धारा 362 आईपीसी - IPC 362 in Hindi - सजा और जमानत - अपहरण।

अपडेट किया गया: 01 Mar, 2024
एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा


LawRato

विषयसूची

  1. धारा 362 का विवरण
  2. धारा 362 का उदाहरण सहित परिचय
  3. कौन से तत्व अपहरण साबित करते हैं?
  4. छल के आधार पर किया गया अपहरण
  5. बल प्रयोग द्वारा किया गया अपहरण
  6. अपहरण और व्यपहरण के बीच का अंतर
  7. धारा 362 के मामलों मे एक वकील की सहायता

धारा 362 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 362 के अनुसार

यदि कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है, या किन्हीं छल पूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है, तो वह उस व्यक्ति का अपहरण करना कहलाता है।



धारा 362 का उदाहरण सहित परिचय

आईपीसी की धारा 362 अपहरण को परिभाषित करती है। अपहरण का शाब्दिक अर्थ है किसी व्यक्ति को बल प्रयोग या कपटपूर्ण तरीके से ले जाना। आईपीसी की धारा 362 में कहा गया है कि अपहरण तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी धोखे या दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी अन्य व्यक्ति को किसी स्थान से स्थानांतरित करने के लिए मजबूर करता है या प्रेरित करता है। यदि एक आम बोलचाल की भाषा मे देखा जाए तो शुद्ध एवं पवित्र विचारधरा या मानसिकता के साथ किया गया अपहरण अपने आप में एक अपराध नहीं है उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति किसी घायल पड़े व्यक्ति को उठाकर उसके इलाज करवाने के उद्देश्य से उस व्यक्ति की इजाजत के बिना अस्पताल ले जाए या किसी ऐसी जगह ले जाए जहाँ उसका इलाज हो सके तब वह एक शुद्ध एवं अच्छी नियत से किया गया अपहरण कहा जा सकता है परंतु जब अपहरण एक और अपराध करने के इरादे से किया जाता है तो यह इस धारा के तहत दंडनीय हो जाता है।

इस प्रकार, अपहरण एक अपराध है जिसमें एक व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक मजबूरी या धोखेबाज साधनों के उपयोग से एक स्थान से स्थानांतरित किया जाता है। जाहिर है, अपहरण की अनिवार्यताएं हैं:

उदाहरण: 'बी' थप्पड़ मारता है और 'ए' को चोट पहुंचाता है और उससे कहता है कि अगर वह उसके साथ नहीं जाएगा, तो वह उसे मार डालेगा। इस मामले में, 'बी' अपहरण का अपराध करता है क्योंकि वह 'ए' को उसके घर से दूर ले जाने के लिए जबरदस्ती एवं गलत तरीके के बल का उपयोग करता है।

यहां, 'ए' अपहरण किया गया व्यक्ति है और 'बी' अपराधी है; 'ए' को उसे मारने की धमकी देना और थप्पड़ मारना और उसे चोट पहुँचाना बल प्रयोग के बराबर है, और उसे उसके घर से दूर ले जाना एक व्यक्ति को एक विशेष स्थान से दूर ले जाने की अनिवार्यता स्थापित करता है।


कौन से तत्व अपहरण साबित करते हैं?

अपहरण के लिए आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं:

  1. छल या कपट के माध्यम से मजबूरी, जबरदस्ती या प्रलोभन होना चाहिए।

  2. इस तरह की जबरदस्ती या मजबूरी का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति को किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना या उसका जाना होना चाहिए।

  3. इस अपराध में प्रयुक्त बल केवल एक धमकी या दिखावा नहीं है, यह बल के वास्तविक प्रयोग के बराबर होना चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति किसी वृद्ध महिला को उसके पति के पास वापस भेजने के लिए उसकी सहमति के विरुद्ध बल प्रयोग करके ले जाता है तो यह अपहरण के अपराध की श्रेणी में आएगा और वह व्यक्ति उत्तरदायी होगा, बशर्ते उस व्यक्ति द्वारा किया गया यह कार्य परोपकारी विचारधार के सहित किया गया एचपी एवं उसमे कोई भी ऐसी प्रवत्ति या या कृत्य ना छिपा हो जिसमे उस महिला का उत्पीड़न या अन्य कोई निंदनीय कार्य उसके खिलाफ इजात हो सके।

गुरुचरण सिंह बनाम हरियाणा राज्य मामले में आरोपी ने पीड़िता को अपनी पिस्टल के बाल से डराया और धमकाया था जिसके बाद आरोपी उसे जबरदस्ती गांव के बाहर ले गए। अदालत ने पाया कि इस मामले में आरोपी ने अधिक मात्रा में बल प्रयोग किया और इस तरह के बल प्रयोग से यह कृत्य अपहरण के अंतर्गत आता है।


छल के आधार पर किया गया अपहरण

छल शब्द का अर्थ है कि एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के प्रति किसी भी व्यक्ति या वस्तु के संदर्भ किया गया झूठा प्रतिनिधित्व जिसके कारण उस व्यक्ति का एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन हुआ हो। अपहरण के तहत अपराध बनने के लिए धोखाधड़ी और गलत बयानी का उपयोग होना चाहिए। आर वी कॉर्ट 2003 मामले में, यह माना गया था कि यदि किसी व्यक्ति की सहमति धोखाधड़ी, गलत बयानी या मजबूरी के माध्यम से प्राप्त की जाती है तो ऐसी सहमति वैध नहीं होगी और अपहरण करने वाले व्यक्ति को इससे छूट नहीं मिलेगी।

