं और उन्हें तलाक दिया जाना चाहिए। इस कथन में संपत्ति के बंटवारे, बच्चों की कस्टडी आदि का समझौता भी है।
  • न्यायालय में दोनों पक्षों की उपस्थिति: याचिका दायर करने के लिए दोनों पक्षों की अपने वकील के साथ परिवार न्यायालय में उपस्थिति अनिवार्य होती हैं।
  • न्यायालय द्वारा याचिका की समीक्षा: न्यायालय पक्षकारों द्वारा दायर याचिका और दस्तावेजों की जांच करने के बाद दोनों पक्षों के बयान दर्ज करने का आदेश देता है।
  • न्यायालय द्वारा मध्यस्थता: कुछ मामलों में, न्यायालय मध्यस्थता कराने का प्रयास करता है, जब दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोई गुंजाइश नहीं होती, तो तलाक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है।
  • बयान दर्ज करना और प्रथम प्रस्ताव पर आदेश पारित करना: पक्षकारों के बयान दर्ज किए जाने के बाद, न्यायालय द्वारा पहले प्रस्ताव पर एक आदेश पारित किया जाता है।
  • न्यायालय द्वारा पुनर्विचार के लिए 6 महीने का समय: इसके बाद न्यायालय द्वारा पक्षकारों को तलाक पर पुनर्विचार के लिए 6 महीने का समय दीया जाता है, जिसके बाद दूसरा प्रस्ताव दाखिल करना होता है।
  • दूसरे प्रस्ताव के लिए उपस्थित होना: पहले प्रस्ताव के 6 महीने के बाद या सुलह अवधि के अंत तक, यदि दोनों पक्ष साथ रहने के लिए सहमत नहीं होते हैं, तो वह दूसरे प्रस्ताव के लिए न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो सकते हैं। यदि 18 महीने की अवधि के भीतर दूसरा प्रस्ताव दाखिल नहीं किया जाता है, तो न्यायालय तलाक की डिक्री पारित नहीं करता है।
  • तलाक की डिक्री: मामले के तथ्य, परिस्थितियों और दोनों पक्ष के बयानों के आधार पर, न्यायालय तलाक की डिक्री पारित कर देती है।

आपसी सहमति से तलाक के लिए कौन से दस्तावेज़ आवश्यक हैं?

आपसी सहमति से तलाक के लिए निम्नलिखित दस्तावेजों की आवश्यकता होगी:

  • पति का निवास प्रमाण-पत्र
  • पत्नी का निवास प्रमाण-पत्र
  • पति-पत्नी के पेशे और वर्तमान कमाई का विवरण
  • विवाह का प्रमाण पत्र
  • पारिवारिक पृष्ठभूमि की जानकारी
  • विवाह की तस्वीरें और निमंत्रण-पत्र
  • यह साबित करने के लिए साक्ष्य कि पति और पत्नी एक वर्ष से अधिक समय से अलग रह रहे हैं
  • सुलह के असफल प्रयासों को साबित करने वाले साक्ष्य
  • आयकर विवरण
  • पक्षकारों की संपत्ति का विवरण

विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर कुछ अन्य दस्तावेजों की भी आवश्यकता हो सकती है। क्या यह ऐसा मामला हो सकता है जहां आपके पास सभी आवश्यक दस्तावेज़ हों?


आपसी सहमति से तलाक के नए नियम

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13ख (2) के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक के मामलों में, न्यायालय ने विवाह बचाने के उद्देश्य से तलाक पर पुनर्विचार करने के लिए 6 महीने की समय-अवधि अनिवार्य कर दी है इसे सुलह-अवधी या पुनर्विचार अवधी (cooling-off period) भी कहाँ जाता है। इस अवधी के समाप्त होने पर, कोई भी पक्ष आपसी तलाक के लिए अपनी सहमति वापस लेने का निर्णय ले सकता है।

2024 के नए तलाक नियमों के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक के लिए यह सुलह-अवधी या पुनर्विचार अवधी (cooling-off period) अब अनिवार्य नही है यदि पति-पत्नी सहमत हों तो न्यायालय अपने विवेक अनुसार इसके बिना ही तलाक दे सकता है, जिससे आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया में तेजी आएगी।

क्या इस 6 से 18 महीने के "कूलिंग पीरियड" को माफ किया जा सकता है?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2017 में माना है कि इस अवधि को 4 विशिष्ट शर्तों के तहत यदि तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर यह न्यायालय द्वारा उचित समझा जाता है, तब छूट दी जा सकती है। इसके लिए धारा 13ख(2) के तहत दूसरी प्रस्ताव के लिए याचिका के साथ एक अतिरिक्त आवेदन दाखिल करना होगा जो सूचीबद्ध करेगा कि आपके मामले में कूलिंग अवधि क्यों लागू नहीं है।


