सवाल
क्या बड़े भाई की स्वयं अधिग्रहित संपत्ति में एक छोटा भाई हिस्से का दावा कर सकता है, अगर संपत्ति अधिग्रहण के समय छोटा भाई नाबालिग नहीं था?
उत्तर
भारत में एक व्यक्ति केवल और केवल अपने पिता की पैतृक संपत्ति या उनके द्वारा खुद कमाई हुई संपत्ति में अपना अधिकार प्राप्त करने के योग्य हो सकता है। किन्तु यदि वह पिता चाहे तो वह अपनी खुद कमाई हुई संपत्ति से अपने पुत्र को वंचित कर सकता है, लेकिन वह अपनी पैतृक संपत्ति से अपने पुत्र को वंचित नहीं कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपने भाई की खुद कमाई हुई सम्पत्ति में अपने हिस्से का दावा करता है, तो निश्चित ही वह अपना समय व्यर्थ कर रहा है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने भाई की खुद कमाई हुई संपत्ति में अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकता है, जब तक कि उस व्यक्ति के पास उसके भाई के द्वारा बनाई हुई कोई वसीयत न हो, या उसके भाई ने वह संपत्ति उस व्यक्ति को किसी प्रकार के उपहार में न दी हो।
क्या होती है स्वयं अधिग्रहित संपत्ति
आमतौर की सामान्य भाषा में किसी व्यक्ति की खुद की कमाई हुई राशि से खरीदी जाने वाली संपत्ति को ही स्वयं अधिग्रहित संपत्ति या स्वअर्जित संपत्ति कहते हैं। यदि एक व्यक्ति अपनी स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी भी व्यक्ति को बेच सकता है, या दान में दे सकता है, वह अपनी संपत्ति को किसी व्यक्ति को कुछ समय के लिए प्रयोग करने के लिए भी दे सकता है। कोई भी व्यक्ति स्वयं अर्जित की गयी संपत्ति को वसीयत द्वारा किसी को भी दे सकता है। इसके लिए यह जरूरी नहीं कि वह किसी परिवार के व्यक्ति के नाम ही वसीयत कर सकता है, वह किसी अन्य व्यक्ति को दान या उसके नाम वसीयत भी कर सकता है।
मुस्लिम कानून के अनुसार अपनी एक तिहाई संपत्ति से अधिक की वसीयत नहीं की जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी वसीयत बनाये बिना मर जाता है, तो मरने वाला व्यक्ति जिस क्षेत्र में रहता है, उस राज्य में लागू कानून से ये तय किया जायेगा, कि उस व्यक्ति की संपत्ति का उसकी मौत के बाद किस प्रकार बंटवारा किया जायेगा। आमतौर पर बिना वसीयत के मरने वाले व्यक्ति की संपत्ति में उसके सभी उत्तराधिकारियों को सामान अधिकार दिया जाता है, इसका मतलब उस व्यक्ति को और उसके सभी भाइयों को उनके पिता द्वारा कमाई हुई स्वअर्जित की हुई संपत्ति में उस व्यक्ति के सभी बच्चों को बिना किसी वसीयत के ही सामान अधिकार प्राप्त होगा।
अपने भाई की स्वअर्जित संपत्ति में अधिकार
क़ानूनी रूप से किसी व्यक्ति को अपने भाई की स्वअर्जित की हुई संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता है, एक व्यक्ति केवल और केवल अपने पिता की स्वअर्जित संपत्ति में ही अपना अधिकार प्राप्त कर सकता है, और वह भी केवल उसके पिता की मर्जी होने पर, अन्यथा एक व्यक्ति का अपने पिता की स्वअर्जित संपत्ति में किसी प्रकार का अधिकार नहीं होता है, वह केवल और केवल अपने पिता की दया पर ही उनके घर में रुक सकता है, और अपने पिता की स्वअर्जित सम्पत्ति का प्रयोग कर सकता है।
यदि एक व्यक्ति के दो पुत्र हैं, और वह व्यक्ति अपने दोनों पुत्रों को अपनी स्वअर्जित और पैतृक संपत्ति बराबर बराबर देने का फैसला करता है, तो ऐसी स्तिथि में उन पुत्रों को अपने पिता की संपत्ति में अधिकार प्राप्त हो सकता है, किन्तु यदि कोई भी भाई चाहे भी तो अपने भाई की संपत्ति में अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता है। इस बात से कोई भी मतलब नहीं होता है, कि संपत्ति के अधिग्रहण के समय एक भाई नाबालिग है, या नहीं। एक व्यक्ति अपने भाई कि संपत्ति में किसी भी प्रकार से अपने हिस्से का दावा नहीं कर सकता है, जब तक कि उसके भाई ने कोई वसीयत न की हो या वह संपत्ति अपने भाई को दान में न दी हो।
किसी संपत्ति से सम्बंधित मामले में एक वकील की आवश्यकता क्यों होती है?
भारत की न्यायालयों में अधिकांश मामले संपत्ति से ही जुड़े हुए होते है, संपत्ति से सम्बंधित कई प्रकार से मामले बन सकते हैं, जैसे बंटवारा, पंजीकरण, या संपत्ति पर कब्ज़ा होना और अपना हिस्सा प्राप्त करने के मामले। केवल एक वकील ही वह यन्त्र होता है, जिसके माध्यम से किसी भी प्रकार के संपत्ति से सम्बंधित मामलों जैसा कोई भी छोटा या बड़ा क़ानूनी कार्य बड़ी सरलता से किया जा सकता है, तथा एक वकील ही कम समय में और कम खर्चे में संपत्ति सम्बंधित मामलों का निपटारा उचित रूप से करवा सकता है। लेकिन इसके लिए यह ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक होता है, कि जिस वकील को हम अपनी संपत्ति से जुड़े हुए मामले का निपटारा कराने के लिए नियुक्त करने की सोच रहे हैं, वह अपने क्षेत्र में निपुण वकील हो, और वह पहले भी संपत्ति से जुड़े हुए मामलों से जूझ चुका हो, और वह इस तरह के मामलों से निपटने में पारंगत हो, जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।
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