अपहरण की अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अनिवार्यता यह है कि अधिनियम व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर करे एवं यह जरूरी नहीं कि अपहरण वैध गार्डीअनशिप के अंतर्गत ही हो। बहादुर अली बनाम किंग एम्परर 1923 मामले में, एक लड़की का अपहरण कर लिया गया था, हालांकि उसने उस जगह से भागने की कोशिश की, रास्ते में वह आरोपी से मिली जिसने उसे पुलिस कांस्टेबल कहकर गलत तरीके से पेश किया। इसके बाद आरोपी उसे धोखे से अपने घर ले गया और फिर उसकी मां से 600 रुपये की मांग की। अदालत ने आरोपी को अपहरण का दोषी ठहराया और दंडित किया।


बल प्रयोग द्वारा किया गया अपहरण

धारा 362 कहती है कि अपहरण दो तरह से हो सकता है इन्हीं में से एक है बल। अपहरण में व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए विवश किया जाता है। बल का प्रयोग, वास्तविक होना चाहिए, न कि अपहरण का गठन करने के लिए बल का खतरा। उदाहरण के तौर पर कहे तो यदि अपहृत व्यक्ति को यदि आशंका है की उस पर बल का प्रयोग किया जा सकता है इस आधार पर यदि वह किसी व्यक्ति के साथ कहीं भी जाने को तैयार ही जाता है तब उस अवस्था मे यह कृत्य अपहरण के अंतर्गत नहीं आएगा परंतु यदि उस पर बंदूक या कोई जानलेवा अस्त्र या शस्त्र का प्रयोग उसे दर धमका कर ले जाने के लिए किया गया हो तब वह कार्य अपहरण के अंतर्गत आएगा।

इस संदर्भ में, हम पश्चिम बंगाल राज्य बनाम मीर मोहम्मद उमर के मामले को देख सकते हैं कि अदालत ने माना कि अभियुक्त का अपहरण करने के लिए सबूत पर्याप्त हैं एवं यह भी कहा कि अपहरण तब होता है जब किसी व्यक्ति को किसी जगह से जबरदस्ती जाने के लिए मजबूर किया जाता है। इस मामले में अभियुक्त को दो जगह से ले जाया गया, पहला उसके दोस्तों के घर से, जिससे वह भाग गया और दूसरा पड़ोसी के घर से। दोनों ही मामलों में बल प्रयोग किया गया इसलिए आरोपियों को दोषी ठहराया गया।


अपहरण और व्यपहरण के बीच का अंतर

1.आईपीसी की धारा 361 में कहा गया है कि पीड़ित व्यक्ति की आयु पुरुषों के मामले में 16 से कम और महिलाओं के मामले में 18 से कम होनी चाहिए। परंतु अपहरण के अपराध के लिए उम्र का कोई प्रावधान नहीं है। कोई भी व्यक्ति जो बलपूर्वक और छल से किसी अन्य व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए विवश करता है, अपहरण के लिए उत्तरदायी होता है।

2.वैध संरक्षकता से हटाना – व्यापहरण के अपराध के दौरान पीड़ित को उसकी वैध संरक्षकता से हटा दिया जाता है। अपहरण में, वैध संरक्षकता की कोई अवधारणा नहीं है।

3.व्यपहरण में, एक व्यक्ति को बहका फुसला कर उसके वैध अभिभावक से दूर ले जाया जाता है परंतु अपहरण में, बल, धोखाधड़ी, छल जैसे कुछ अनुचित साधन चलन में आते हैं।

4.सहमति – व्यपहरण के लिए, जिस व्यक्ति का अपहरण किया गया है उसकी सहमति जरूरी नहीं है, यहां केवल वैध अभिभावक की सहमति मायने रखती है। अपहरण के लिए, सहमति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यदि अपहृत व्यक्ति की स्पष्ट और स्वैच्छिक सहमति की उपस्थिति है तो ऐसा कार्य दंडनीय अपराध नहीं होगा।

5.अभियुक्त की मंशा – व्यपहरण में अपराध करने वाले व्यक्ति की मंशा सारहीन और अप्रासंगिक है। अपहरण में, आरोपी का इरादा यह पता लगाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि वह दोषी है या नहीं।

6.जैसे ही नाबालिग या विकृत दिमाग वाले व्यक्ति को उसके वैध अभिभावक की हिरासत से हटा दिया जाता है, अपराध व्यपहरण की निरंतरता पूरी हो जाती है। इसलिए, यह एक सतत अपराध नहीं है। अपहरण तब तक जारी रहता है जब तक व्यक्ति को उस स्थान से हटकर दूसरे सुरक्षित स्थान पर हटा दिया जाता है इसलिए, यह एक सतत अपराध है।


धारा 362 के मामलों मे एक वकील की सहायता

ऐसी अवस्था मे वकील की सहायता लेना अत्यधिक अनिवार्य होता है एवं यही नहीं इस तरह के मामलों मे प्रत्येक व्यक्ति को जानकारी होनी चाहिए के कानून उसकी किस प्रकार मदद कर सकता है, यदि वह इस धारा या इससे जुड़ी धाराओ से वंचित है तो उसे एक वकील की सहायता लेनी चाहिए जिससे वह उस व्यक्ति के अधिकारों को काननों के अंतर्गत न्याय दिला सके।



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