धारा 2 -दण्ड प्रक्रिया संहिता (Section 2 Crpc in Hindi - Dand Prakriya Sanhita Dhara 2)


विवरण

(क) ‘जमानतीय अपराध’ से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया है या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा जमानतीय बताया गया है और ‘अजमानतीय अपराध’ से कोई अन्य अपरध अभिप्रेत है।

(ख) ‘आरोप’ के अन्तर्गत जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हो, आरोप का कोई भी शीर्ष है

(ग) ‘संज्ञेय अपराध’ से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और ‘संज्ञेय मामला’ से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमें, पुलिस अधिकारी प्रथम अनुसूची के या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि के अनुसार वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर सकता है

(घ) ‘परिवाद’ से इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा कार्रवाई किए जाने की दृष्टि से मौखिक या लिखित रूप में उससे किया गया यह अभिकथन अभिप्रेत है कि किसी व्यक्ति ने, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध किया है, किन्तु इसके अन्तर्गत पुलिस रिपोर्ट नहीं है

स्पष्टीकरण- ऐसे किसी मामले, में जो अन्वेषण के पश्चात किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट करता है, पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट परिवाद समझी जाएगी और वह पुलिस अधिकारी जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गई है, परिवादी समझा जाएगा।

(ङ) ‘उच्च न्यायालय’ से अभिप्रेत है-

(1) किसी राज्य के सम्बन्ध में, उस राज्य का उच्च न्यायालय

(2) किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के सम्बन्ध में जिस पर किसी राज्य के उच्च न्यायालय की अधिकारिता का विस्तार विधि द्वारा किया गया है वह उच्च न्यायालय

(3) किसी अन्य संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, भारत के उच्चतम न्यायालय से भिन्न, उस संघ राज्य क्षेत्र के लिए दाण्डिक अपील का सर्वोच्च न्यायालय,

(च) ‘भारत’ से वे राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है जिन पर इस संहिता का विस्तार है

(छ) ‘जांच’ से, अभिप्रेत है विचारण से भिन्न, ऐसी प्रत्येक जांच जो इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाए;

(ज) ‘अन्वेषण’ के अंतर्गत वे सब कार्यवाहियां है जो इस संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा या किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो मजिस्टेªट द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया गया है, साक्ष्य एकत्र करने के लिए की जाए,

(झ) ‘न्यायिक कार्यवाही’ के अंतर्गत कोई ऐसी कार्यवाही है जिसके अनुक्रम में साक्ष्य वैध रूप से शपथ पर लिया जाता है या लिया जा सकात है।


(ञ) किसी न्यायालय या मजिस्ट्रेट के सम्बन्ध में ‘स्थानीय अधिकारिता’ से वह स्थानीय क्षेत्र अभिप्रेत है जिसके भीतर ऐसा न्यायालय या मजिस्ट्रेट इस संहिता के अधीन अपनी सभी या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकता है और ऐसे स्थानीय क्षेत्र मे सम्पूर्ण राज्य या राज्य का कोई भाग समाविष्ट हो सकता है जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।

(ट) ‘महानगर क्षेत्र’ से वह क्षेत्र अभिप्रेत है जो धारा 8 के अधीन महानगर क्षेत्र घोषित किया गया है या घोषित समझा गया है।

(ठ) ‘असंज्ञेय अपराध’ से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और ‘असंज्ञेय मामला’ से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमें पुलिस अधिकारी को वारण्ट के बिना गिरफ्तारी करने का प्राधिकार नहीं होता है।

(ड) ‘अधिसूचना’ से राजपत्र में प्रकाशित अधिसचना अभिप्रेत है।

(ढ) ‘अपराध’ से कोई ऐसा कार्य या लोप अभिप्रेत है जो तत्समय प्रवृत किसी विधि द्वारा दण्डनीय बना दिया गया है और इसके अंतर्गत कोई ऐसा कार्य भी है जिसके बारे में पशु अतिार अधिनियम 1871 की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है


(ण) ‘पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी’ के अंतर्गत, जब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी थाने से अनुपस्थित हो या बीमारी या अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तब थाने में उपस्थित ऐसा पुलिस अधिकारी है, जो ऐसे अधिकारी से पंक्ति से ऊपर है, या जब राज्य सरकार ऐसा निदेश दे तब, इस प्रकार उपस्थित कोई अन्य पुलिस अधिकारी भी है।


(त) ‘स्थान’ के अंतर्गत गृह, भवन, तम्बू, यान और जलयान भी है।


(थ) किसी न्यायालय में किसी कार्यवाही के बारे में प्रयोग किए जाने पर ‘प्लीडर’ से, ऐसे न्यायालय में तत्समय प्रवृत किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विधि-व्यवसाय करने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत कोई भी अन्य व्यक्ति है जो ऐसी कार्यवाही में कार्य करने के लिए न्यायालय की अनुज्ञा से नियुक्त किया गया है।

(द) ‘पुलिस रिपोर्ट’ से पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 173 की उपधारा (2) क अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी गई रिपोर्ट अभिप्रेत है।

(ध) ‘पुलिस थाना’ से कोठे भी चैकी या स्थान अभिप्रेत है जिसे राज्य सरकार द्वारा साधारणतया या विशेषतया पुलिस थाना घोषित किया गया है ओर इसके अंतर्गत राज्य सराकर द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट कोई स्थानीय क्षेत्र भी है।

(न) ‘विहित’ से इस संहिता के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है।

(प) ‘लोक अभियोजक’ से धारा 24 के अधीन नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत लोक अभियोजक के निर्देशों के अधीन कार्य करने वाला व्यक्ति भी है।

(फ) ‘उपखण्ड’ से जिले का उपखण्ड अभिप्रेत है।

(ब) ‘समन-मामला’ से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी अपराध से सम्बन्धित है और जो वारण्ट-मामला नहीं है।

(बक) ‘आहत’ से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी ऐसे कार्य या लोप के कारण से कोई हानि या क्षति हुई हो, जिसके लिए अभियुक्त व्यक्ति को क्षति हुई हो, और अभिव्यक्ति ‘आहत’ में उसके संरक्षक या विधिक वारिस सम्मिलित है।

(भ) ‘वारण्ट-मामला’ से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि का कारावास से दण्डनीय किसी अपराध से संबंधित है।

(म) उन शब्दों और पदो के, जो इसमें प्रयुक्त है और पारिभाषित नहीं है किन्तु भारतीय दण्ड संहिता में परिभाषित है वही अर्थ होंगे जो उसके उस संहिता में है।


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