धारा 103 आईपीसी - IPC 103 in Hindi - सजा और जमानत - कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मॄत्यु कारित करने तक का होता है
अपडेट किया गया: 01 Apr, 2024एडवोकेट चिकिशा मोहंती द्वारा
विषयसूची
धारा 103 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 103 के अनुसार संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मॄत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित भारतीय दंड संहिता, 1860 17करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात्् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात््:--
पहला--लूट ;
दूसरा--रात्रौ गॄह-भेदन ;
तीसरा--अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तंबू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है ;
चौथा--चोरी, रिष्टि या गॄह-अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्ति रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मॄत्यु या घोर उपहति होगा ।
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