धारा 197 -दण्ड प्रक्रिया संहिता (Section 197 Crpc in Hindi - Dand Prakriya Sanhita Dhara 197)


विवरण

(1) जब किसी व्यक्ति पर, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या ऐसा लोक सेवक है या था जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही उसके पद से हटाया जा सकता है, अन्यथा नहीं, किसी ऐसे अपराध का अभियोग है जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था जब उसका कार्य करना तात्पर्यित था, तब कोई भी न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान -

(क) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो संघ के कार्यकलाप के संबंध में, यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था, केंद्रीय सरकार की,

(ख) ऐसे व्यक्ति की दशा में किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में, यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था, उस राज्य सरकार की, पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नही।

परंतु जहां अभिकथित अपराध खण्ड (ख) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा उस अवधि के दौरान किया गया था जब राज्य संविधान के अनुच्छेद के खंड (1) के अधीन की गई उदघोषणा प्रवृत थी, वहां खंड (ख) इस प्रकार लागू होगा मानो उसमें आने वाले ‘राज्य सरकार’ पद के स्थान पर ‘केंद्रीय सरकार’ पद रख दिया गया है।

स्पष्टीकरण - शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि ऐसे किसी लोक सेवक की दशा में, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उसने भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 166क, धारा 166ख, धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 370, धारा 375, धारा 376, धारा 376क, धारा 376ग, धारा 376घ या धारा 509 के अधीन कोई अपराध किया है, कोई पूर्व अपेक्षित नहीं होगी।

(2) कोई भी न्यायालय संघ के सशस्त्र बल के किसी सदस्य द्वारा किए गए किसी अपराध का संज्ञान, जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था, जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं।

(3) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकती है कि उसमें यथा विनिर्दिष्ट बल के ऐसे वर्ग या प्रवर्ग के सदस्यों को जिन्हें लोक व्यवस्था बनाए रखने का कार्य-भार सौंपा गया है, जहां कहीं भी वे सेवा कर रहे हो, उपधारा (2) के उपबंध लागू होंगे और तब उस उपधारा के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानो उसमें आने वाले ‘केंद्रीय सरकार’ पद के स्थान पर ‘राज्य सरकार’ पद रख दिया गया है।

(3क) उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी, कोई भी न्यायालय ऐसे बलों के किसी सदस्य द्वारा, जिसे राज्य में लोक व्यवस्था बनाए रखने का कार्य-भार सौंपा गया है, किए गए किसी ऐसे अपराध का संज्ञान, जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह, उस राज्य में संविधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उदघोषणा के प्रवृत रहने के दौरान, अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं।

(3ख) इस संहिता में या किसी अन्य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, यह घोषित किया जाता है कि 20 अगस्त, 1991 को प्रांरभ होने वाली और दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1991 (1991 का 43), पर राष्ट्रपति जिस तारीख को अनुमति देते हैं उस तारीख की ठीक पूर्ववर्ती तारीख को समाप्त होने वाली अवधि के दौरान, ऐसे किसी अपराध के संबंध में जिसका उस अवधि के दौरान किया जाना अभिकथित है जब संविधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उदघोषणा राज्य में प्रवृत थी, राज्य सरकार द्वारा दी गई कोई मंजूरी पर किसी न्यायालय द्वारा किया गया कोई संज्ञान अविधिमान्य होगा और ऐसे विषय में केंद्रीय सरकार मंजूरी प्रदान करने के लिए सक्षम होगी तथा न्यायालय उसका संज्ञान करने के लिए सक्षम होगा।

(4) यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार उस व्यक्ति का जिसके द्वारा और उस रीति का जिससे वह अपराध या वे अपराध, जिसके या जिनके लिए ऐसे न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोक सेवक का अभियोजन किया जाना है, अवधारण कर सकती है और वह न्यायालय विनिर्दिष्ट कर सकती है जिसके समक्ष विचारण किया जाना है।


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