भारत में विभिन्न धर्मों के तहत तलाक कानून

  1. मुस्लिम कानून के तहत आपसी सहमती से तलाक: मुस्लिम कानून के तहत, तलाक की दो श्रेणियां हैं- “न्यायिक” (Judicial) और “गेर-न्यायिक”(Non-Judicial)। मुस्लिम कानून के तहत आपसी सहमति से तलाक गेर-न्यायिक श्रेणी में आता है। आपसी सहमति से तलाक दो प्रकार के होते हैं जिन्हें 'खुला' और 'मुबारत' कहा जाता है। इन दोनों प्रकार के आपसी सहमति से तलाक के तहत, महिला को अपनी 'मेहर' या कुछ अन्य संपत्ति छोड़नी होती है।
  2. ईसाई (Christian) कानून के तहत आपसी सहमति से तलाक: भारत में ईसाइयों के लिए आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान विवाह विच्छेद अधिनियम,1869 (Divorce Act 1869) है। अधिनियम की धारा 10क आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान देती है।
  3. पारसी कानून के तहत आपसी सहमति से तलाक: भारत में पारसियों के लिए विवाह और तलाक के प्रावधान पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम,1936 में दिए गए हैं। धारा 32ख के तहत आपसी सहमति से तलाक दिया जाता है। इसमें कहा गया है कि पति और पत्नी दोनों एक साथ इस आधार पर आपसी तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और वे एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं।

आपसी सहमति से तलाक का लाभ

आपसी सहमति से तलाक लेना अनावश्यक झगड़े की संभावनाओं से पड़े है एवं काफ़ी समय और पेसा बचाता है। तलाक के लिए आवेदन की जा रही बढ़ती संख्या के साथ, पारस्परिक सहमति तलाक सबसे अच्छा विकल्प है।

आपसी सहमति से तलाक के लिए दोनो पक्ष की न्यायालय मे उपस्थिति आवश्यक है?

ज्यादातर मामलों में, पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना आवश्यक है। केवल दुर्लभ मामलों में, कैमरे की कार्यवाही की अनुमति दी जा सकती है जहां न्यायालय को आश्वस्त किया जाता है कि पक्षकार की उपस्थिति को सभी संभावित माध्यमों द्वारा व्यवस्थित नहीं किया जा सकता है और उसके बाद यह पूरी तरह से न्यायालय के विवेक पर निर्भर है।


एनआरआई को आपसी सहमति से तलाक कैसे मिल सकता है?

एनआरआई दंपत्ति के तलाक के मामले में, वर्तमान में जिस देश मे दोनों पक्ष रहते हैं उस देश में वहाँ के कानूनों के तहत तलाक याचिका दायर कर सकते हैं। यदि भारत में तलाक याचिका दायर की जाती है, जहां एक पक्ष विदेश में रह रहा है तो अदालत कैमरा कार्यवाही की अनुमति दे सकती है।


यदि आपसी-सहमति से तलाक के लिए सहमति बल या जबरदस्ती से प्राप्त की गई हो?

यदि आपसी-सहमति से तलाक के लिए सहमति बल या जबरदस्ती के माध्यम से प्राप्त की जाती है, तो न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह जांच करे कि क्या सहमति को क्रूरतापूर्वक प्राप्त तो नहीं किया गया है। न्यायालय यह निर्धारित करने में विफल रहती है कि सहमति स्वतंत्र रूप से दी गई है या नहीं, तो तलाक के आदेश को आपसी सहमति के आदेश के रूप में नहीं माना जा सकता है। पीड़ित पक्ष ऐसी डिक्री को रद्द करने के लिए अपील दायर कर सकता है।

दोस्तों आज आपने आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce ) के नियम, प्रारूप, आवेदन प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेज़ के बारे में जाना। आपसी तलाक से संबधित आम सवाल हमने नीचे दिए है।






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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


क्या आपसी सहमति से तलाक आदेश नोटरी के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है?

भारत में नोटरी के माध्यम से आपसी सहमति से तलाक नहीं दिया जा सकता है। तलाक का वैध आदेश केवल उचित अधिकार क्षेत्र की पारिवारिक न्यायालय द्वारा ही दिया जा सकता है।


क्या तलाक कानून भारत में विभिन्न धर्मों के लिए अलग है?

हां, विवाह कानूनों की तरह, विभिन्न धर्मों के लिए तलाक कानून भी अलग हैं। 


तलाक के मामले मे बच्चों की कस्टडी का फैसला कैसे किया जाता है?

आपसी सहमति के माध्यम से तलाक़ लेते हुए दोनों पक्ष को चाइल्ड कस्टडी के मुद्दे को सुलझाने की आवश्यकता है। पति/ पत्नी संयुक्त कस्टडी का चुनाव कर सकते हैं। 


आपसी सहमति से तलाक की डिक्री प्राप्त करने मे कितना समय लगता है?

तलाक दाखिल होने की तारीख से तलाक लेने तक पूरी प्रक्रिया लगभग छह महीने से एक वर्ष तक लग सकता है।


क्या होगा अगर एक पक्ष सहमत नहीं है?

ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब दंपति तलाक की शर्तों पर सहमत नहीं होते हैं और बदले में दूसरा पक्ष, जो तलाक के  लिए इच्छुक है उसके लिए परेशानी पैदा करता है 


आपसी सहमति से तलाक के मामले मे क्या एक ही वकील दोनो पक्षों का प्रतिनिधित्व न्यायालय मे कर सकता है?

हाँ कर सकता है।


तलाक के बिना पक्ष पुनर्विवाह कर सकते हैं?

पुनर्विवाह करने के लिए, तलाक लेना एक अनिवार्य शर्त है। यदि आप तलाक के बिना पुनर्विवाह करते हैं तो यह 7 साल के कारावास के साथ एक दंडनीय अपराध है।


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