आपसी सहमति के बिना तलाक के लिए क्या प्रक्रिया है
सवाल
उत्तर (1)
यदि आपका पति पारस्परिक तलाक के लिए तैयार नहीं है, तो आप हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) के तहत वर्णित
किसी भी आधार के तहत याचिका दायर कर सकते हैं। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत वर्णित भारत में तलाक के लिए निम्नलिखित कारण हैं: -
1. व्यभिचार - विवाह के बाहर संभोग सहित किसी भी प्रकार के यौन संबंधों में शामिल होने का कार्य व्यभिचार कहा जाता है। व्यभिचार एक आपराधिक अपराध के रूप में गिना जाता है और इसे स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत आवश्यक हैं। 1976 में कानून के एक संशोधन में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को तलाक लेने के लिए व्यभिचार का एक ही कार्य पर्याप्त है।
2. क्रूरता - किसी भी तरह की मानसिक और शारीरिक चोट जो जीवन, अंग और स्वास्थ्य के खतरे का कारण बन जाए, से विवश हो कर एक पति या पत्नी एक तलाक का मामला दर्ज कर सकता है। मानसिक यातनाओं के माध्यम से क्रूरता का अमूर्त कार्य के केवल एक कार्य से नहीं बल्कि घटनाओं की श्रृंखला से तय होता है। लेकिन कुछ उदाहरण हैं जैसे भोजन से वंचित किया जा रहा है, दहेज लेने के लिए निरंतर ग़लत बर्ताव और दुर्व्यवहार, विकृत यौन कृत्य आदि क्रूरता के अंतर्गत शामिल हैं।
3. परित्याग - यदि पति / पत्नी में से एक साथी दूसरे को कम से कम दो वर्ष की अवधि के लिए छोड़ जाता है, तो छोड़ दिया पति / पत्नी को परित्याग के आधार पर तलाक का मामले दर्ज कर सकता है।
4. धर्म परिवर्तन - यदि दोनों में से कोई एक साथी खुद को दूसरे धर्म में परिवर्तित कर लेता है, तो दूसरा साथी इस आधार पर तलाक का मामला दर्ज कर सकता हैं।
5. मानसिक विकार - मानसिक विकार तलाक दाखिल करने के लिए एक आधार बन सकता है अगर याचिकाकर्ता का साथी (पति / पत्नी) असाध्य मानसिक विकार और पागलपन से पीड़ित है और इसलिए इस जोड़े से एक साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
6. कुष्ठ रोग - किसी एक साथी (पति / पत्नी) को 'जहरीले और असाध्य' कुष्ठ रोग होने के स्थिति में, इस आधार पर अन्य साथी (पति / पत्नी) द्वारा याचिका दायर की जा सकती है।
7. यौन रोग - अगर एक साथी (पति / पत्नी) एक गंभीर संक्रामक बीमारी से पीड़ित है, तो दूसरे साथी (पति / पत्नी) द्वारा तलाक दायर किया जा सकता है। यौन संचारित रोग जैसे एड्स को यौनरोग कहा जाता है।
8. सांसारिक त्याग - यदि एक साथी (पति / पत्नी) कोई अन्य धर्म आदेश को ग्रहण करके सभी सांसारिक कार्यों को त्याग देता है, तो दूसरा साथी (पति / पत्नी) तलाक दायर करने का हकदार है।
9. जिंदा नहीं होना - यदि किसी व्यक्ति को सात साल की निरंतर अवधि के लिए किन्ही व्यक्तियों द्वारा जिन्हे उस व्यक्ति को 'स्वाभाविक रूप से' सुनाई या देखे जाने की उम्मीद की जाती है, उसे जीवित देखा या सुना नहीं जाता है, तो व्यक्ति को मृत माना जाता है। यदि दूसरा साथी ((पति / पत्नी) पुनर्विवाह में रुचि रखता है तो उसे तलाक दर्ज करना होगा।
10. सह-निवास का पुनरारंभ ना होना - अदालत द्वारा अलगाव की डिक्री पास होने के बाद यदि दंपति अपने सह-आवास को फिर से शुरू करने में विफल रहता है तो यह तलाक के लिए एक आधार बन जाता है।
यदि तलाक के लिए उपरोक्त कोई एक आधार स्थापित हो सकता है, तो आप एक सक्षम वकील के माध्यम से सम्बद्ध परिवार अदालत में तलाक याचिका के लिए आवेदन कर सकते हैं।
दूसरी तरफ, यदि आप और आपके पति / पत्नी दोनों आपस में सौहार्दपूर्ण आधार पर तलाक के लिए सहमत होते हैं और आप दोनों हिंदू हैं, तो आप हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत पारस्परिक तलाक को मान्यता देते हैं।
धारा 13 बी में कहा गया है कि दोनो पक्ष संयुक्त रूप से शादी के विघटन के लिए तलाक की डिक्री द्वारा एक याचिका जिला न्यायालय में इस आधार पर दायर कर सकते है, कि वे एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए अलग रह रहे हैं, वे एक साथ नहीं रह पाए और उन्होंने पारस्परिक रूप से सहमति जताई है कि शादी भंग होनी चाहिए।
न्यायालय दोनो पक्षों के संयुक्त वक्तव्य को दर्ज करेगा और अपने विवाद को हल करने के लिए दोनो को 6 महीने का समय देते हुए पहला प्रस्ताव पारित करेगा, हालांकि, यदि दोनो पक्ष निर्धारित समय के भीतर मुद्दों को हल करने में असमर्थ हैं, तो न्यायालय तलाक की एक डिक्री पारित कर देगा इसलिए, पारस्परिक सहमति से तलाक में 6-7 महीने लगते हैं
सामान्य नियम यह है कि पारस्परिक सहमति से तलाक दोनों पक्षों द्वारा संयुक्त रूप से भरा जाता है और उनके संयुक्त बयान अदालत में दर्ज किए जाते हैं, जो उनके वकील और परिवार जिला न्यायाधीश की उपस्थिति में हस्ताक्षरित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया को दो बार दोहराया जाता है, एक जब संयुक्त याचिका दायर की जाती है जिसे पहला प्रस्ताव भी कहा जाता है और दूसरा छह महीने बाद, जिसे दूसरा प्रस्ताव कहा जाता है।
इस प्रक्रिया के पूरा हो जाने के बाद, न्यायाधीश की सभी मुद्दों पर जैसे बच्चों(अगर कोई है) की अभिरक्षा, स्थायी भत्ता और रखरखाव, पत्नी के स्त्रीधन की वापसी और संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्तियों के निपटारे से संबंधित मुद्दों पर दोनो पक्षो की सहमति से संतुष्टि के बाद तलाक दिया जाता है।
तलाक के नियमों और शर्तों के संबंध में आपको अपनी पत्नी के साथ समझौता करार करना चाहिए। इस तरह की संपत्ति का वितरण जैसे कि स्त्रीधन आदि निर्दिष्ट करना चाहिए, तलाक के बाद आपके द्वारा भुगतान की जाने वाली रख-रखाव / भत्ता, राशि एक पूर्ण और अंतिम भुगतान होगी और किसी पक्ष को दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई अन्य अधिकार नहीं होगा। और इस समझौते पर दो गवाहों के हस्ताक्षर प्राप्त करें।
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अनुवादित किया गया मूल उत्तर यहां पढ़ा जा सकता है।
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