धारा 406 420 506 के तहत क्या दंड हैं
सवाल
उत्तर (1)
धारा 406 भारतीय दंड संहिता - विश्वास का आपराधिक हनन
यदि कोई व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति को विश्वास / भरोसे पे संपत्ति दी है और उस दूसरे व्यक्ति ने उस संपत्ति का ग़लत इस्तेमाल किया / किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया / पहले व्यक्ति के माँगने पर नही लौटाया, तो वह विश्वास के आपराधिक हनन का दोषी होगा और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति (संपत्ति के मालिक जिसका विश्वास का भंग हुआ है) के द्वारा समझौता करने योग्य है।
धारा 420 भारतीय दंड संहिता - छल करना और बेईमानी से बहुमूल्य वस्तु / संपत्ति देने के लिए प्रेरित करना
जो कोई भी किसी व्यक्ति को धोखा दे और उसे बेईमानी से किसी भी व्यक्ति को कोई भी संपत्ति देने, या किसी बहुमूल्य वस्तु या उसके एक हिस्से को, या कोई भी हस्ताक्षरित या मुहरबंद दस्तावेज़ जो एक बहुमूल्य वस्तु में परिवर्तित होने में सक्षम है में परिवर्तन करने या बनाने या नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दंड के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति द्वारा समझौता करने योग्य है।
धारा 506 भारतीय दंड संहिता- आपराधिक धमकी के लिए सजा
जो कोई भी आपराधिक धमकी का अपराध करता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक दंड या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।
यदि धमकी मृत्यु या गंभीर चोट, आदि के लिए है - और यदि धमकी मौत या गंभीर चोट पहुंचाने, या आग से किसी संपत्ति का विनाश कारित करने के लिए, या मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध कारित करने के लिए, या सात वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध कारित करने के लिए, या किसी महिला पर अपवित्रता का आरोप लगाने के लिए हो, तो अपराधी को किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।यह संभावना है कि अगर दूसरा पक्ष दोषी ठहराया जाता है तो उसे लगभग 3 वर्ष (न्यूनतम) कारावास की सज़ा होगी। यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध पीड़ित व्यक्ति के द्वारा समझौता करने योग्य है।
धारा 406 में वकील की जरुरत क्यों होती है?
भारतीय दंड संहिता में धारा 406, 420 और 506 का अपराध एक बहुत ही संगीन अपराध है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। विश्वास के आपराधिक हनन जैसे बड़े मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो और धारा 406 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो, जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।
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अनुवादित किया गया मूल उत्तर यहां पढ़ा जा सकता है।
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- 279, 337, 338 आईपीसी केस में जिरह के दौरान अगर पीड़ित एक्सीडेंट करने वाले वाहन के नंबर एवम ड्राइवर का नाम नहीं बताता है तो ऐसी स्थिति में बचाव पक्ष कि ओर से जिरह में अनुसंधान अधिकारी से क्या क्या सवाल हो सकते है जिसका फायदा मुलजिम को मिल सके।
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- Sir mera naam Ashish Yadav hai main ladki hun meri umar 20 saal hai mere ghar wale meri jawar dasti Saadi kar rahe hai or mujhe mar rahe hai to main ghar chhod kar ja sakti hun kya mujhe aapni padhai karna hai aage ki or ye mujhe padne nhi de rahe mujhe marte hai mujhe jaan se marne ki dhamki dete hai mujhe in ke ghar par nhi rahana ab aap bataon main kaise aa sakti hun ghar se